वैशेषिक दर्शन शास्त्रों में चतुर्थ नंबर का स्थान रखता है, इस शास्त्र की रचना महर्षि कणाद द्वारा की गई है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दर्शन का विकास 300 ई.पू. के आसपास हुआ है। इस दर्शन में आत्मा के भेद तथा उसमें रहने वाले विशेष गुणों का व्याख्यान किया गया है। वैशेषिक शास्त्र के अनुसार लौकिक प्रशंसा और सिद्धि के साधन को धर्म बताया गया है, इसके अनुसार मानव कल्याण के लिए धर्म का आचरण बेहद जरूरी होता है, जिसमें सात पदार्थ निहित हैं। इन सात पदार्थों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है जिसमें द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य,विशेष, समवाय और अभाव पदार्थ में के अंदर अभाव को रखा गया है। इसके अलावा इसमें नौ प्रकार के द्रव्यों का भी वर्णन मिलता है, जो पृथ्वी, आग, तेज, आकाश, वायु, काल, दिक्, आत्मा और मन हैं।
वैशेषिक शास्त्र में दस अध्याय हैं जिनमें प्रत्येक अध्याय में दो-दो आह्निक तथा 370 सूत्र हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य नि:श्रेयस की प्राप्ति है।
हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। इन दस अवतारों में से अंतिम अवतार कल्कि का है।
हमारा भारत देश बहुत ही विभिन्न विधिताओं से परिपूर्ण है। यहां बहुत सारे सुंदर नजारे देखने को मिलते हैं, जैसे कि पहाड़, समुद्र और नदियां आदि। गंगा और यमुना जैसी बड़ी-बड़ी नदियों के अलावा, हमारे देश में सरस्वती जैसी पौराणिक नदी भी रही है।
उदासीन संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़े हैं। इनमें से एक अखाड़ा है , उदासीन नया अखाड़ा। इस अखाड़े की स्थापना 1902 में हुई थी। इसका प्रमुख केंद्र कनखल, हरिद्वार में स्थित है।
उदासीन संप्रदाय का निर्मल पंचायती अखाड़ा देश के प्रमुख अखाड़े में गिना जाता है। यह इकलौता अखाड़ा है , जहां हिंदू और सिख समुदाय का समागम देखने को मिलता है।