श्री बाबुलनाथ मंदिर, मुंबई (Shri Babulnath Temple, Mumbai)

दर्शन समय

6 AM - 9 PM

चरवाहे के नाम पर पड़ा इस बाबा बाबुल नाथ का नाम, 25 सालों में हुआ मंदिर निर्माण 


मुंबई का बाबुलनाथ मंदिर देशभर के लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं। यह मंदिर मालाबार हिल्स के दक्षिण में एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। बाबुलनाथ भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। मरीन ड्राइव के आखिर में स्थित, यह मंदिर सोलंकी राजवंश के समय का है, उन्होंने 13वीं शताब्दी तक पश्चिमी भारत पर शासन किया था।


17वीं शताब्दी में शुरू हुआ मंदिर का निर्माण 


बाबुलनाथ मंदिर का निर्माण सन् 1806 ईं में किया गया था। इसके बाद सन् 1840 में भगवान शिव के परिवार के सदस्यों की मूर्तियों को यहां स्थापित किया गया। इनमें माता पार्वती, श्री गणेश जी, कार्तिकेय, नागदेव आदि के साथ ही शीतला माता, हनुमान जी, लक्ष्मीनारायण, गरुड़ और चंद्रदेव आदि की मूर्तियों को भी यहां स्थापित किया गया है। माना जाता है कि सन् 1780 में इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया था। माना जाता है कि मंदिर के निर्माण से बहुत पहले इस जगह पर एक शिवलिंग मौजूद था।


यह प्राचीन मंदिर मराठी शैली की वास्तुकला के लिए जाना जाता है। विदेश से आए पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र रहता है। श्री बाबुलनाथ महादेव देवालय नामक संस्था इस मंदिर की देखरेख करती है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां तो हैं ही इसके साथ ही लिफ्ट की सुविधा भी यहां दी गई। लेकिन भक्त सीढ़ियां चढ़कर ही मंदिर में दर्शन करने जाते हैं।



चरवाहे और कपिला गाय की कहानी 


इस मंदिर के इतिहास से संबंधित कई कथाएं प्रचलित है। इनमें से एक पौराणिक कथा के अनुसार मालाबार की पहाड़ी पर आज से लगभग 300 साल पहले बड़ा चरागाह रहता था। पहाड़ी और उसके आस-पास की जमीन का ज्यादातर हिस्सा सुनार पांडुरंग के पास था। इस सुनार पास कई गायें थी, जिसके लिए पांडुरंग ने एक चरवाहा रखा हुआ था, जिसका नाम बाबुल था। सभी गाय में से कपिला नाम की गाय सभी से ज्यादा दूध देती थी। लेकिन एक दिन पांडुरंग ने देखा कि कपिला कुछ दिनों से बिल्कुल भी दूध नहीं दे रही है, जिसके बाद उसने बाबुल से इसकी वजह पूछी और बाबुल ने जो उत्तर दिया उसे सुनकर पांडुरंग सुनार हैरान रह गया। बाबुल ने बताया कि ये घास खाने के बाद एक विशेष स्थान पर जाकर अपना दूध फेंक आती है। इसके बाद सुनार ने उस जगह की खुदाई करवाई तो उस खुदाई में काले रंग का स्वयंभू शिवलिंग निकला। तभी से लेकर आज तक उस स्थान पर बाबुलनाथ का पूजन किया जाता है। इसके बाद ही इस मंदिर का नाम उस चरवाहे के नाम पर रख दिया गया।


मंदिर में है ऑनलाइन दर्शन की सुविधा


इस मंदिर की खासियत यह भी है कि जो भक्त यहां नहीं पहुंच पाते है वे ऑनलाइन लाइव दर्शन का लाभ उठा सकते है। इस सेवा का लाभ लेने के लिए भक्तों तो किसी भी तरह को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है।


श्री बाबुलनाथ मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - बाबुलाल मंदिर से कुछ दूरी पर ही छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए इसका प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। 

रेल मार्ग - बाबुलनाथ मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन चरनी रोड है, जो मुंबई उपनगरीय रेलवे की पश्चिमी लाइन पर है। यह मंदिर से लगभग 1 किमी दूर है, जो इसे यात्रियों के लिए एक सुविधाजनक विकल्प बनाता है।

सड़क मार्ग - अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहते है तो आप मुख्य सड़कों या गामदेवी क्षेत्र की ओर जाने वाले वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे का इस्तेमाल कर सकते हैं। मंदिर चौपाटी बीच के पास स्थित है और अच्छी तरह से चिन्हित हैं।


मंदिर का समय - सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक।


डिसक्लेमर

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