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सदा शिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान

सदा शिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान

सदा शिव के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान हिंदी अर्थ सहित

भगवान् सदाशिव

यो धत्ते भुवनानि सप्त गुणवान् स्त्रष्टा रजःसंश्रयः  
संहर्ता तमसान्वितो गुणवतीं मायामतीत्य स्थितः ।  
सत्यानन्दमनन्तबोधममलं ब्रह्मादिसंज्ञास्पदं  
नित्यं सत्त्वसमन्वयादधिगतं पूर्ण शिवं धीमहि ॥

परमात्मप्रभु शिव

वेदान्तेषु यमाहुरेकपुरुषं व्याप्य स्थितं रोदसी  
यस्मिन्नीश्वर इत्यनन्यविषयः शब्दो यथार्थाक्षरः ।  
अन्तर्यश्च मुमुक्षुभिर्नियमितप्राणादिभिर्मृग्यते  
स स्थाणुः स्थिरभक्तयोगसुलभो निः श्रेयसायास्तु वः ॥

मंगलस्वरूप भगवान् शिव

कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्त्राम्बुजं  
शशाङ्ककलयोज्ज्वलं शमितघोरतापत्रयम् ।  
करोतु किमपि स्फुरत्परमसौख्यसच्चिद्वपुः  
र्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम् ॥

भगवान् अर्धनारीश्वर  

नीलप्रवालरुचिरं पाशारुणोत्पलकपालत्रिशूलहस्तं  

विलसत्रिनेत्रं अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्तभूषं  

बालेन्दुबद्धमुकुटं प्रणमामि रूपम् ॥

यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो  

यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ ।  

प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं योगिनस्तस्मै  

शैलसुताञ्चितार्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे ॥

भगवान् शंकर

वन्दनतुष्टमानसमतिप्रेमप्रियं प्रेमदं  
पूर्ण पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वर्यैकवासं शिवम् ।  
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं  
विष्णुब्रह्मनुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शंकरम् ॥

गौरीपति भगवान् शिव

विश्वोद्भवस्थितिलयादिषु हेतुमेकं  
मायाश्रयं विदिततत्त्वमनन्तकीर्तिम् ।  
विगतमायमचिन्त्यरूपं बोधस्वरूपममलं हि  
शिवं नमामि गौरीपतिं ॥

महामहेश्वर

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं  
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।  
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं  
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

पञ्चमुख सदाशिव

मुक्तापीतपयोदमौक्तिकजवावर्णैर्मुखैः पञ्चभिः  
स्त्र्यक्षैरञ्चितमीशमिन्दुमुकुटं पूर्णेन्दुकोटिप्रभम् ।  
शूलं टङ्ककृपाणवज्रदहनान् नागेन्द्रघण्टाङ्कुशान्  
पाशं भीतिहरं दधानममिताकल्पोज्ज्वलं चिन्तयेत् ॥

अम्बिकेश्वर

आद्यन्तमङ्गलमजातसमानभावमार्यतमीशमजरामरमात्मदेवम् ।  
पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं सम्भावये मनसि  
शंकरमम्बिकेशम् ॥
शूलाही टङ्कघण्टासिशृणिकुलिशपाशाग्न्यभीतीर्दधानं  
दोर्भिः शीतांशुखण्डप्रतिघटितजटाभारमौलिं त्रिनेत्रम् ।  
नानाकल्पाभिरामापघनमभिमतार्थप्रदं सुप्रसन्नं  
पद्मस्थं पञ्चवक्त्रं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ॥

भगवान् महाकाल

स्रष्टारोऽपि प्रजानां प्रबलभवभयाद्यं नमस्यन्ति देवा  
यश्चित्ते सम्प्रविष्टोऽप्यवहितमनसां ध्यानमुक्तात्मनां च ।  
लोकानामादिदेवः स जयतु भगवाञ्छ्रीमहाकालनामा  
बिभ्राणः सोमलेखामहिवलययुतं व्यक्तलिङ्गं कपालम् ॥

श्रीनीलकण्ठ

बालार्कायुततेजसं धृतजटाजूटेन्दुखण्डोज्वलं  
नागेन्द्रैः कृतभूषणं जपवटीं शूलं कपालं करैः ।  
खट्वाङ्गं दधतं त्रिनेत्रविलसत्पञ्चाननं सुन्दरं  
व्याघ्रत्वक्परिधानमब्जनिलयं श्रीनीलकण्ठं भजे ॥

