गणेश जी की उत्पत्ति, Ganesh Ji Ki Utpatti

मां गौरी के उबटन से हुआ विनायक गणेश का जन्म, सूर्य और शनिदेव भी जुड़ी हैं कथाएँ, कलयुग में कल्कि का साथ देंगे गजानन


प्रथम पूज्य भगवान शिव और माता गौरी के पुत्र भगवान गणेश के जन्म को लेकर कई कथाएं सुनाई जाती हैं। लेकिन शिवपुराण के अनुसार अधिक स्वीकार्यता और महत्व दिया जाता है। शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी। तभी उनकी सखी जया और विजया ने उनसे कहा था कि नंदी और अन्य सभी गण महादेव की आज्ञा का पालन करते हैं। ऐसे में आप अपनी सेवा के लिए एक गण की रचना करें। तभी पार्वती माता ने अपने शरीर पर से उबटन (इससे कहीं-कहीं मैल भी कहा गया है) उतारा और एक पुतला बना कर उसमे प्राण फूंक दिए। माता ने इस बालक को दरवाजे पर बिठाया और आदेश दिया कि किसी को भी अंदर प्रवेश मत करने देना। इसके बाद माता पार्वती स्नान करने चली गई। कुछ ही समय बाद वहां भगवान शिव आए जिन्हें द्वारपाल बने भगवान गणेश ने अंदर जाने से रोका। 


गणेश अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे थे, किन्तु भगवान शिव को नहीं जानते थे। गणेश जी द्वारा रोके जाने पर शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती को जब इस बात  लगा तो पहले तो वे पुत्र मोह में विलाप करने लगी और क्रोधवश संसार में प्रलय लाने को आतुर हो गई। उनके क्रोध से संसार कम्पायमान हो गया। माता के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने गरुड़ जी को उत्तर दिशा की ओर भेजा और आदेश दिया की जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सो रही हो उसके बच्चे का सिर ले आओ। बहुत ढूंढने के पश्चात गरुड़ जी को एक हथिनी मिली। अपनी शरीर की बनावट के कारण हथिनी अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सोई थी। भगवान शिव की आज्ञा से गरुड़ जी उसके बच्चे यानी शिशु हाथी का सिर काट कर ले आए। शिव जी ने अपनी शक्तियों से उस शिशु हाथी के सिर को बालक के धड़ पर रखकर बालक फिर से जीवित कर दिया। बालक को फिर से देख माता पार्वती का क्रोध शांत हो गया। यह समय भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के मध्याह्न का था। तभी से हम गणेश जी का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। 


इस घटनाक्रम के पीछे शिव को मिले इस श्राप का संबंध भी बताया गया है जो उन्हें कश्यप मुनि ने दिया था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने क्रोध में आकर सूर्य को अपने त्रिशूल के प्रहार से चेतनाहीन कर दिया। जिससे सूर्यदेव के पिता कश्यप मुनि क्रोधित हो गए और उन्होंने शिवजी को श्राप दिया कि जिस त्रिशूल से मेरे पुत्र का शरीर नष्ट हुआ है उसी से तुम्हारे पुत्र का मस्तक कटेगा।


गणेश के जन्म को शनि देव की दृष्टि के प्रभाव से संबंधित भी बताया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णन है कि जब सारे देवी-देवता श्री गणेश को आशीर्वाद दे रहे थे, तब शनिदेव ने उनकी ओर नहीं देखा। इस पर माता पार्वती ने शनिदेव से गणेश जी को आशीर्वाद न देने का कारण पूछा, तो उन्होंने जवाब में कहा कि मेरे देखने से गणेश का अमंगल हो सकता है। लेकिन जब माता पार्वती ने शनि देव को आदेश देते हुए बाध्य कर दिया तो उन्होंने गणेश जी पर अपनी दृष्टि डाली। इसके कुछ समय बाद ही वहां भगवान भोलेनाथ आए और यह सारा घटनाक्रम घटित हुआ।

 

गणेश जी के कार्तिकेय के अलावा चार और भाई 

गणेशजी के पिता देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर है और माता स्वयं शक्ति स्वरूपा माता पार्वती है। गणेशजी के भाई कार्तिकेय को हम सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद नाम से जानते हैं। लेकिन शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिकेय जी के अलावा भी गणेश जी के सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा नामक भाई है। उनकी एक बहन भी है जिनका नाम अशोक सुंदरी है। गजानंद गणपति महाराज की दो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि है। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के उनके दो पुत्र हैं। जिन्हें हम शुभ-लाभ नाम से जानते हैं। गणेश जी की बेटी संतोषी माता है। गणेश जी की बहुओं के नाम तुष्टि और पुष्टि है और पोते आमोद और प्रमोद हैं।


गणेश जी को मोदक और केला अति प्रिय 

गजमुख वाले जल तत्व के अधिपति गणेशजी को दूर्वा, लाल रंग के फूल, अस्त्र पाश और अंकुश अति प्रिय है। भोग में वे मोदक यानी लड्डू और केला पसंद करते हैं।


 संसार के प्रथम लेखक भी हैं गणेश जी 

गणेश जी ने महाभारत लिखी है। वेदव्यास जी की प्रेरणा से वे इस महाग्रंथ के रचनाकार हैं। वेदव्यास ने यह दायित्व गणेशजी को स्वयं दिया था। इस तरह से भगवान गणेश इस सृष्टि के प्रथम लेखक भी कहे जाते हैं।


गणेशजी के 12 प्रमुख नाम 

सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न नाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन। 


गणेश जी के अवतार  

गणेशजी सतयुग में कश्यप व अदिति के पुत्र के रूप में अवतरित हुए। सिंह पर सवार होकर दस भुजाओं वाले भगवान श्री गणपति ने देवतान्तक व नरान्तक नामक राक्षसों का संहार किया।


वहीं त्रेता युग में उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन जन्मे मयूर पर सवार गणेश जी श्वेत वर्ण में तीनों लोकों में मयूरेश्वर-नाम से विख्यात हुए। छ: भुजाओं वाले गणपति ने इस अवतार में सिंधु नामक दैत्य का विनाश किया और ब्रह्मदेव की कन्याओं, सिद्धि व रिद्धि से विवाह किया।


द्वापर युग में भी गणेश जी का अवतार हुआ था। इस अवतार में वे मूषक पर सवार, लाल वर्ण, चार भुजाओं के स्वरूप में गजानन नाम से प्रसिद्ध हुए।


कलयुग में गणेश अवतार के बारे में कहा गया है कि इस युग में भगवान गणेश धुम्रवर्ण और शुपकर्ण रूप में नीले रंग के घोड़े पर सवार होंगे। इस युग में गणेश जी अपनी चार भुजाओं और अतुल्य बल से भगवान कल्कि का साथ देंगे और पापियों का नाश करेंगें।

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