महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर देश के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है। इस मंदिर से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है कुशावर्त तीर्थ, जिसे गोदावरी नदी का प्रतीकात्मक उद्गम स्थल माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गोदावरी नदी ब्रह्मगिरि पर्वत से निकलकर कुछ दूर लुप्त हो जाती है और पुनः इसी कुंड में प्रकट होती है। यही कारण है कि इसे ‘तीर्थराज’ की उपाधि प्राप्त है और यहां स्नान को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
इस कुंड में श्रद्धालु किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या त्र्यंबकेश्वर दर्शन से पूर्व स्नान करते हैं। मान्यता है कि यहां स्नान करने मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
कुशावर्त कुंड लगभग 21 फीट गहरा है और इसका निर्माण 1750 ई. में होलकर राजवंश के रावजी आबाजी पारणेकर ने 8 लाख रुपये की लागत से कराया था। कुंड के चारों ओर सुंदर पत्थरों से बना पक्का घाट और बरामदे हैं, जिससे इसकी भव्यता और पवित्रता और बढ़ जाती है।
इस कुंड की संरचना षटकोणीय (छह कोने वाली) है और इसके हर कोने पर एक मंदिर स्थित है—
यह भी कहा जाता है कि कुंड से गोदावरी नदी का जल कहां और कैसे बहकर आगे बढ़ता है, यह आज तक एक रहस्य बना हुआ है।
कुशावर्त तीर्थ तक पहुंचना बेहद आसान है। नासिक से त्र्यंबकेश्वर महज 30 किलोमीटर दूर है और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। नजदीकी रेलवे स्टेशन नासिक रोड है जो लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि ओझर नासिक एयरपोर्ट करीब 24 किलोमीटर दूर स्थित है।
हर वर्ष लाखों श्रद्धालु कुशावर्त तीर्थ की यात्रा कर गोदावरी के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन कर पुण्य प्राप्त करते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि भारतीय संस्कृति और आस्था का जीवंत प्रतीक भी है।
देशभर में आदिवासियों की देवी के रूप में मशहूर हैं दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी देवी, नवरात्रि पर होती है गुप्त पूजा
एक करोड़ शिवलिंग वाली भूमि है जाजपुर, एकमात्र शक्तिपीठ जहां दो भुजाओं वाली महिषासुर मर्दिनी
श्रीलंका के नागद्वीप पर मौजूद है नागपूशनी शक्तिपीठ, नाग की भक्ति देख हीरों के व्यापारी ने करवाया था निर्माण
चीन के कब्जे वाले तिब्बत में है मनसा देवी शक्तिपीठ, यह पहुंचने की प्रक्रिया कठिन, जानें कौन सी सावधानियां जरूरी