हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतारों में तीसरा अवतार वराह का है, जिसमें उन्होंने सूअर के स्वरूप में पृथ्वी को जल से बाहर निकालकर पुनः स्थापना की। देशभर में भगवान वराह के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें से कुछ मंदिर ऐतिहासिक, शास्त्रीय और पुरातत्वीय दृष्टि से प्रमाणिक माने जाते हैं। ये मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि वास्तु, संस्कृति और परंपरा की दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध हैं।
राजस्थान के अजमेर जिले में पुष्कर सरोवर के समीप स्थित यह मंदिर सबसे प्राचीन और प्रमाणिक वराह मंदिरों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था, जिसे बाद में जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह द्वितीय ने 18वीं सदी में पुनर्निर्मित करवाया। यहां भगवान वराह की मूर्ति मानव शरीर और वराह मुख के रूप में स्थापित है। यह मंदिर पुष्कर के पंचतीर्थों में एक प्रमुख स्थल है।
चेन्नई के समीप स्थित यह मंदिर 108 दिव्यदेशों में से एक है। इसे नित्य कल्याण पेरुमाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। वैष्णव परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण यह मंदिर अलवार संतों की वाणी में भी वर्णित है। मान्यता है कि यहां भगवान वराह ने पृथ्वी देवी से विवाह किया था। यहां भगवान का स्वरूप अत्यंत सौम्य और दिव्य है।
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले में स्थित यह मंदिर वराह और नरसिंह दोनों स्वरूपों का दुर्लभ संगम है। यहां की प्रतिमा भगवान वराह नरसिंह स्वरूप की है, जिसे वर्षभर चंदन लेप से ढका जाता है। केवल अक्षय तृतीया पर ही बिना चंदन के मूर्ति के दर्शन होते हैं। यह मंदिर चोल और विजयनगर साम्राज्य द्वारा संरक्षित रहा है और इसके शिलालेख 11वीं शताब्दी के हैं।
मध्य प्रदेश के खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह में स्थित यह मंदिर चंदेल वंश द्वारा 10वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था। इसमें भगवान वराह की विशाल सैंडस्टोन की प्रतिमा है, जो स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है।
कर्नाटक के बदामी में स्थित रॉक-कट गुफा मंदिरों में तीसरी गुफा भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसमें वराह अवतार की भव्य मूर्ति दीवार में उकेरी गई है। यह छठी शताब्दी का मंदिर चालुक्य वंश द्वारा निर्मित माना जाता है।