पशुपति

मध्याहार्कसमप्रभं शशिधरं भीमादृहासोज्वलं  
त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रुस्फुरन्मूर्धजम् ।  
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुद्गरमसिं शक्तिं दधानं विभुं  
दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररूपं स्मरेत् ॥

भगवान् दक्षिणामूर्ति

मुद्रां भद्रार्थदात्रीं सपरशुहरिणां बाहुभिर्बाहुमेकं  
जान्वासक्तं दधानो भुजगवरसमाबद्धकक्षो वटाधः ।  
आसीनश्चन्द्रखण्डप्रतिघटितजटः क्षीरगौरस्त्रिनेत्रो  
दद्यादाद्यैः शुकाद्यैर्मुनिभिरभिवृतो भावशुद्धिं भवो वः ॥

महामृत्युंजय

हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो  
द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम् ।  
अङ्कन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं  
स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ॥
हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्धृत्य तोयं शिरः  
सिञ्चन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वाङ्के सकुम्भौ करौ ।  
अक्षत्रगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्त्रवत्पीयूषार्द्रतनुं  
भजे सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युञ्जयम् ॥

भावार्थ - 

भगवान् सदाशिव

जो रजोगुण का आश्रय लेकर संसार की सृष्टि करते हैं,

 सत्त्वगुण से सम्पन्न होकर सातों भुवनों का धारण-पोषण करते हैं,

 तमोगुण से युक्त होकर सबका संहार करते हैं और त्रिगुणमयी

 माया को लांघकर अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित रहते हैं,

