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छठ पूजा पर संध्या अर्घ्य की पूजा विधि

छठ पूजा पर संध्या अर्घ्य की पूजा विधि

Chhath Puja 2025: छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्य देव को संध्या अर्घ्य, यहां जानें इसकी संपूर्ण विधि और नियम

छठ पूजा आस्था, अनुशासन और आत्मशुद्धि का पर्व है। यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना की जाती है। व्रती महिलाएं और पुरुष पूरे नियमों और संयम का पालन करते हुए भगवान भास्कर से परिवार के सुख, समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं। इस बार छठ पूजा 25 अक्टूबर (शनिवार) से आरंभ होकर 28 अक्टूबर (मंगलवार) को संपन्न होगी।

चार दिनों का पूरा क्रम

  • पहला दिन – नहाय-खाय (25 अक्टूबर): इस दिन व्रती पवित्र स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। शरीर और मन की शुद्धि ही इस दिन का उद्देश्य होता है।
  • दूसरा दिन – खरना (26 अक्टूबर): व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण कर पूजा संपन्न करते हैं।
  • तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर): यह दिन छठ का सबसे प्रमुख और भावनात्मक क्षण होता है। व्रती महिलाएं और पुरुष शाम को नदी या तालाब के घाट पर पहुंचकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
  • चौथा दिन – उषा अर्घ्य और पारण (28 अक्टूबर): अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है। इसी के साथ चार दिवसीय छठ पर्व की पूर्णाहुति होती है।

संध्या अर्घ्य का विशेष महत्व

संध्या अर्घ्य छठ पूजा का तीसरा और सबसे अहम चरण है। इस दिन डूबते सूर्य की उपासना की जाती है, जो जीवन में संतुलन और स्थिरता का प्रतीक है। यह प्रकृति और ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का क्षण होता है। ऐसा माना जाता है कि संध्या अर्घ्य से सूर्यदेव संतुष्ट होकर साधकों को स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि का वरदान देते हैं।

संध्या अर्घ्य की विधि-विधान

  • समय: सूर्यास्त से लगभग आधा घंटा पहले घाट पर पहुंचें। इस वर्ष सूर्यास्त लगभग शाम 5:40 बजे होगा।
  • सामग्री: बांस की टोकरी या पीतल के सूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, फल और पुष्प रखें।
  • सजावट: टोकरी को सिंदूर से सजाएं और सूप में पूजा की सभी सामग्री भरें।

पूजन विधि:

  • व्रती जल में खड़े होकर सूर्यदेव को दूध और जल से अर्घ्य अर्पित करते हैं।
  • अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र या छठी मैया के गीत गाए जाते हैं।
  • प्रसाद भरी टोकरी से छठी मैया की पूजा कर आरती की जाती है।
  • रात्रि में लोकगीतों और छठ व्रत कथा का श्रवण किया जाता है।

संध्या अर्घ्य में क्या करें

  • निर्जला व्रत रखें: खरना के बाद से व्रती जल और अन्न का त्याग करते हैं।
  • सूर्यास्त से पहले तैयारी करें: घाट पर समय से पहले पहुंचें ताकि विधि समयानुसार पूरी हो सके।
  • बांस या पीतल के सूप का उपयोग करें: इसे शुभ और पवित्र माना गया है।
  • साफ-सफाई रखें: पूजा स्थल और घर दोनों जगह स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
  • सात्विकता बनाए रखें: मन, वचन और कर्म में पवित्रता छठ व्रत का मुख्य नियम है। 

संध्या अर्घ्य में क्या न करें

  • प्लास्टिक के बर्तन न इस्तेमाल करें: केवल मिट्टी, पीतल या बांस की सामग्री का प्रयोग करें।
  • लहसुन-प्याज का सेवन वर्जित है: छठ के दौरान केवल सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  • मांस-मदिरा से दूर रहें: व्रती के परिवार के लोग भी इनसे परहेज करें।
  • अर्घ्य से पहले पारण न करें: पहले संध्या और फिर उषा अर्घ्य के बाद ही व्रत तोड़ा जाए।
  • प्रसाद को झूठा न करें: प्रसाद को अत्यंत पवित्र भाव से बनाएं और अर्पित करें।
  • पूजा सामग्री को बिना हाथ धोए न छुएं: शुद्धता और श्रद्धा सर्वोपरि है।

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