मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख सूर्योपासना पर्व है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश पर मनाया जाता है। 2026 में यह उत्सव 14 जनवरी, बुधवार को पड़ेगा। पंचांग के अनुसार संक्रांति का क्षण दोपहर 03:13 बजे होगा, जब सूर्य धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसी के साथ देवताओं का दिन यानी उत्तरायण आरंभ होता है। शास्त्र मानते हैं कि उत्तरायण काल शुभ ऊर्जा, उन्नति और सकारात्मकता का प्रतीक है। इस दिन किया गया स्नान, जप और खासकर दान अतुलनीय फल देता है। माना जाता है कि सूर्यदेव इस समय अपने पुत्र शनि के घर मकर में प्रवेश करते हैं, जिससे यह पर्व और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
2026 में मकर संक्रांति का संक्रांति क्षण दोपहर 03:13 बजे होगा। इसी समय सूर्य मकर राशि में गोचर करेंगे। धार्मिक मान्यता है कि सूर्य के राशि परिवर्तन के तुरंत बाद शुरू होने वाला समय सबसे अधिक फलदायी होता है। इस वर्ष पुण्यकाल 03:13 PM से 05:45 PM तक रहेगा, जिसकी अवधि 2 घंटे 32 मिनट है। वहीं, महा पुण्यकाल 03:13 PM से 04:58 PM तक चलेगा, जिसकी अवधि 1 घंटा 45 मिनट है। इसी अवधि में किया गया स्नान, जप, हवन, तर्पण और दान अत्यंत शुभ परिणाम देता है। इस वर्ष का समय अत्यंत उत्कृष्ट माना गया है क्योंकि यह पूरा पुण्यकाल दिन के उजाले में आ रहा है।
ज्योतिषीय दृष्टि से 2026 की मकर संक्रांति कई शुभ संकेत लेकर आएगी। इस संक्रांति से सरकारों तथा सरकारी कर्मचारियों को लाभ होने की संभावना है। वस्तुओं के मूल्य स्थिर बने रहने की संभावना के संकेत मिलते हैं। स्वास्थ्य लाभ के योग प्रबल रहेंगे और आम जनता को राहत मिलेगी। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच संबंधों में मधुरता बढ़ने की संभावना जताई गई है। अनाज भंडारण एवं कृषि उत्पादन में सुधार के संकेत भी स्पष्ट नजर आते हैं। कुल मिलाकर यह संक्रांति स्थिरता, सहयोग, स्वास्थ्य और आर्थिक मजबूती के संकेत देती है।
कई वर्षों में संक्रांति की तिथि बदलाव के कारण 14 और 15 जनवरी के बीच भ्रम रहता है, लेकिन 2026 में सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश ठीक 14 जनवरी को दोपहर 03:13 बजे हो रहा है। इसी कारण इस वर्ष संक्रांति का पर्व बुधवार को ही मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार संक्रांति वही मानी जाती है, जब सूर्य का वास्तविक गोचर होता है। सूर्य का यह परिवर्तन seasons के बदलाव का संकेत भी देता है। धनु से मकर में प्रवेश के बाद शरद ऋतु का समापन होता है और बसंत की आहट शुरू हो जाती है। इसी समय देवताओं का दिन उत्तरायण आरंभ होता है, जिसे धर्मशास्त्रों में अत्यंत पवित्र माना गया है।
शास्त्र कहते हैं कि मकर संक्रांति दान का महापर्व है। महाभारत में यक्ष–युधिष्ठिर संवाद में दान को जीवन का सर्वोच्च धन बताया गया है। युधिष्ठिर कहते हैं—“मृत्यु के समय साथ देने वाला एकमात्र साथी दान ही होता है।” इसी कारण इस दिन तिल, गुड़, घी, वस्त्र, कंबल, नमक, खिचड़ी, अनाज और गाय को हरा चारा खिलाने की परंपरा है। तिल शनि का प्रतीक माना जाता है, इसलिए तिल दान से शनि दोष शांत होते हैं। गुड़ सूर्य, गुरु और शनि तीनों का प्रिय माना गया है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि स्नान और दान मिलकर अनेक गुना पुण्य देते हैं। संक्रांति के पुण्यकाल में किया गया दान जीवन में सुख, समृद्धि और संरक्षण प्रदान करता है।