 उन सत्यानन्दस्वरूप, अनन्त बोधमय, निर्मल एवं पूर्णब्रह्म शिव का

 हम ध्यान करते हैं। वे ही सृष्टिकाल में ब्रह्मा, पालन के समय

 विष्णु और संहारकाल में रुद्र नाम धारण करते हैं तथा सदैव

 सात्त्विक भाव से ही प्राप्त होते हैं।

परमात्मप्रभु शिव

 वेदान्त ग्रन्थों में जिन्हें एकमात्र परम पुरुष परमात्मा कहा गया है,

 जिन्होंने सम्पूर्ण द्यावा–पृथ्वी को अन्तर्बाह्य व्याप्त कर रखा है,

 ‘ईश्वर’ शब्द अक्षरशः जिनके लिए ही प्रयुक्त होता है

 और जो किसी अन्य के विशेषण नहीं हो सकते,

 योगीजन अपने प्राणों को संयमित करके जिनका चिन्तन करते हैं,

 वे अचल स्वरूप, भक्तियोग से सहज प्राप्त होनेवाले

 भगवान् शिव आप सबके परम कल्याण का कारण बनें।

मंगलस्वरूप भगवान् शिव

 जिनकी कृपापूर्ण चितवन अत्यन्त सुन्दर है,

 जिनका मुखमण्डल मंद मुस्कान से अत्यन्त मनोहर है,

 जो चन्द्रमा की कला के समान उज्ज्वल हैं,

 जो आत्मिक आदि तीनों तापों को शान्त करने में समर्थ हैं,

 जिनका स्वरूप सच्चिदानन्द और परमानन्दस्वरूप है

 तथा जो गिरिराजकुमारी पार्वती के भुजाओं में समाहित हैं,

 वे शिव – वह तेजस्वी मंगलस्वरूप – आप सबका कल्याण करें।

भगवान् अर्धनारीश्वर

 श्रीशंकर का शरीर नीलमणि और प्रवाल के समान नीललोहित है,

 तीन नेत्र हैं, चार हाथों में पाश, रक्तकमल, खोपड़ी और त्रिशूल हैं,

 ललाट पर अर्धचन्द्र और सिर पर मुकुट है।

 आधे अंग में पार्वती और आधे में महादेव हैं,

 दोनों अंग भिन्न-भिन्न अलंकरणों से सज्जित हैं।

 ऐसे अद्भुत रूप वाले शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

जो भगवान् मायारहित होते हुए भी अपनी ही माया से

 संपूर्ण सृष्टि का स्वरूप धारण करते हैं,

 जिनका कृपाकटाक्ष ही स्वर्ग और मोक्ष का हेतु है,

 योगीजन जिनका अनुभव आत्मानन्दस्वरूप में करते हैं,

 और जिनके आधे शरीर में पार्वती सुशोभित हैं —

 उन तेजोमय भगवान् शंकर को मेरा बारम्बार प्रणाम है।

भगवान् शंकर

 जिनके मन को वन्दन से प्रसन्नता मिलती है,

 जिन्हें प्रेम अत्यन्त प्रिय है,

 जो प्रेम देनेवाले हैं,

 जो पूर्ण आनन्दस्वरूप हैं,

 जो भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं,

 जो सम्पूर्ण ऐश्वर्य के एकमात्र स्थान हैं —

 ऐसे शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

सत्यस्वरूप, सत्यमय, त्रिकालबाधित ऐश्वर्य से युक्त,

 सत्यप्रिय और सत्यदायक शिव को,

 जिनकी स्तुति विष्णु और ब्रह्मा करते हैं,

 जो इच्छानुसार स्वरूप धारण करते हैं,

 उन शंकर को मैं नमस्कार करता हूँ।

गौरीपति भगवान् शिव

 जो सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार के

 एकमात्र कारण हैं,

 गौरी के पति हैं,

 तत्त्वज्ञ हैं,

 जिनकी महिमा अनन्त है,

 जो मायामें रहते हुए भी उससे परे हैं,

 जिनका स्वरूप अचिन्त्य और विमल ज्ञानमय है —

 ऐसे गौरीपति शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

महामहेश्वर

 चाँदी के पर्वत के समान जिनका वर्ण है,

 जो चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करते हैं,

 रत्नमय अलंकारों से जिनका शरीर उज्ज्वल है,

 जिनके हाथों में परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा है,

 जो प्रसन्नचित्त हैं,

 कमल के आसन पर विराजमान हैं,

 चारों ओर देवगण उनकी स्तुति कर रहे हैं,

 जो बाघ की खाल पहनते हैं,

 जगत के आदिकारण, समस्त भय के नाशक,

 पाँच मुख और तीन नेत्रों वाले हैं —

 उन महेश्वर का मैं ध्यान करता हूँ।

पंचमुख सदाशिव

 जिनके पाँच मुख –

 ऊर्ध्वमुख हलके लाल वर्ण का,

 पूर्व मुख पीतवर्ण का,

 दक्षिण मुख नीलवर्ण का,

 पश्चिम मुख भूरे वर्ण का,

 उत्तर मुख गहरे लाल वर्ण का है —

 तीनों नेत्रों से सुशोभित,

 सभी मुखों पर मुकुट और चन्द्रमा से अलंकृत हैं,

