नवरात्रि में कन्या पूजन केवल धार्मिक परंपरा ही नहीं बल्कि देवी शक्ति के सम्मान का प्रतीक है। यह हमें यह संदेश देता है कि समाज में स्त्रियों और कन्याओं का स्थान सर्वोपरि है। इंद्रदेव की कथा इस परंपरा की गहराई को स्पष्ट करती है कि कैसे कन्याओं का पूजन कर मां दुर्गा की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
पुराणों के अनुसार, एक बार इंद्रदेव माता दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते थे। इसके लिए वे ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उपाय पूछा। तब ब्रह्माजी ने बताया कि देवी को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ मार्ग कन्या पूजन है। ब्रह्माजी ने समझाया कि कन्याएं स्वयं देवी का स्वरूप मानी जाती हैं। अतः उनका आदर-सत्कार करने से माता दुर्गा प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं।
ब्रह्माजी की सलाह मानकर इंद्रदेव ने नवरात्रि के दौरान कुंवारी कन्याओं को आमंत्रित किया, उनके चरण धोए, भोजन कराया और उनका पूजन किया। उनके सेवा भाव और श्रद्धा से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने इंद्रदेव को आशीर्वाद दिया। कहा जाता है कि तभी से नवरात्रि में कन्या पूजन की परंपरा शुरू हुई।
नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। इसी कारण कन्या पूजन में प्रायः नौ कन्याओं को बुलाने की परंपरा है। ये नौ कन्याएं मां के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनके साथ एक बटुक को भी बुलाना चाहिए, जिसे भगवान भैरव का प्रतीक माना जाता है।
मान्यता है कि कन्या पूजन से मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। धार्मिक दृष्टि से यह अनुष्ठान न केवल पुण्य प्रदान करता है बल्कि आत्मिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है।