सांख्य शास्त्र (Saankhy Shaastr)

सांख्य शास्त्र को आमतौर पर सांख्य दर्शन के नाम से जाना जाता है। ये प्राचीन काल में बहुत अधिक लोकप्रिय रहा है। भारतीय परंपरा के अनुसार सांख्य दर्शन की रचना महर्षि कपिल ने की थी। जिसमें मुख्य रूप से वास्तविकता की प्रकृति, अस्तित्व के सिद्धांत और ब्रह्मांड की उत्पत्ति समझने से संबंधित है। सांख्य दर्शन को भारत वर्ष की आस्तिक विचारधारा का प्राचीन दर्शन कहा जाता है, जिसका उल्लेख महाभारत, रामायण, श्रुति, स्मृति और पुराण में मिलता है।

सांख्य दर्शन के विषय में विद्वानों के दो दृष्टिकोण हैं, पहले दृष्टिकोण के अनुसार सांख्य दर्शन में न्याय शास्त्र में दिए गए 24 तत्वों की विवेचना की गई है इसलिए इसे सांख्य दर्शन कहा जाता है, जबकि दूसरे दृष्टिकोण के मुताबिक इसमें 24 तत्वों के साथ जब पुरुष को शामिल किया गया तो तत्वों की संख्या 25 हो गई, अत: इस दर्शन में सृष्टि के पच्चीस तत्वों की विवेचना प्राप्त होती है जिस कारण इसे सांख्य दर्शन कहा जाता है।

इसके अलावा सांख्य दर्शन को एक प्रकार का द्वैतवाती दर्शन भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें दो स्वतंत्र स्वीकार किए गए हैं. इसमें पहला है पुरुष और दूसरा प्रकृति. पुरुष सांख्य दर्शन का आत्म तत्व है जो शरीर, इंद्रीय, मन, बुद्धि आदि से भिन्न है और चैतन्य स्वरूप में है, जबकि प्रकृति को त्रिगुणात्मिका कहा गया है जिसमें इस विश्व के मूल कारण का वर्णन किया गया है।

कहा जाता है कि सांख्य दर्शन भारतीय दर्शन की पहली ऐसी विचारधारा है जो एक मूलभूत कारण से संपूर्ण सृष्टि के विकास की अवधारणा का जिक्र करती है।

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