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5 am - 12 pm and 2 pm - 10 pm
मध्यप्रदेश अपने धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां के धार्मिक स्थल अपने आप में अनोखे और चमत्त्कारी है। एक ऐसा ही मंदिर अन्न और पोषण की देवी कही जाने वाली माता अन्नपूर्णा देवी का भी है। बता दें कि यह मंदिर इंदौर जंक्शन से 6 किमी की दूरी पर स्थित है जो कि इस शहर के सबसे पुराने तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है।
मंदिर की खास बात यह है कि यह इंडो-आर्यन और द्रविड़ स्थापत्य शैली का मिश्रण है। जो कि मदुरै के मीनाक्षी मंदिर जैसा दिखता है। 200 एकड़ में फैले इस मंदिर में संगमरमर से बनी अन्नपूर्णा माता की 3 फीट ऊंची मूर्ति भी स्थापित है। अन्नपूर्णा मंदिर की ऊंचाई 100 फीट से भी अधिक है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिण भारतीय वास्तुकला के अनुसार चार बड़े हाथियों की पीठ पर बनाया गया है। अन्नपूर्णा मंदिर के अंदर आपको मां काली और मां सरस्वती के साथ चमकती हुई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति दिखाई देगी। साथ ही भगवान शिव, भगवान हनुमान और कालभैरव जैसे विभिन्न देवताओं की मूर्तियां भी मंदिर में स्थापित हैं। मंदिर परिसर के अंदर एक बड़ा कृष्ण मंदिर भी है जहां आप दीवारों पर भगवान कृष्ण के जीवन का सचित्र चित्रण भी देख सकते हैं। मंदिर की बाहरी दीवार को हिंदू पौराणिक पुस्तकों के पौराणिक पात्रों से खूबसूरती से सजाया गया है। अन्नपूर्णा मंदिर के अंदर खूबसूरत गौशाला भी देखने को मिलती है।
सनातन शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में एक बार धरती पर अन्न की कमी हो गई थी। इससे धरती पर हाहाकार मच गया। उस समय धरती वासियों ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी की पूजा-उपासना की और अन्न की समस्या को दूर करने की कामना की। पृथ्वीवासियों की व्यथा सुन भगवान विष्णु ने चराचर के स्वामी भगवान शिव को इसके बारे में बताया। यह जान स्वयं देवों के देव महादेव एवं माता पार्वती धरती लोक पर आये। अन्न की कमी को दूर करने के लिए जगत जननी मां पार्वती ने अन्नपूर्णा स्वरूप लिया और भगवान शिव को दान में अन्न दिया। उस समय भगवान शिव ने दान में मिले अन्न को पृथ्वी वासियों में बांट दिया। इससे पृथ्वी पर होने वाली अन्न की समस्या दूर हुई। और तभी से माता अन्नपूर्णा को अन्न की देवी के रूप में पूजा जाने लगा।
मां अन्नपूर्णा मंदिर मूल रूप से 9वीं शताब्दी में बनाया गया था और 1959 में महामंडलेश्वर स्वामी प्रबानंदगिरिमहाराज द्वारा इसका जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण कराया गया था। अन्नपूर्णा मंदिर का प्रवेश द्वार चार आदमकद हाथियों की पीठ पर बनाया गया है। जिसे 1975 में दक्षिणी भारतीय वास्तुकला का पालन करते हुए बनाया गया है।
मंदिर सुबह 5 बजे खुल जाता है और दोपहर 12 बजे बंद होता है। इसके बाद दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक ये मंदिर खुला रहता है। मंदिर में प्रवेश पूरी तरह से निशुल्क है।
नई दिल्ली से इंदौर की दूरी- 816.8 km है।
हवाईजहाज :
मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्या बाई होल्कर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहां घरेलू उड़ानें उपलब्ध हैं और पर्यटकों के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी हैं। इंदौर से दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बैंगलोर जैसे प्रमुख शहरों के लिए सरकारी और निजी एयरलाइन सेवाएं उपलब्ध हैं। अन्नपूर्णा मंदिर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 8.4 किमी की दूरी पर है। आप हवाई अड्डे से बहुत सुविधाजनक कैब सेवा या स्थानीय बस द्वारा यात्रा कर सकते हैं ।
रेल द्वारा:
इंदौर रेलवे स्टेशन देश के अन्य स्थानों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से मां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर मात्र 2 किमी की दूरी पर स्थित है जहां से आप किसी भी लोकल ट्रांसपोर्ट के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़क द्वारा:
इंदौर देश के अन्य शहरों से सड़क मार्ग से बेहतर रूप से जुड़ा हुआ है, यहां पहुंचने के लिए आप देश के किसी भी शहर से बस, कैब या पर्सनल व्हीकल का सहारा ले सकते हैं।
अघर आप इंदौर आ रहे हैं तो आप इंदौर के अन्नपूर्णा मंदिर के अलावा इन स्थानों को भी जरूर एक्सप्लोर कर सकते हैं:
- सर्राफा बाज़ार- 3.4 किमी दूर
- खजराना गणेश मंदिर- 8.7 किमी दूर
- माँ वैष्णो बांध- 1.8 किमी दूर
- राजवाड़ा इंदौर- 3.6 किमी दूर
सर्वोत्तम अनुभव के लिए आपको जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल महीनों के दौरान अन्नपूर्णा मंदिर के दर्शन करना चाहिए। इसके अलावा अन्नपूर्णा मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय नवरात्रि और अन्नपूर्णा जयंती के दौरान है। इन दोनों त्योहारों को बहुत धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
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