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वेदान्त शास्त्र (Vedaant Shaastr)

वेदान्त शास्त्र (Vedaant Shaastr)

वेदान्त शास्त्र को महर्षि वेदव्यास द्वारा रचा गया है। इस शास्त्र में महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मासूत्र को मूल ग्रंथ माना है। जिसमें ब्रह्मा के सृष्टि का कर्ता-धर्ता और संहार कर्ता होने की बात निहित है। इस शास्त्र में कहा गया है कि ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ अर्थात जिसे ज्ञान प्राप्त करने के अभिलाषा है, वह ब्रह्म से अलग है, नहीं तो उसे स्वयं जानने की अभिलाषा नहीं होती। वेदांत शास्त्र ज्ञान योग का स्रोत कहा जाता है, ये मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में उत्साहित करता है।

विद्वानों का कहना है कि वेदान्त ज्ञानयोग का एक स्रोत है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। वेदान्त शास्त्र की तीन प्रमुख धाराएं मानी जाती हैं जिसमें अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत शामिल हैं और आदि शंकराचार्य, रामानुज और मध्वाचार्य को क्रमश: इन शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है।

वहीं अगर सरल भाषा में वेदान्त का शाब्दिक अर्थ देखों तो इस शब्द का अर्थ होता है ‘वेदों का अन्त’। वैदिक साहित्य का अंतिम भाग उपनिषद है, इसलिए उपनिषद को ‘वेदान्त’ भी कहा जाता है। उपनिषद को वेदो, ग्रंथो और वैदिक साहित्य का सार माना जाता है।

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मुझे चरणो से लगा ले, मेरे श्याम मुरली वाले (Mujhe Charno Se Lagale Mere Shyam Murliwale)

मुझे चरणो से लगा ले,
मेरे श्याम मुरली वाले,

मुझे दास बनाकर रख लेना भोलेनाथ तुम अपने चरणों में: शिव भजन (Mujhe Daas Bana Ke Rakh Lena Bholenath Tum Apne Charno Mein)

मुझे दास बनाकर रख लेना भोलेनाथ तुम अपने चरणों में,
मुझे दास बनाकर रख लेना भोलेनाथ तुम अपने चरणों में,

मुझे दास बनाकर रख लेना (Mujhe Das Banakar Rakh Lena)

मुझे दास बनाकर रख लेना,
भगवान तू अपने चरणों में,

मुझे झुँझनु में अगला जनम देना (Mujhe Jhunjhunu Me Agla Janam Dena)

मेरी भक्ति के बदले वचन देना,
मुझे झुँझनु में अगला जनम देना ॥

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