बसंत पंचमी हिन्दू धर्म का एक अत्यंत शुभ और पवित्र पर्व है, जिसे बसंत ऋतु के स्वागत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग ज्ञान और कला की देवी माता सरस्वती की आराधना करते हैं और शिक्षा तथा रचनात्मकता के मार्ग पर आगे बढ़ने का संकल्प लेते हैं। पंचांग के अनुसार यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आता है, जब पूर्वाहन काल में पंचमी प्रबल होती है। वर्ष 2026 में बसंत पंचमी 23 जनवरी को पड़ रही है और इसी दिन देशभर के मंदिरों, विद्यालयों और घरों में सरस्वती पूजा का विशेष आयोजन होगा। पीला रंग इस पर्व का मुख्य प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसे देवी सरस्वती का प्रिय रंग बताया गया है।
वर्ष 2026 में बसंत पंचमी 23 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य उदय से लेकर मध्य दिन तक का समय पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। सरस्वती पूजा का मुहूर्त 7:10 AM से 12:39 PM तक और पूजा अवधि लगभग 5 घंटे 29 मिनट की रहेगी। पूर्वाहन काल में पंचमी तिथि के प्रबल रहने पर पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसी कारण इस अवधि में सरस्वती वंदना, मंत्रजाप, भोग और आरती विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन अक्षराभ्यास की भी परंपरा है, जिसमें छोटे बच्चों को पहली बार पढ़ने और लिखने की शुरुआत कराई जाती है।
बसंत पंचमी का संबंध देवी सरस्वती के जन्मोत्सव से जुड़ा हुआ है। धर्मग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। देवी के वीणा वादन से सृष्टि में वाणी की उत्पत्ति हुई और ज्ञान का प्रकाश फैला। इसी कारण इस दिन शिक्षा, कला, साहित्य और संगीत की आराधना अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस पर्व को श्री पंचमी, ऋषि पंचमी और सरस्वती पंचमी भी कहा गया है। बसंत ऋतु को छह ऋतुओं में सबसे मनोहर माना जाता है और यह प्रकृति में नवजीवन का संचार करती है। इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव और रति की पूजा करने की भी परंपरा है। मान्यता है कि दांपत्य जीवन की मंगल कामना के लिए इस दिन कामदेव और रति का पूजन अत्यंत लाभकारी होता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में यह पर्व अलग अलग रीति से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में नवविवाहित जोड़ों के लिए अपनी पहली बसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनकर मंदिर जाना अनिवार्य माना गया है। राजस्थान में इस दिन चमेली की माला पहनने की प्रथा प्रचलित है।
पंजाब में बसंत का स्वागत पीली पगड़ी, पीले वस्त्र और पतंगबाजी के साथ किया जाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का भी विधान है। नेपाल में भी यह पर्व अत्यंत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब धरती पर जीवन में नीरसता और मौन देखा, तब उन्होंने अपने कमंडल का जल छिड़का और उससे एक दिव्य स्त्री प्रकट हुईं। उनके हाथों में वीणा, पुस्तक और माला थी। ब्रह्मा जी ने उन्हें सरस्वती नाम देकर सम्पूर्ण जीव जगत को वाणी प्रदान करने का दायित्व सौंपा। उस दिन से वाणी, ज्ञान और संगीत का आरंभ हुआ और उसी स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है।