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चैत्र नवरात्रि 2026 में कब शुरू होगी ?

चैत्र नवरात्रि 2026 में कब शुरू होगी ?

Chaitra Navratri 2026: मार्च में इन तारीखों में पड़ेगी नवरात्रि, जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि हिंदू पंचांग के अनुसार वसंत ऋतु में आने वाला प्रमुख पर्व है। इसे नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है। भारत के कई राज्यों में इस दिन से नया संवत शुरू होता है, जबकि महाराष्ट्र में इसे गुडी पड़वा के रूप में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। नौ दिनों तक भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं और विभिन्न अनुष्ठानों के माध्यम से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। 2026 में चैत्र नवरात्रि 19 मार्च से आरंभ होकर 27 मार्च को समाप्त होगी। पहले दिन घटस्थापना होती है, जिसे नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना गया है। सही मुहूर्त में की गई घटस्थापना घर में शुभता, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।

चैत्र नवरात्रि 2026 की तिथियां और घटस्थापना मुहूर्त

2026 में चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 19 मार्च से हो रहा है और इसका समापन 27 मार्च को होगा। प्रतिपदा तिथि के दिन कलश स्थापना की जाती है। इस वर्ष घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 19 मार्च 2026 को सुबह 06:52 बजे से 07:43 बजे तक है। यह मुहूर्त पूजा के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है क्योंकि इस समय ब्रह्म मुहूर्त और देविक ऊर्जा का विशेष प्रभाव रहता है। इसके अतिरिक्त अभिजीत मुहूर्त भी कलश स्थापना के लिए शुभ माना गया है, जो 12:05 बजे से 12:53 बजे तक है। भक्त इसी समय मां दुर्गा का आवाहन कर नवरात्रि पूजन की शुरुआत करते हैं।

नवरात्रि के नौ दिनों की पूजा और देवी के स्वरूप

नवरात्रि में हर दिन मां दुर्गा के एक विशिष्ट स्वरूप की पूजा की जाती है। पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है, जिन्हें पर्वतराज हिमवान की पुत्री कहा जाता है। दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है, जो तप और संयम की प्रतीक हैं। तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का पूजन कर भक्त साहस और शांति का वरदान पाते हैं। चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना से जीवन में उर्जा और सृजनात्मकता बढ़ती है। पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा स्वास्थ्य और संतुलन देती है। छठे दिन मां कात्यायनी दुष्ट शक्तियों का विनाश करती हैं। सातवें दिन मां कालरात्रि भय और नकारात्मकता का नाश करती हैं। आठवां दिन मां महागौरी को समर्पित है, जो शुद्धता की प्रतीक हैं। नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा कर भक्त सिद्धियां और दिव्य कृपा प्राप्त करते हैं।

कलश स्थापना विधि और इसका महत्व

कलश स्थापना को नवरात्रि की शुभ शुरुआत माना जाता है। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद मिट्टी के पाटे में जौ बोए जाते हैं, जो समृद्धि और वृद्धि का प्रतीक है। पान या आम के पत्तों से सजे कलश में जल, दूर्वा, सुपारी और हल्दी की गांठ रखी जाती है। नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर कलश पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र का आवाहन कर अखंड दीप प्रज्वलित किया जाता है। माना जाता है कि कलश स्थापना से घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और पूजा का फल अनेक गुना हो जाता है। सही विधि से किया गया यह अनुष्ठान जीवन में मंगल और सौभाग्य का संचार करता है।

नवरात्रि का महत्व और उपवास के नियम

नवरात्रि को साधना, उपवास और मन की शुद्धि का सर्वोत्तम काल माना गया है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में धरती पर देवी शक्ति का वास होता है और भक्त के सभी संकट दूर होने लगते हैं। उपवास के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है और लहसुन, प्याज तथा तामसिक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी जाती है। प्रतिदिन जाप, ध्यान और आरती करने से मानसिक शांति और आत्मबल प्राप्त होता है। नवरात्रि को आध्यात्मिक उन्नति और नकारात्मक प्रवृत्तियों को छोड़ने का उत्तम अवसर माना गया है।

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