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विश्व भर में प्रसिद्ध बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने आप में अनोखे और सिद्ध हैं। भगवान भोलेनाथ भगवान श्री गणेश के पिता हैं इसलिए जहां बाबा विराजते हैं, वहां उनके पुत्र का होना लाजमी सी बात है। उज्जैन में महाकाल मंदिर के समीप एक गणेश मंदिर है जिसे बड़े गणपति या बड़े गणेश के नाम से जाना जाता है। दरअसल मंदिर को बड़ा गणेश मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां स्थापित गणेशजी की मूर्ति विश्व की सबसे ऊंची गणेश प्रतिमाओं में से एक है और इस मूर्ति का निर्माण संगमरमर, सीमेंट या किसी अनोखे पत्थर से नहीं बल्कि मसालों से किया गया है।
मसालों से बनी से गणेश जी की प्रतिमा
बड़े गणेश मंदिर में विराजित गणेश जी की इस भव्य मूर्ति को लेकर कहा जाता है कि इस मूर्ति को लगभग 115 साल पहले मंदिर में स्थापित किया गया था। प्रतिमा की स्थापना महर्षि गुरु महाराज सिद्धांत वागेश पं. नारायणजी व्यास ने करवाई थी। भगवान श्री गणेश की इस मूर्ति में गुड़ और मेथी दानों का प्रयोग किया गया है। साथ ही इस मूर्ति को बनाने में सभी पवित्र तीर्थ स्थलों का जल भी और सात मोक्षपुरियों यानी मथुरा, द्वारिका, अयोध्या, कांची, उज्जैन, काशी और हरिद्वार से लाई हुई मिट्टी भी मिलाई गई है। सभी पवित्र तीर्थ स्थलों के जल और मोक्षपुरियों की मिट्टी के चलते इस स्थान को और भी अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां रहने वाले पुराने लोग ये बताते हैं कि मूर्ति निर्माण में करीब ढाई वर्ष का समय लगा था।
कैसा है बड़ा गणपति का स्वरूप?
मंदिर में स्थापित गणेशजी की प्रतिमा लगभग 18 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी है। मूर्ति में भगवान गणेश की सूंड दक्षिणावर्ती है। प्रतिमा के मस्तक पर त्रिशूल और स्वास्तिक बना हुआ है। दाहिनी ओर घूमी हुई सूंड में एक लड्डू दबा है। भगवान गणेशजी के कान विशाल हैं और गले में पुष्प माला है। दोनों ऊपरी हाथ जप मुद्रा में और नीचे के दाएं हाथ में माला व बाएं में लड्डू की थाल है।
मंदिर में स्थापित है 100 वर्ष पुरानी हनुमान जी की प्रतिमा
इस मंदिर को देशभर में इतनी ख्याति प्राप्त है कि रक्षाबंधन के पर्व पर देश-विदेश से महिलाएं गणेश जी के लिए राखियां भेजती हैं। इस मंदिर में एक ऐसा अनोखा शिवलिंग है जिसमें मध्य में बाबा महाकाल और आसपास 11 ज्योतिर्लिंग बने हुए हैं। 12 ज्योतिर्लिंग का यह शिवलिंग लगभग 90 वर्षों पुराना माना जाता है। इसके साथ ही मंदिर में लगभग 100 वर्ष पुरानी हनुमान जी की अष्टधातु से बनी पंचमुखी प्रतिमा भी स्थापित है। इस मूर्ति को लेकर कहा जाता है कि ये प्रतिमा एक तांत्रिक द्वारा मंदिर को दी गई थी। प्रतिमा को देते वक्त तांत्रिक ने कहा था कि इस प्रतिमा को ऐसे स्थान पर विराजित करना जहां पर इस प्रतिमा को श्रद्धालुओं द्वारा छुआ ना जा सके। इसलिए इस मूर्ति के चारों तरफ जालियां लगाई गई थीं। इसके साथ ही मंदिर में कुछ ऐसी प्रतिमा भी विराजमान है जो किसी और मंदिर मे कम ही देखने को मिलती हैं। इस मंदिर में पंचमुखी हनुमान की सिंदूर वाली प्रतिमा, कालिया मर्दन करते भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा और माता यशोदा की गोद में श्रीकृष्ण की प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर में दुर्गा माता की एक प्रतिमा है जो कि दुर्गा बाग पैलेस देवास से महाराजा पंवार के यहां से लाई गई है। बताया जाता है कि यह प्रतिमा काले पाषाण (पत्थर) की है जो कि अत्यंत चमत्कारी एवं दिव्य है।
