केरल का सबरीमाला मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है, जहां हर वर्ष बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मंडला पूजा का आयोजन किया जाता है। यह पूजा भगवान अयप्पा को समर्पित होती है और 41 दिनों तक चलने वाले कठिन व्रत एवं तपस्या के समापन का प्रतीक मानी जाती है। इस अवधि में भक्त सात्त्विक आहार, संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भगवान अयप्पा की आराधना करते हैं। वर्ष 2025 में यह व्रत सोमवार, 17 नवंबर से आरंभ होकर शनिवार, 27 दिसंबर को संपन्न होगा। मान्यता है कि जो भक्त पूरे नियम, श्रद्धा और भक्ति भाव से यह पूजा करते हैं, उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं- क्या है मंडला पूजा, इसके व्रत के नियम और पूजा विधि।
मंडला पूजा दक्षिण भारत का एक अत्यंत पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक पर्व है, जो मुख्य रूप से केरल स्थित सबरीमाला अयप्पा मंदिर में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पूजा 41 दिनों तक चलने वाली साधना और तपस्या का प्रतीक है, जिसमें भक्त भगवान अयप्पा की उपासना में लीन रहते हैं। इस पूरे काल को “मंडल काल” कहा जाता है, जहां श्रद्धालु पूर्ण संयम, ब्रह्मचर्य और सात्त्विक आचरण का पालन करते हुए आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग अपनाते हैं।
आवश्यक पूजन सामग्री
मंडला पूजा में भगवान अयप्पा की आराधना अत्यंत सरल किन्तु श्रद्धापूर्ण विधि से की जाती है। इसके लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार है —
1. स्थान और शुद्धिकरण
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र (आमतौर पर काली या नीली धोती) पहनें। पूजा स्थान को पवित्र कर भगवान अयप्पा की मूर्ति या चित्र को पीले वस्त्र पर स्थापित करें। दीपक जलाएं और धूप या अगरबत्ती से वातावरण शुद्ध करें।
2. संकल्प और दीक्षा
पूजा प्रारंभ से पहले भगवान अयप्पा के समक्ष यह संकल्प लें कि आप अगले 41 दिनों तक संयम, सात्त्विकता और भक्ति से व्रत का पालन करेंगे। पहली बार व्रत रखने वाले भक्त अपने गुरुस्वामी से दीक्षा लेते हैं। दीक्षा के साथ ही भक्त “स्वामीये शरणम अयप्पा” मंत्र का जाप करते हुए व्रत का आरंभ करते हैं।
3. माला धारणा
संकल्प के पश्चात तुलसी या रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है, जो इस व्रत का प्रतीक होती है। इसे “माला धारणा” कहा जाता है। इस क्षण को भक्त अपने आध्यात्मिक जीवन की नई शुरुआत मानते हैं।
4. पूजन प्रारंभ
5. भोग और आरती