खजराना गणेश मंदिर, इंदौर (Khajrana Ganesh Mandir, Indore)

दर्शन समय

6:00 AM - 11:00 PM

मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और मिनी मुंबई के नाम से मशहूर इंदौर शहर विश्व भर में अपनी एक अलग पहचान रखता हैं। फिर चाहे वो खान-पान में हो या स्वच्छता में ये शहर हमेशा नंबर एक होने का दावा पेश करता रहा है। स्वाद और स्वच्छता के अलावा इंदौर धार्मिक लिहाज से भी एक शानदार शहर है। इस शहर में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपने आप में चमत्कारी और बहुत आकर्षक हैं। एक ऐसा ही मंदिर खजराना का गणेश मंदिर भी है। तो आईये जानते हैं इंदौर के खजराना वाले गणेश मंदिर के बारे में विस्तार से:


मान्यता : मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है कि गणेश जी की मूर्ति की पीठ पर उल्टा स्वस्तिक बनाने से मनोकामना पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने के बाद दोबारा मंदिर आकर भक्तों को सीधा स्वस्तिक बनाना होता है। एक अन्य मान्यता यह भी है कि मंदिर की तीन परिक्रमा लगाते हुए धागा बांधने से भी इच्छापूर्ति होती है। मंदिर में चौंकाने वाली बात यह है कि खजराना गणेश मंदिर एक ऐसा मंदिर है जिसकी चौखट पर पट नहीं है।


खजराना गणेश मंदिर से जुड़ा इतिहास 

कहा जाता है कि जब औरंगजेब ने मंदिर पर अपना आतंक मचाना शुरू किया था, उस वक़्त भगवान गणेश की मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए उनकी प्रतिमा को छुपा दिया गया था। इसके बाद जब वक़्त गुजर गया और हालात नियंत्रित हुए तब खुद भगवान गणेश ने मंगल भट्ट नामक भक्त के स्वप्न में आए और एक विशेष जगह पर खुदाई करने को कहा। स्वप्न में ही मंगल को आदेश हुआ कि अगर उस जगह खुदाई होती है तो वहां भगवान गणेश के मूर्ति प्राप्त होगी। इसके अलावा इंदौर की जननी कही जाने वाली माता अहिल्या को भी इसी प्रकार का एक स्वप्न आया था जिसमें उन्हें भक्त भट्ट से सम्पर्क करने का आदेश  प्राप्त हुआ था। 


माता आहिल्या और भक्त मंगल भट्ट ने स्वप्न में बताए गए स्थान पर खुदाई शुरू की थी तो पाषाण युग की एक मूर्ति प्राप्त हुई। मूर्ति निकालने के लिए खोदी गई जगह को कुंड का रूप दिया गया। माता अहिल्या अनन्य शिवभक्त थीं। वह भगवान गणेश की मूर्ति पाकर बहुत प्रसन्न हुईं। वे चाहती थीं कि इस मूर्ति की स्थापना राजवाड़े पर हो। जिस वजह से उन्होंने कई सैकड़ों मजदूरों को उस मूर्ति को खजराना से राजवाड़ा पहुंचाने का आदेश दिया लेकिन जब मजदूरों ने इस मूर्ति को उठाने का प्रयास किया तो वह उसे हिला भी नहीं सके। इसके बाद भक्त भट्ट ने माता अहिल्या से अनुमति मांग कर कहा कि भगवान गणेश का खुद आदेश इसी जगह स्थापित करने का है। लिहाजा बेहतर होगा कि इस मूर्ति को यही स्थापित कर दिया जाए। जिसके बाद माता अहिल्या ने मूर्ति को वहीं स्थापित करने की अनुमति दे दी। 


इसके बाद जैसे ही मंदिर के स्थान पर लाने के लिए मजदूर और अन्य भक्त मूर्ति उठाने पहुंचे तो भार एक दम कम हो गया। और मजूदर आसानी से इस मूर्ति को उठाकर स्थापना वाले स्थान पर ले गए, ये वाकई में एक चमत्कार था जिसे देखकर वहां के लोग दंग रह गए। इसके बाद खजराना गांव में ही भगवान की स्थापना की गई। इसके बाद वर्ष 1735 में होल्कर वंश की शासिक अहिल्याबाई होल्कर ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया और तभी से ये खजराना गणेश मंदिर के नाम प्रसिद्ध हो गया। भगवान गणेश की प्रतिमा निकालने के लिए जिस कुंड की खुदाई की गई थी वह आज भी मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित है। 


