श्री कृष्ण चालीसा

मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन करें श्री कृष्ण चालीसा का पाठ तो बरसेगी मुरलीधर की कृपा


सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना गया है। उनका जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। यही कारण है कि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना और व्रत-उपवास का विशेष महत्व तो है ही साथ ही धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा और विशेषकर वासुदेव श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने से भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का संचार होता है। तो आइए इस आलेख में हम आपको श्री कृष्ण चालीसा और इसके उपयोग के बारे में विस्तार से बताते हैं। 


मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व


इस दिन विशेष रूप से यह विश्वास किया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्टों का निवारण होता है और उसे जीवन में सफलता प्राप्त होती है। पूजा के दौरान कृष्ण चालीसा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस चालीसा के पाठ से मुरलीधर श्रीकृष्ण की कृपा शीघ्र बरसती है।


मासिक कृष्ण जन्माष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त


तिथि प्रारंभ: 22 नवंबर 2024 को शाम 06:07 बजे

तिथि समाप्त: 23 नवंबर 2024 को शाम 07:56 बजे

पूजा का समय: निशीथ काल में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना विशेष रूप से फलदायी है।


कृष्ण चालीसा का पाठ


पूजा के समय भक्त सच्चे मन से श्रीकृष्ण की भक्ति करें और इस चालीसा का पाठ करें। यह चालीसा भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की विभिन्न लीलाओं और उनके चमत्कारों का वर्णन करती है।


कृष्ण चालीसा


॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।

अरुण अधर जनु बिम्बा फल, पिताम्बर शुभ साज॥

जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥


॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।

जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥


जय नट-नागर नाग नथैया।

कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।

आओ दीनन कष्ट निवारो॥


वंशी मधुर अधर धरी तेरी।

होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो।

आज लाज भारत की राखो॥


गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

रंजित राजिव नयन विशाला।

मोर मुकुट वैजयंती माला॥


कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।

कटि किंकणी काछन काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे।

छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥


मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।

आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो।

अका बका कागासुर मारयो॥


मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।

भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।

मसूर धार वारि वर्षाई॥


लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।

गोवर्धन नखधारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।

मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥


दुष्ट कंस अति उधम मचायो।

कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।

चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥


करि गोपिन संग रास विलासा।

सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

केतिक महा असुर संहारयो।

कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥


मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

महि से मृतक छहों सुत लायो।

मातु देवकी शोक मिटायो॥


भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

लाये षट दश सहसकुमारी॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।

जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥


असुर बकासुर आदिक मारयो।

भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो।

तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥


प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

लखि प्रेम की महिमा भारी।

ऐसे श्याम दीन हितकारी॥


भारत के पारथ रथ हांके।

लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये।

भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥


मीरा थी ऐसी मतवाली।

विष पी गई बजाकर ताली॥

राना भेजा सांप पिटारी।

शालिग्राम बने बनवारी॥


निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

उर ते संशय सकल मिटायो॥

तब शत निन्दा करी तत्काला।

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥


जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

दीनानाथ लाज अब जाई॥

तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।

बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥


अस नाथ के नाथ कन्हैया।

डूबत भंवर बचावत नैया॥

सुन्दरदास आस उर धारी।

दयादृष्टि कीजै बनवारी॥


नाथ सकल मम कुमति निवारो।

क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै।

बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥


॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥


पूजा के समय ध्यान रखें ये बातें

पूजा करते समय मन को शुद्ध और शांत रखें।

नकारात्मक विचारों से बचें।

सच्चे मन और श्रद्धा के साथ भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करें।


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