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श्री बाबा बालक नाथ मंदिर, देओघट सोलन, हिमाचल प्रदेश

श्री बाबा बालक नाथ मंदिर, देओघट सोलन, हिमाचल प्रदेश

दयोट सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है बाबा बालक नाथ का ये मंदिर, महिलाओं को प्रवेश नहीं 


सिद्ध बाबा बालक नाथ एक हिंदू देव स्थान है। यहां पर देश भर से श्रद्धालु पधारते हैं। इस स्थान को दियोट सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है। ये पीठ हिमाचल के हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोट सिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर है। 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। 


रोट का लगता है भोग


मंदिर में पहाड़ी के बीच एक प्राकृतिक गुफा है, ऐसा मान्यता है कि यह स्थान बाबाजी का आवास स्थान था। मंदिर में बाबाजी की एक मूर्ति स्थित हैं, भक्तगण बाबा जी की वेदी में रोट चढ़ाते हैं। रोट को आटे और चीनी/गुड को घी में मिलाकर बनाया जाता है। यहां पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है, यहां पर बकरे की बलि नहीं चढ़ाई जाती है बल्कि उनका पालन-पोषण किया जाता है। बाबा जी की गुफा में महिलाओं के लिए प्रवेश प्रतिबंधित है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिल्कुल सामने एक ऊंचा चबूतरा बनाया गया है। इसी चबूतरे से महिलाएं उनके दर्शन कर सकती है। 


अखंड धूणा है आस्था का केन्द्र 


मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेज स्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूणे के पास ही बाबा जी का पुरतम चिमटा है। बाबा जी की गुफा के सामने ही एक सुंदर गैलरी है। बताया जाता है कि बाबा जी गुफा में अलोप हुए तो यहां एक (दियोट) दीपक जलता रहता था जिसकी रोशनी दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को दियोट सिद्ध के नाम से जानते हैं।


भगवान शिव से मिला आशीर्वाद 


बाबा बालक नाथ जी की कहानी बाबा बालक नाथ कथा में पढ़ी जा सकती है। मान्यता है कि बाबा जी का जन्म सभी युगों में हुआ जैसे सतयुग, त्रेतायुग और वर्तमान में कलयुग और हर युग में उन्हें अलग-अलग नामों से जाना गया जैसे सतयुग में स्कन्द, त्रेता युग में कौल और द्वापर युग में महाकौल के नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबों एवं निस्सहाय की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बड़े भक्त कहलाए। द्वापर युग में महाकौल जिस समय कैलाश पर्वत जा रहे थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गंतव्य में जाने का रास्ता पूछा, जब वृद्ध स्त्री को बाबाजी की इच्छा का पता लगा कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं, जो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती से उन तक पहुंचने पहुंचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने वैसा ही किया और अपने उद्देश्य से मिलने में सफल हुए। बालयोगी महाकौल को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबा जी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर पर पूजे जाने का आशीर्वाद दिया और चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशीर्वाद दिया। 


कलयुग में लिया देव के नाम से जन्म


कलयुग में बाबा बालकनाथ जी ने गुजरात, काठियाबाद में देव के नाम से जन्म लिया। उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था, बचपन से ही बाबाजी अध्यात्म में लीन रहते थे। ये देखकर उनके माता पिता उनका विवाह करने का निश्चिय किया, लेकिन बाबाजी उनके प्रस्ताव को अस्वीकार करके और घर परिवार को छोड़ कर परम सिद्धि की राह पर निकल पड़े। और एक दिन जूनागढ़ की गिरनार पहाड़ी में उनका सामना स्वामी दत्तात्रेय से हुआ और यहीं पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय ये सिद्ध की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और सिद्ध की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और सिद्ध बने। तभी से उन्हें बाबा बालकनाथ जी कहा जाने लगा।


बाबाजी के दो पृथक साक्ष्य आज भी मौजूद


बाबाजी के दो पृथक साक्ष्य आज भी है जो उनकी उपस्थिति के प्रमाण हैं जिनमें से एक है गरुण का पेड़, यह पेड़ अभी भी शाहतलाई में मौजूद है, इसी पेड़ के नीचे बाबाजी तपस्या किया करते थे। दूसरा प्रमाण एक पुराना पोलिश स्टेशन है, जो कि बड़सर में स्थित है जहां पर उन गायों के रखा गया था जिन्होंने सभी खेतों की फसल खराब कर दी थी।


रविवार को होती है भीड़


इस पवित्र स्थान पर साल के दौरान कभी भी जा सकते हैं। रविवार तो बाबाजी के शुभ दिन के रुप में माना जाता है, इसलिए आमतौर पर सप्ताहांत पर और विशेष रुप से रविवार को यहां पर बहुत भीड़ होती है। हर साल यहां पर 14 मार्च से 13 अप्रैल तक चैत्र मास से मेले लगते हैं।


श्री बाबा बालक नाथ मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - हमीरपुर जिले में कोई भी हवाई अड्डा नहीं है, अंतः इस स्थान पर आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा धर्मशाला के पास कांगड़ा है जो यहां से लगभग 128 किमी दूर है। वहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग - यहां के लिए कोई सीधा रेलवे कनेक्शन नहीं है। दियोटसिद्ध से निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना है। ऊना रेलवे स्टेशन यहां से लगभग 55 किमी दूर है। यहां से आप स्थानीय बस सेवा ले सकते हैं, या टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं

सड़क मार्ग - ये जगह हिमाचल और पड़ोसी राज्यों के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। इस जगह पर नियमित बस सेवा उपलब्ध हैं। टैक्सी सेवा भी यहां पर आसानी से उपलब्ध है।


मंदिर का समय- सुबह 5 बजे से लेकर रात 9 बजे तक।
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