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मीमांसा शास्त्र (Meemaansa Shaastr)

मीमांसा शास्त्र (Meemaansa Shaastr)

जैमिनी ऋषि द्वारा रचित मीमांसा शास्त्र में वैदिक यज्ञों में प्रयुक्त होने वाले मंत्रों के विभाग और यज्ञ प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। मीमांसा शास्त्र के मुताबिक यज्ञों के मंत्रों, श्रुति, वाक्य, प्रकरण, समाख्या और स्थान को मूल आधार माना जाता है, इस शास्त्र में राष्ट्र की उन्नति के लिए पारिवारिक जीवन से राष्ट्रीय जीवन के कर्तव्यों का भी वर्णन है, साथ ही इसमें अकर्तव्यों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी गई है। महर्षि जैमिनि ने लिए वेदों को धर्म का मुख्य प्रमाण बताया है।

दरअसल किसी विषय पर गहराई से विचार विमर्श करने को मीमांसा कहते हैं। मीमांसा दर्शन में धर्म क्या है इस विषय पर मीमांसा की गई है। मीमांसा के अनुसार ‘यतोभ्युदयनि: श्रेयस: सिद्धि: स धर्म:’ अर्थात जिससे इस लोक तथा परलोक में कल्याण की प्राप्ति होती है सिर्फ उसी को धर्म कहते हैं।

इसके अलावा मीमांसा दर्शन में कर्म को मुख्य सिद्धांत बताया गया है, यहां कर्म का अभिप्राय वैदिक कर्मकाण्ड से है, कर्मकाण्ड ही मीमांसा का सार है। शास्त्रीगण कहते हैं कि अन्य धर्मग्रंथों में जो स्थान ईश्वर को दिया गया है वही स्थान मीमांसा में कर्म का है। मीमांसक ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं मानते, वे कहते हैं कि कर्म अपना फल स्वयं देते हैं और कर्मों के फल के लिए किसी भी तरह ईश्वर की आवश्यक्ता नहीं होती है।

मीमांसा दर्शन के अनुसार वेद प्रतिपादित कर्म तीन प्रकार के होते हैं:

1. नित्य-नैमित्तिक कर्म

2. प्रतिषिद्ध कर्म

3. काम्य कर्म

इस क्रम में संध्यावंदन आदि नित्य कर्म हैं, किसी अवसर पर विशेष तौर पर किए जाने वाले कर्म श्राद्ध आदि नैमित्तिक कर्म हैं, वेद के द्वारा वर्जित किए गए कर्म प्रतिषिद्ध कर्म हैं जबकि किसी कामना विशेष से किया गया कर्म काम्य कर्म होता है।

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भोले मेरी नैया को भाव पार लगा देना (Bhole Meri Naiya Ko Bhav Paar Laga Dena)

भोले में तेरे दर पे,
कुछ आस लिए आया हूँ ,

भोले ने जिसे चाहा, मस्ताना बना डाला (Bhole Ne Jise Chaha Mastana Bana Dala)

भोले ने जिसे चाहा,
मस्ताना बना डाला ॥

भोले ओ भोले आया दर पे (Bhole O Bhole Aaya Dar Pe)

भोले ओ भोले आया दर पे,
मेरे सिर पे,

भोले शंकर मैं तुम्हारा, लगता नहीं कोई (Bhole Shankar Main Tumhara Lagta Nahi Koi)

भोले शंकर मैं तुम्हारा,
लगता नहीं कोई,

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