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पूरे विश्व में वैसे तो भगवान गणेश के कई अनोखे और चमत्कारी मंदिर हैं उज्जैन के चिंतामण गणेश मंदिर तीर्थ स्थलों की सूची में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उज्जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर जवास्या गांव में भगवान श्री गणेश का यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर में नवविवाहित जोड़ों के साथ, नए वाहन खरीदने वाले लोग विशेष रूप से विघ्नविनाशक गणेश का आशीर्वाद लेने आते हैं। चिंतामण गणेश मंदिर में भगवान श्री गणेश के तीन रूप एक साथ विराजमान है। यही वजह से कि दूर-दूर से भक्त यहां खिंचे चले आते हैं।
चिंतामण गणेश मंदिर में भगवान का स्वरूप
स्कंदपुराण के अवंतिका खंड में इस मंदिर को विशेष महत्व दिया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते ही हमें गौरीसुत गणेश की तीन प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। यहां पार्वतीनंदन तीन रूपों में विराजमान हैं। पहला चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक। ऐसी मान्यता है कि चिंतामण गणेश चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं, जबकि इच्छामन अपने भक्तों की कामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेश का सिद्धिविनायक स्वरूप रिद्दी-सिद्धि प्रदान करता है। इस अद्भुत मंदिर की मूर्तियां स्वयंभू हैं। गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले जैसे ही आप ऊपर नजर उठाएंगे तो चिंतामण गणेश का एक श्लोक भी लिखा हुआ दिखाई देता है...
कल्याणानां निधये विधये संकल्पस्य कर्मजातस्य।
निधिपतये गणपतये चिन्तामण्ये नमस्कुर्म: ।।
चिंतामण गणेश मंदिर का इतिहास
चिंतामण मंदिर का इतिहास काफी दिलचस्प है। कहा जाता है कि ये मंदिर करीब सौ साल से अधिक प्राचीन है। कई लोगों का मानना है कि इस पवित्र मंदिर का निर्माण करीब 11वीं-12वीं शताब्दी के आसपास परमार शासकों द्वारा किया गया था। मंदिर के शिखर पर सिंह विराजमान है। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चिंतामण गणेश सीता द्वारा स्थापित षट् विनायकों में से एक हैं। जब भगवान श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अवंतिका खंड के महाकाल वन में प्रवेश किया था तब अपनी यात्रा की निर्विघ्नता के लिए षट् विनायकों की स्थापना की थी। ऐसी भी मान्यता है कि लंका से लौटते समय भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मण यहां रुके थे। यहीं पास में एक बावड़ी भी है जिसे लक्ष्मण बावड़ी के नाम से जाना जाता है। बावड़ी करीब 80 फुट गहरी है।
चिंतामण मंदिर की पौराणिक कथा
चिंतामण मंदिर की पौराणिक कथा भक्तों के लिए बेहद ही खास है। इस पवित्र मंदिर को लेकर दो मान्यताएं हैं।
पहली मान्यता- कहा जाता है कि इस पवित्र मंदिर के निर्माण के लिए गणेश भगवान स्वयं पृथ्वी पर आए थे।
दूसरी मान्यता- धार्मिक मान्यता के अनुसार चिंतामण गणेश मंदिर की स्थापना भगवान राम ने की थी। लोककथा के अनुसार भगवान राम में इस मंदिर की स्थापना वनवास के दौरान की थी।
मंदिर के प्रांगंण में स्थित बावड़ी के पीछे की कथा
स्वयं-भू स्थली के नाम से विख्यात चिंतामण गणपति की स्थापना के बारे में कई कहानियां प्रचलित है। ऐसे ही कथा के अनुसार राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र जी ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी। सतयुग में राम, लक्ष्मण और सीता मां वनवास पर थे तब वे घूमते-घूमते यहां पर आये तब सीता मां को बहुत प्यास लगी । लक्ष्मण जी ने तीर चलाकर इस स्थान से पानी निकला और यहां एक बावडी बन गई। माता सीता ने इसी जल से अपना उपवास खोला था। तभी भगवान राम ने चिंतामण, लक्ष्मण ने इच्छामण एवं सिद्धिविनायक की पूजा अर्चना की थी। मंदिर के सामने ही आज भी वह बावडी मौजूद है। जहां पर दर्शनार्थी दर्शन करते है। इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप महारानी अहिल्याबाई द्वारा करीब 250 वर्ष पूर्व बनाया गया था। इससे पहले परमार काल में भी इस मंदिर का जिर्णोद्धार हो चुका है। यह मंदिर जिन खंबों पर टिका हुआ है वह परमार कालीन ही हैं।
