हिंदू धर्म में भगवान इंद्र को देवताओं का राजा, वज्रधारी और वर्षा के देवता माना जाता है। वे स्वर्गलोक के अधिपति हैं और धर्म, शक्ति व मौसम पर उनका अधिकार बताया गया है। हालांकि आज भारत में भगवान इंद्र की पूजा व्यापक नहीं है, फिर भी कुछ ऐसे स्थल हैं जहां उन्हें सम्मानपूर्वक पूजा जाता है या उनकी कथाएं प्रचलित हैं। आइए जानें भारत में भगवान इंद्र से जुड़े कुछ प्रमुख स्थलों के बारे में।
1. इंद्रेश्वर महादेव मंदिर, त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर परिसर में एक छोटा किन्तु ऐतिहासिक इंद्रेश्वर महादेव मंदिर है। मान्यता है कि यहां भगवान इंद्र ने शिव की आराधना कर अपने पापों से मुक्ति पाई थी। यहां इंद्र की उपस्थिति को महत्त्वपूर्ण माना जाता है और विशेष पूजन सावन व शिवरात्रि पर होता है।
2. इंद्रसभा गुफा, एलोरा (महाराष्ट्र)
विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं में 'इंद्रसभा' नाम की एक जैन गुफा है, जिसमें यक्ष इंद्र की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह गुफा अपनी वास्तुकला और नाम के कारण इंद्र से जुड़ी हुई मानी जाती है। यहां इंद्र की प्रतिष्ठा जैन परंपरा में भी दर्शायी गई है।
3. सथ्यानाथेस्वरर मंदिर, कांचीपुरम (तमिलनाडु)
कांचीपुरम के इस प्रसिद्ध शिव मंदिर में यह मान्यता है कि भगवान इंद्र ने शिव की घोर तपस्या कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी यहां इंद्र की यह कथा श्रद्धा के साथ स्मरण की जाती है। यह स्थान शिव-इंद्र संबंधों का प्रतीक माना जाता है।
4. थानुमालयन मंदिर, सुचिंद्रम (तमिलनाडु)
यह मंदिर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों को समर्पित है, लेकिन इसकी विशेषता यह है कि यहां इंद्र से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। मान्यता है कि उन्होंने इस स्थल पर आकर शुद्धि प्राप्त की थी, इसलिए इसे 'सुधि-इंद्र' का स्थल भी कहा जाता है।
5. इंद्र प्रतिमा स्थल, चांडोरी (महाराष्ट्र)
महाराष्ट्र के नासिक जिले के चांडोरी गांव में एक प्राचीन मूर्ति पाई गई थी जिसे इंद्र की मूर्ति माना जाता है। यह मूर्ति 13वीं शताब्दी की है और हेमाड़पंथी शैली में बनी है। यह संकेत देती है कि उस काल में भी इंद्र की प्रतिष्ठा थी।
पौष माह की कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी का व्रत विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करने और व्रत रखने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सनातन धर्म में कलावा बांधने का काफ़ी महत्व है। इसे रक्षा सूत्र के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, हाथ पर कलावा बांधने की शुरुआत माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है।
सनातन धर्म के लोगों की भगवान कृष्ण से खास आस्था जुड़ी है। कृष्ण जी को भगवान विष्णु का ही एक अवतार माना जाता है, जो धैर्य, करुणा और प्रेम के प्रतीक हैं।
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो इस साल 22 दिसंबर को पड़ रही है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पहली पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्म की याद में मनाया जाता है।