मंदिर में दर्शन करने का समय
भगवान श्री गणेश का ये विशेष मंदिर सुबह 5 बजे - दोपहर 12 बजे तक और शाम 4 बजे से रात 8 बजे भक्तों के लिए खुला रहता है।
कैसे पहुंचे बड़ा गणपति
उज्जैन के बड़ा गणपति मंदिर पहुंचने के लिए आप देश के किसी भी शहर से ट्रेन, हवाई जहाज या फिर सड़क मार्ग का उपयोग कर सकते हैं।
ट्रेन- बड़े शहरों से आप आसानी से ट्रेन से जा सकते हैं। उज्जैन सिटी जंक्शन या विक्रम नगर रेलवे स्टेशन पहुंचकर यहां से कैब या ऑटो लेकर बड़ा गणेश मंदिर पहुंच सकते हैं।
हवाई जहाज- महारानी अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट उज्जैन का सबसे पास हवाई अड्डा है। यहां से आप टैक्सी बस या ट्रेन से मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क- आप बस या फिर पर्सनल ट्रांसपोर्ट की मदद से उज्जैन के बड़ा गणेश मंदिर पहुंच सकते हैं।
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9. चिंतामण गणेश मंदिर, सीहोर
श्री गणेश अपने चिंतामण रूप के देश में कुल चार स्थानों पर विराजित हैं। इनमें से दो मंदिर देश के हृदय कहे जाने वाले राज्य मध्यप्रदेश में जबकि एक गुजरात और एक राजस्थान में है। मध्य प्रदेश में चिंतामण गणेश के दो मंदिरों में पहला भोपाल संभाग के सीहोर जिले में और दूसरा उज्जैन के पास ग्राम ज्वासिया में है। माना जाता है कि ये मंदिर अपने आप में चमत्कारी और सिद्ध हैं। आज बात सीहोर के चिंतामण गणेश मंदिर की….
ये मंदिर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 37 किमी दक्षिण-पश्चिम में भोपाल-इंदौर राजमार्ग पर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का ये मंदिर करीब 2000 साल पुराना है। इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि यहां उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगने से वो मन्नत जरूर पूरी होती है। मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, खासकर गणेश चतुर्थी के दौरान यहां भक्तों में काफी उत्साह देखा जाता है।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य भगवान गणेश के उपासक थे और वे अक्सर राजस्थान में भगवान गणेश के दर्शन करने जाते रहते थे। एक बार उन्होंने भगवान गणेश से उनके महल में स्थापित होने की प्रार्थना की। भगवान गणेश राजा से प्रसन्न होकर उनके साथ कमल पुष्प के रूप में चलने के लिए तैयार हो गए। गणेश जी ने राजा के सामने शर्त रखी कि जहां कमल का फूल खिल जाएगा वे वहीं स्थापित हो जाएंगे। राजस्थान से वापस आते समय अचानक सीहोर के पास आकर एक स्थान पर रथ का पहिया जमीन में धंस गया। काफी कोशिशों को बाद भी रथ का पहिया निकल नहीं सका और सुबह होते ही कमल का फूल खिल कर गणेश जी की प्रतिमा के रूप में बदल गया। राजा ने स्थापित प्रतिमा को निकालने की कोशिश की लेकिन वह जमीन में धंसने लगी। बाद में भगवान की इच्छा समझकर राजा विक्रमादित्य ने सीहोर में ही मंदिर बनवाकर प्रतिमा स्थापित करा दी। भगवान गणेश की प्रतिमा आज भी आधी जमीन में धंसी हुई है।
