चंपा षष्ठी हिंदू धर्म का एक अत्यंत पावन और धार्मिक पर्व है, जो भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। यह उत्सव हर वर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और दक्षिण भारत में इसे स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय को चंपा पुष्प अत्यंत प्रिय होने के कारण इस पर्व का नाम चंपा षष्ठी पड़ा। वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार यह दिन भगवान शिव के खंडोबा अवतार की पूजा के लिए भी विशेष माना जाता है, जो किसानों, चरवाहों और शिकारियों के आराध्य देव हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान खंडोबा और भगवान कार्तिकेय दोनों की आराधना का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं - चंपा षष्ठी 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका धार्मिक महत्व।
साल 2025 में चंपा षष्ठी का पर्व बुधवार, 26 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि का प्रारंभ 25 नवंबर 2025 को रात्रि 10 बजकर 56 मिनट पर होगा, जो 27 नवंबर 2025 को रात्रि 12 बजकर 1 मिनट तक जारी रहेगी। इस प्रकार, चंपा षष्ठी का व्रत और पूजन 26 नवंबर को करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। इस दिन भक्त भगवान कार्तिकेय और भगवान शिव के खंडोबा स्वरूप की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं।
चंपा षष्ठी का पर्व भगवान कार्तिकेय (मुरुगन/खंडोबा) को समर्पित है। यह उत्सव विशेष रूप से महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान कार्तिकेय की पूजा कर आरोग्य, साहस और सफलता की कामना करते हैं। पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियों की सूची और संपूर्ण विधि इस प्रकार है —
चंपा षष्ठी पूजा सामग्री
चंपा षष्ठी पूजा विधि
चंपा षष्ठी का महत्व
चंपा षष्ठी या स्कंद षष्ठी का पर्व भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। दक्षिण भारत में यह दिन अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नामक असुर का वध कर देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्त किया था। इसलिए चंपा षष्ठी को अच्छाई की बुराई पर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूरे भाव और विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सफलता, सुख, समृद्धि और शांति का संचार होता है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि स्कंद षष्ठी व्रत का पालन करने से मनुष्य काम, क्रोध, मोह, अहंकार जैसे नकारात्मक भावों से मुक्त होकर जीवन में संतुलन और सकारात्मकता प्राप्त करता है।
चंपा षष्ठी की कथा
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने मानव जाति को दुष्ट शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए खंडोबा नामक रूप में अवतार लिया था। खंडोबा को किसानों, चरवाहों, योद्धाओं और शिकारियों का आराध्य देव माना जाता है। कथा के अनुसार, मल्ल नामक एक अत्याचारी राक्षस और उसका भाई मणि लोगों पर अत्याचार करने लगे थे। उनके आतंक से पृथ्वी पर अराजकता फैल गई, तब देवताओं और मनुष्यों ने भगवान शिव से प्रार्थना की। शिव जी ने उनकी प्रार्थना सुनकर खंडोबा के रूप में अवतार लिया और छह दिन तक चले भयंकर युद्ध के बाद छठे दिन मल्ल और मणि का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की।
इसी घटना की स्मृति में हर वर्ष चंपा षष्ठी पर्व मनाया जाता है। यह त्यौहार छह दिनों तक चलता है, जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है। भक्तजन इन दिनों विशेष रूप से शिव मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं, जहां वे भगवान को हल्दी पाउडर, फल, सब्जियाँ, सेब के पत्ते और बहु-अनाज से बने प्रसाद अर्पित करते हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में भगवान खंडोबा, जिन्हें खंडेराया या मल्हारी मार्तंड के नाम से भी जाना जाता है, को पारिवारिक देवता के रूप में पूजने की परंपरा है।
पुणे स्थित खंडोबा मंदिर इस अवसर पर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर परिसर पूरी तरह हल्दी के पीले रंग से आच्छादित दिखाई देता है, क्योंकि भगवान खंडोबा को हल्दी अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। कुछ परंपराओं में खंडोबा को भगवान स्कंद (कार्तिकेय) का ही अवतार भी माना गया है, जिससे चंपा षष्ठी का महत्व और भी बढ़ जाता है।