श्री तुलसी मैया की आरती (Shri Tulsi Maiya Ki Aarti)


जय जय तुलसी माता, सब जग की सुखदाता,

सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर,

रज से रक्षा कर भव त्राता।

जय जय तुलसी माता।



बटु पुत्री है श्यामा, सुर वल्ली है ग्राम्या,

विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता।

जय जय तुलसी माता।


हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित,

पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता।

जय जय तुलसी माता।


लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में,

मानव लोक तुम्हीं से, सुख सम्पत्ति पाता।

जय जय तुलसी माता।


हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी,

प्रेम अजब है श्री हरि का, तुम से अजब नाता।

जय जय तुलसी माता।


जय जय तुलसी माता, सब जग की सुखदाता

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सन्तान सप्तमी व्रत कथा (Santana Saptami Vrat Katha)

सन्तान सप्तमी व्रत कथा (यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है।) एक दिन महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् से कहा कि हे प्रभो!

ऋण-मोचक मंगल-स्तोत्रं (Rin Mochak Mangal Stotram)

मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद:। स्थिरासनो महाकाय: सर्व-कर्मावरोधकः॥1॥

भाद्रपद कृष्ण की अजा एकादशी (Bhaadrapad Krishn Ki Aja Ekaadashi)

युधिष्ठिर ने कहा-हे जनार्दन ! आगे अब आप मुझसे भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम और माहात्म्य का वर्णन करिये।

मैं बालक तू माता शेरां वालिए (Main Balak Tu Mata Sherawaliye)

मैं बालक तू माता शेरां वालिए,
है अटूट यह नाता शेरां वालिए ।
शेरां वालिए माँ, पहाड़ा वालिए माँ,
मेहरा वालिये माँ, ज्योतां वालिये माँ ॥
॥ मैं बालक तू माता शेरां वालिए...॥