भगवान विष्णु ने सतयुग, द्वापर और त्रेतायुग में अलग-अलग कारणों से अलग-अलग दशावतार लिए और समय-समय पर राक्षसों का संहार किया। इन्हीं अवतारों में से एक महत्वपूर्ण अवतार कूर्म है। भगवान ने इस रूप में समुद्र मंथन के दौरान अवतार लिया और देवताओं की सहायता की। भगवान ने कछुए का रूप लेकर मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था। हालांकि पौराणिक महत्व के बावजूद कूर्म अवतार के मंदिरों की संख्या काफी कम मानी जाती है। इस आर्टिकल हम देश भर में फैले भगवान इसी अवतार के मंदिरों के बारे में बताएंगे।
कूर्मनाथस्वामी का ये मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के श्री कूर्मम् गांव में स्थित है। यह कूर्म अवतार को समर्पित सबसे प्राचीन और प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला एक प्रमुख उदाहरण है। यहां कूर्म अवतार की स्वयंभू मूर्ति प्रतिष्ठित है, जो कछुए के आकार में है। मान्यता है कि इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। इसकी स्थापना के कई वर्षों बाद महान संत रामानुजाचार्य ने यहां दर्शन किए और इसे फिर से स्थापित करवाया। हर साल यहां कूर्म जंयती उत्सव और रथयात्रा निकलती है।
चित्तूर जिले के कुरमाई गांव में स्थित यह मंदिर भी भगवान विष्णु के कूर्म रूप को समर्पित है। यह मंदिर अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध है, लेकिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ भगवान की मूर्ति भक्तों को वरदान देने वाले स्वरूप में है, इसलिए इन्हें वरदराजस्वामी कहा जाता है। मंदिर में नियमित पूजन के साथ-साथ वार्षिक उत्सव भी मनाया जाता है, जो स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र होता है।
कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में स्थित यह मंदिर एक गुफा में बना है और भगवान विष्णु के गवी (गुफा) स्वरूप में पूजित होने के कारण प्रसिद्ध है। स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, यहाँ भगवान ने कूर्म रूप में प्रकट होकर ऋषियों को दर्शन दिए थे। मंदिर की शिला-मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है और इसका प्राकृतिक परिवेश अत्यंत शांतिपूर्ण है। यह मंदिर धार्मिक यात्रियों और पर्यावरण प्रेमियों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के गोहट क्षेत्र में स्थित यह मंदिर भी भगवान विष्णु के कूर्म रूप को समर्पित है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहाँ भगवान ने कूर्म रूप में प्रकट होकर भक्तों की रक्षा की थी। मंदिर की संरचना पारंपरिक बंगाली शैली की है और यहां विशेषकर कूर्म जयंती और विष्णु से जुड़े उत्सवों पर विशिष्ट अनुष्ठान होते हैं।