चिंतामण गणेश मंदिर दर्शन का समय
चिंतामण गणेश महाकाल मंदिर से केवल 20 मिनट की दूरी पर है। यहां आप परिवार जन और दोस्तों के साथ दर्शन करने के लिए आ सकते हैं। ये मंदिर सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है।
चिंतामण गणेश मंदिर के महोत्सव
भगवान गणेश के इस मंदिर में समय-समय पर कई महोत्सवों का आयोजन किया जाता है। जैसे चैत्रमास में यहां जत्रा की शुरूआत होती है। ये प्रथम पूज्य गणेश भगवान को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। ये महोत्सव इस महीने के प्रति बुधवार को आयोजित किया जाता है। जिसमें आसपास के ग्रामीण इलाकों के किसान मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। जत्रा की इस परंपरा में अब किसानों के साथ साथ आम लोग भी इसमें शामिल होने लगे हैं। जत्रा के समय चिंतामण के अलावा अन्य गणेश मंदिरों में जत्रा की धूम रहती है। गजानन भगवान का इस दिन विशेष श्रृंगार किया जाता है। मंदिर का प्रांगण की सजावट बहुत ही आकर्षित हेाती है । दुकानें सजी हुई व लोगों का जत्रा केा लेकर बहुत उत्साहित नजर आते हैं। चारों ओर लोगों की चहल पहल दिखाई पड़ती है। इस उत्सव के दौरान भगवान केा विशेष भोग भी लगाया जाता है। लोग मंदिरों में अपनी मान्यता पूरी हेाने पर क्विंटलों से भोग लगाते हैं। इसमें लोंगो द्वारा दान पुण्य भी किया जाता है। चैत्र माह के आखिरी बुधवार को इसका समापन हो जाता है।
मकर संक्रांति पर तिल महोत्सव का महत्व
मकर संक्रांति पर पतंग के साथ तिल्ली का भी महत्व है और पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान गणेश की माघ मास में तिल चतुर्थी पर तिल्ली का भोग लगाने का महत्व है। महिलाएं इस दिन व्रत करती है। और चिंतामण गणेश को तिल्ली का भोग लगाती है। समय के अनुसार तिल्ली चतुर्थी पर अब चिंतामण गणेश पर भव्य आयोजन होने लगा है इस दिन भगवान को सवा लाख लड्डूओं का महाभोग लगाया जाता है। तिल चतुर्थी पर भगवान गणेश के दर्शन मात्र से ही सभी भक्त चिंता से मुक्त रहते है।
उल्टा स्वास्तिक बनाने से पूर्ण होती मनोकामना!
भक्त गणेश जी के दर्शन कर मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना मांगते है और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह पुनः दर्शन करने आते है और मंदिर के पीछे सीधा स्वास्तिक बनाते हैे। कई भक्त यहां रक्षा सूत्र बांधते है और मनोकामना पूर्ण होने पर रक्षा सूत्र छोडने आते हैं।
कैसे पहुंचें चिंतामण गणेश मंदिर ?
चिंतामण गणेश मंदिर आप देश के किसी भी हिस्से से आसानी से पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग- चिंतामण गणेश मंदिर के पास में उज्जैन जंक्शन रेलवे स्टेशन है। उज्जैन रेलवे स्टेशन से टैक्सी, कैब या ऑटो लेकर आसानी से जा सकते हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर करीब 7 किमी की दूरी पर है।
हवाई मार्ग- चिंतामण गणेश के सबसे पास में अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट है। एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी करीब 58 किमी है। एयरपोर्ट से टैक्सी, कैब या ऑटो लेकर आसानी से जा सकते हैं।
सड़क मार्ग से- देश के किसी भी हिस्से से सड़क मार्ग द्वारा आप उज्जैन पहुंच सकते हैं। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के लगभग हर शहर से उज्जैन के लिए बस चलती रहती है।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
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