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श्रावण मास में करें कालसर्प दोष की शांति के लिए पूजा

श्रावण मास में करें कालसर्प दोष की शांति के लिए पूजा

कालसर्प दोष क्या होता है और इससे कैंसे शांति मिल सकती है?


कालसर्प दोष का नाम आते ही लोगों के मन में एक अलग ही तरह का डर और बेचैनी आ जाती है क्यूंकि हमारे ज्योतिषियों ने इसे काफी ख़राब बताया है, जिस किसी की भी कुंडली में अगर राहु और केतु के बीच में सारे ग्रह आ जाते हैं तो इसे कालसर्प दोष माना जाता है। हालांकि शास्त्रों में इसका कोई प्रमाण पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होता फिर भी जिनकी कुंडली में ग्रहों का ऐसा योग होता है वे लोग अपने जीवन में थोड़े अधिक परेशान देखे गए हैं और उन्हें काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा है यद्यपि इसके कई और कारण भी हो सकते हैं जो की आपकी कुंडली के विश्लेषण के बाद ही बताये जा सकते हैं लेकिन आज हम आपको बताएँगे की कालसर्प योग अगर आपकी कुंडली में है तो आप कैसे भगवान शिव की पूजा करके इससे राहत पा सकते हैं।


इस दोष का निर्माण राहु और केतु के द्वारा होता है, राहु को सर्प का मुख और केतु को पूंछ माना गया है इसीलिए दोष शांति के लिए ताम्बे या चाँदी का नाग-नागिन का जोड़ा बहते जल में प्रवाहित किया जाता है। भगवान शिव ने सर्पों को अपने आभूषण के रूप में धारण किया हुआ है इतना ही नहीं समुद्र मंथन से निकला हलाहल भी प्रभु ने कंठ में धारण किया हुआ है इसीलिए भगवान शिव के लिंग या इसी स्वरुप की पूजा करने वालों पर कालसर्प दोष का प्रभाव काफी कम होता है। नीचे आपको पूजा की विधि बताई जा रही है जिसके करने से आपको कालसर्प दोष से शांति मिलती है ऐसे विद्वानों द्वारा बताया गया है की त्र्यंबकेश्वर या महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर ही कालसर्प दोष की शांति होती है लेकिन अगर संभव नहीं है तो आप नीचे दी हुई विधि से श्रावण में भगवान शिव की पूजा करके भी इस दोष से शांति मिलती है।


सबसे पहले पूजा के लिए दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, दूर्वा, चन्दन, अक्षत, बिल्वपत्र, धतूरा के फल और फूल, आक के फूल, भांग एवं चाँदी या ताम्बे का नाग नागिन का जोड़ा ये सारी सामग्री लेकर शिव मंदिर जाएँ, ये जरूर सुनिश्चित करें की आप स्नान आदि से शुद्ध होकर ही पूजा करने जाएँ एवं मांसाहार या तामसिक भोजन न करें। मंदिर में शिवलिंग के सामने बैठकर प्रभु का जल, गंगाजल, दूध आदि सामग्री से अभिषेक करें, चन्दन अर्पित करें, अक्षत अर्पित करें, फिर बेलपत्र, फूल, फल और भांग अर्पित करें। भगवान गणपति को दूर्वा अर्पित करें, धूप दीप दिखते हुए नाग नागिन के जोड़े को भगवान शिव को अर्पित करें और रुद्राक्ष की माला से ५-५ माला निम्न मन्त्रों का जाप करें -


१) ॐ नमः शिवाय।

२) ॐ रां राहवे नमः।

३) ॐ कें केतवे नम:।


जाप के पश्चात आरती करें और पुष्पांजलि, क्षमा याचना करते हुए पूरे श्रद्धा भाव से अपनी पूजा देवाधिदेव महादेव को समर्पित करें, ये क्रम श्रावण के प्रत्येक दिन और अगर न संभव हो तो प्रत्येक सोमवार को करें और अंतिम दिन या अंतिम सोमवार को नाग नागिन के जोड़े को शिवलिंग पर अर्पित कर दें या नदी के बहते हुए जल में भगवान से हर कष्ट और कालसर्प की शांति की प्रार्थना करते हुए प्रवाहित कर दें।


भगवान भोलेनाथ आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करें और सारे कष्टों का निवारण करें। बोलिये हर हर महादेव

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