एक साल में एक सेंटीमीटर बढ़ जाती है गणेश जी की प्रतिमा

दरअसल 1735 में जब खजराना गणेश की मूर्ति की स्थापना हुई थी, तब यह मूर्ति ढाई फीट लंबी और सवा दो फीट चौड़ी थी। इसके साथ रिद्धी और सिद्धी की प्रतिमा भी थी। लेकिन अब भगवान गणेश की प्रतिमा करीब साढ़े चार फीट ऊंची और 5 फीट चौड़ी हो गई है। कहा जाता है कि भगवान के साथ लगी रिद्धी और सिद्धी की मूल प्रतिमा भी भगवान की प्रतिमा में ही समा गई है। इस कारण कुछ समय पहले मंदिर में नए सिरे से इनकी मूर्तियां लगवाई गईं। मंदिर के पुजारी के मुताबिक हर साल भगवान की मूर्ति करीब एक सेंटीमीटर बढ़ जाती है। पिछले 284 वर्षों में इसका आकार बढ़कर दोगुना हो गया है। मूर्ति पर रोज सवा किलो घी में आधा किलो सिंदूर मिलाकर चोला चढ़ाया जाता है। सिंदूर चढ़ाने की परंपरा 284 सालों से चली आ रही है। पुजारी जी के अनुसार रोज सुबह सवा किलो घी में आधा किलो सिन्दूर मिलाकर चोला चढ़ाया जाता है। यानी हर साल करीब 182 किलो सिंदूर और 456 किलो घी मूर्ति पर लग जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव और मां दुर्गा के मंदिर सहित छोटे-बड़े कुल 33 मंदिर हैं, जो अनेक देवी-देवताओ को समर्पित हैं। मंदिर परिसर में पीपल का एक प्राचीन पेड़ है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह भी मनोकामना पूर्ण करने वाला है।


खजराना गणेश मंदिर में दर्शन का समय 

खजराना गणेश मंदिर में दर्शन का समय सुबह 6 बजे से रात के 11 बजे तक हैं। भक्त इस समय में जाकर भगवान के दर्शन कर सकते हैं। 


खजराना गणेश मंदिर तक कैसे पहुंचे?

नई दिल्ली से इंदौर की दूरी- 816.8 km है।  


हवाईजहाज से: मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्या बाई होल्कर अंतरर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहां घरेलू उड़ानें उपलब्ध हैं और पर्यटकों के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी हैं।  इंदौर से दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बैंगलोर जैसे प्रमुख शहरों के लिए सरकारी और निजी एयरलाइन सेवाएं उपलब्ध हैं। खजराना गणेश मंदिर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 13.4 किमी की दूरी पर है। आप हवाई अड्डे से  बहुत सुविधाजनक कैब सेवा या स्थानीय बस द्वारा यात्रा कर सकते हैं ।


रेल द्वारा: इंदौर रेलवे स्टेशन देश के अन्य स्थानों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निकटतम रेलवे स्टेशन से खजराना गणेश मंदिर की दूरी 10.5 किमी है। आप आसानी से लोकल ट्रांसपोर्ट के जरिए मंदिर तक पहुंच सकते हैं। 


सड़क द्वारा - आप सड़क मार्ग से भी यात्रा कर सकते हैं, इंदौर के लिए देश के लगभग सभी शहरों से  बस और कैब सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा आप अपने वाहन से भी इंदौर तक पहुंच सकते हैं।


इंदौर में इन Hotels में कर सकते हैं स्टे 

Indore Marriott Hotel 

Radisson Blu Hotel

Leela Homestay

The Park 

Sheraton Grand Palace

Hotel Paradise Inn


खजराना गणेश मंदिर के अलावा आप इंदौर में इन जगहों को भी एक्सप्लोर कर सकते हैं:


सर्राफा बाज़ार- 3.4 किमी दूर

मां वैष्णो बांध- 1.8 किमी दूर

राजवाड़ा इंदौर- 3.6 किमी दूर

ट्रेजर आइलैंड मॉल-  5.4 किमी दूर


सर्वोत्तम अनुभव के लिए इस मौसम में मंदिर के करें दर्शन 

सर्वोत्तम अनुभव के लिए आपको जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल महीनों के दौरान खजराना गणेश मंदिर के दर्शन करना चाहिए।


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

मंदिर