होली को रंगों का पर्व, प्रेम का उत्सव और वसंत का स्वागत कहा जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका दहन होता है और अगले दिन रंगवाली होली खेली जाती है। पर्व की मूल भावना सामाजिक सौहार्द, भाईचारे और प्रकृति के नव उत्साह से जुडी है। होली का सीधा संबंध प्रहलाद और होलिका की कथा, राधा कृष्ण की लीला और वसंत ऋतु के आगमन से भी है। 2026 की होली में शुभ मुहूर्त, होलाष्टक और पूजा विधि के संबंध में पंचांग में विशेष महत्व बताया गया है।
2026 में होलिका दहन 3 मार्च मंगलवार को किया जाएगा। शुभ समय शाम 06 बजकर 27 मिनट से रात 08 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। प्रदोष काल में 06 बजकर 17 मिनट से 08 बजकर 41 मिनट तक पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस अवधि में होलिका प्रज्वलन करने से दुर्भाग्य का नाश होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा बढती है। होलिका दहन अग्नि पुराण और पुराणों में वर्णित उस क्षण का प्रतीक है जब भक्त प्रहलाद को बचाकर होलिका का नाश हुआ था।
पूजा की शुरुआत स्थल को साफ करने और होलिका की स्थापना से होती है। सूखी लकडियां, गोबर के उपले और घासफूस का ढेर तैयार किया जाता है। पूजा सामग्री में रोली, अक्षत, फूल, कलावा, गेहूं की बालियां, नारियल, धूपदीप और चना गुड शामिल होते हैं।
पूजा के चरण इस प्रकार हैं
यह विधि परिवार में सुखशांति और रोगनाश का प्रतीक मानी जाती है।
होलाष्टक की शुरुआत 24 फरवरी 2026 से होती है और इसका समापन 3 मार्च 2026 को होलिका दहन के साथ होता है। इन आठ दिनों में विवाह, गृह प्रवेश और शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। इसका संबंध दो प्रमुख कथाओं से है। पहली कथा के अनुसार, भगवान शिव के तप भंग होने पर कामदेव भस्म हो गए थे और उनकी पत्नी रति ने आठ दिनों तक शिव की आराधना की थी। दूसरी कथा में कहा गया है कि राजा हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को इन आठ दिनों में कठोर यातनाएं दी थीं। इसलिए यह काल अशुभ माना जाता है।
होलिका दहन प्रहलाद की विजय और होलिका के अहंकार के अंत का प्रतीक है। वहीं ब्रज में राधा और कृष्ण की रंगलीला इस उत्सव का हृदय मानी जाती है। कहते हैं कि कृष्ण की शरारतों और राधा से रसमय प्रेम लीला के कारण रंग उत्सव की परंपरा जन्मी।
क्षेत्रीय रूपों में बरसाना की लठमार होली, वृंदावन की फूलों वाली होली, मथुरा की फाग उत्सव और पश्चिम बंगाल की दोल पूर्णिमा विशेष महत्व रखती हैं। भारत के अनेक भागों में नई फसल अर्पण, अग्नि पूजन और सामाजिक मेलजोल इस पर्व को और अधिक आध्यात्मिक बना देते हैं।