इतिहासविदों की मानें तो मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने करवाया था। शालीवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय तथा गौंड राजा नवल शाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया था। नानाजी पेशवा विठूर के समय मंदिर की ख्याति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है।
गणपति की मूर्ति की आंख चांदी की बनी है
मंदिर में स्थापित गणपति की मूर्ति की आंख चांदी की बनी हुई हैं। कहा जाता है कि जब राजा विक्रमादित्य ने ये मूर्ति स्थापित की थी तब इस मूर्ति की आंखें हीरे की थीं। स्थानीय लोगों के अनुसार 150 साल पहले जब ये मंदिर खुले परिसर में था तो मूर्ति की हीरे की आंख चोरी हो गईं। कई दिनों तक आंख की जगह से दूध की धार टपकती रही और फिर मुख्य पुजारी के स्वप्न में गणपति जी ने आकर इस जगह चांदी की आंख लगाने का आदेश दिया। पुजारी ने इसे चिंतामन मंदिर में स्थापित गणपति के नए जन्म के रूप में माना और चांदी की आंख लगाने के अवसर पर भंडारा किया। तब से हर साल उस दिन की याद में यहां मेला लगता है।
उल्टे स्वास्तिक की कथा
यहां हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारा करने की प्रथा है। स्थानीय लोगों के अनुसार 60 साल पहले यहां प्लेग की बीमारी फैली थी। तब इसी मंदिर में लोगों ने इसके ठीक होने की प्रार्थना की और प्लेग के खत्म हो जाने पर गणेश चतुर्थी मनाए जाने की मन्नत रखी। प्लेग ठीक हो गया और तब से हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारे की यह प्रथा चली आ रही है। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगते हैं और पूरी हो जाने पर दोबारा आकर एक सीधा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत पूरी के लिए भगवानन गणेश को धन्याबाद करते हैं।
गणेशोत्सव पर लगता है मेला
चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर में गणेश चतुर्थी से लेकर 10 दिनों तक यानी पूरी गणेश उत्सव के दौरान मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान दूर-दूर से भक्त भगवान गणेश के दर्शन और आशीर्वाद लेने आते हैं। भगवान का रोज अलग-अलग तरह से श्रृंगार किया जाता है। जो भी इस मंदिर में सच्चे दिल से भगवान गणेश से कुछ मांगता है बप्पा उसकी मुराद जरूर पूरी करते हैं।
सीहोर गणेश मंदिर का समय
सीहोर का चिंतामण गणेश मंदिर सुबह 6:00 से भक्तों के लिए खुल जाता है जो रात 9:00 बजे तक खुला रहता है।
सीहोर गणेश मंदिर कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग- सीहोर गणेश मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा भोपाल हवाई अड्डा है जो इस मंदिर से लगभग 40 मिनट की दूरी पर है। यहां से आप स्थानीय परिवहन या टैक्सी का उपयोग करके आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।
ट्रेन- सीहोर गणेश मंदिर से निकटतम रेलवे स्टेशन सीहोर स्टेशन है, जो इस मंदिर से कुछ ही मिनट की दूरी पर है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग- इस मंदिर का रास्ता देश के अन्य सड़क मार्ग और हाइवे से बेहतरीन कनेक्टिविटी रखता है. इसलिए आप देश के किसी भी हिस्से से अपने वाहन या किसी सार्वजनिक बस-टैक्सी द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
मंदिर के पास कुछ फेमस बजट फ्रैंडली, 3-5 स्टार होटल्स भी हैं जहां आप स्टे कर सकते हैं।
होटल चंद्रयान
होटल कमला कुंज एंड रेसीडेन्सी
होटल पुर्णिमा पैलेस
होटल सुराना पैलेस
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