 जिनका मुखमण्डल करोड़ों पूर्णचन्द्रों के समान तेजस्वी है,

 जो त्रिशूल, टंक, तलवार, वज्र, अग्नि, नाग, घंटा,

 अंकुश, पाश तथा अभय मुद्रा से युक्त हैं —

 उन अनन्त कल्याणमय सर्वेश्वर का ध्यान करना चाहिए।

अम्बिकेश्वर

 जो आदि और अन्त में तथा मध्य में भी नित्य मंगलमय हैं,

 जिनकी तुलना नहीं हो सकती,

 जो आत्मस्वरूप परमात्मा हैं,

 जिनके पाँच मुख हैं

 और जो सृष्टि, पालन, संहार, अनुग्रह और तिरोभाव

 पाँचों कार्य सहजता से करते हैं —

 उन अजर, अमर, सर्वश्रेष्ठ अम्बिकापति का मन ही मन ध्यान करें।

पार्वतीनाथ भगवान् पंचानन

 जो त्रिशूल, सर्प, टंक, घंटा, तलवार, अंकुश, वज्र, पाश,

 अग्नि और अभय मुद्रा धारण करते हैं,

 जिनके प्रत्येक मुख पर द्वितीया चन्द्रमा सुशोभित है,

 जिनके तीन नेत्र सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि हैं,

 जो कल्पवृक्षों के समान भक्तों की इच्छाएँ पूर्ण करते हैं,

 हमेशा प्रसन्न रहते हैं,

 कमल के आसन पर विराजमान हैं,

 पाँच मुख हैं,

 और वर्ण स्फटिक के समान निर्मल है —

 ऐसे पार्वतीनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ।

भगवान् महाकाल

 जिन्हें प्रजापति जैसे देवता भी

 संसार के भय से मुक्त होने के लिए नमस्कार करते हैं,

 जो ध्यानस्थ महात्माओं के हृदय में विराजमान रहते हैं,

 जो चन्द्रमा की कला, सर्पों के कंकण और व्यक्त लिंग (कपाल)

 को धारण करते हैं,

 जगत के आदि देव – भगवान् महाकाल – की जय हो।

श्रीनीलकण्ठ

 जो दस हजार सूर्य के समान तेजस्वी हैं,

 सिर पर जटाजूट, ललाट पर चन्द्रमा,

 सर्पों से अलंकृत, हाथों में जपमाला, त्रिशूल, कपाल और

 खट्वांग धारण किये हुए,

 तीन नेत्र, पाँच मुख और सुन्दर विग्रहधारी हैं,

 बाघाम्बर धारण किए हुए हैं,

 कमल पर विराजमान हैं —

 ऐसे श्रीनीलकण्ठ का भजन करें।

पशुपति

 जिनका शरीर दोपहर के सूर्य के समान देदीप्यमान है,

 मस्तक पर चन्द्रमा है,

 मुखमण्डल भयानक अट्टहास से चमक रहा है,

 सर्प जिनके आभूषण हैं,

 तीन नेत्र – सूर्य, चन्द्र और अग्नि रूप हैं,

 दाढ़ी और जटाएँ मोरपंखों के समान चमकती हैं,

 करकमलों में त्रिशूल, मुद्गर, तलवार और शक्ति धारण करते हैं,

 चार मुख और विकराल दाढ़ों से युक्त हैं —

 ऐसे दिव्य अस्त्रधारी पशुपतिनाथ का ध्यान करना चाहिए।

भगवान् दक्षिणामूर्ति

जो भगवान् दक्षिणामूर्ति

 अपने हाथों में भद्र मुद्रा, मृगी मुद्रा, परशु और एक हाथ

 घुटने पर टेके हुए हैं,

 कटि प्रदेश में नाग को लपेटे हुए,

 वटवृक्ष के नीचे विराजमान,

 जिनके प्रत्येक सिर पर चन्द्रमा जटाओं में स्थित है,

 वर्ण क्षीर के समान उज्ज्वल,

 तीन नेत्रधारी,

 सनकादि और शुकदेव जैसे मुनियों से घिरे हुए —

 वे भगवान् भव आप सभी को शुद्ध भावना प्रदान करें।

महामृत्युंजय

जो अष्टभुज हैं,

 एक हाथ में अक्षमाला, दूसरे में मृग मुद्रा है,

 दो हाथों से अमृतकलश से सिर को सींच रहे हैं,

 दो हाथों में कलश पकड़े हुए हैं,

 दो हाथों को गोद में रखकर उनमें अमृतपूर्ण घट धारण किये हैं,

 श्वेत कमल पर विराजमान हैं,

 मस्तक पर बालचन्द्र है,

 तीन नेत्र हैं —

 ऐसे कैलासपति मृत्युंजय भगवान् शिव की मैं शरण लेता हूँ।

जो अपने हाथों के युगल में रखे दो कलशों से जल निकालकर

 ऊपरी दो हाथों से मस्तक को सींचते हैं,

 अन्य दो हाथों से कलशों को गोद में पकड़े हुए हैं,

 रुद्राक्ष एवं मृगमुद्रा धारण करते हैं,

 कमल के आसन पर विराजमान हैं,

 सिर पर चन्द्रमा है,

 शरीर अमृतरस से सिक्त है,

 तीन नेत्र हैं,

 गिरिराजकुमारी उमा के साथ विराजमान हैं —

 ऐसे मृत्युंजय का मैं चिन्तन करता हूँ।

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बसंत पंचमी के दिन अमृत स्नान का महत्व और शुभ मुहूर्त

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बसंत पंचमी पर बृहस्पति से इन राशियों को फायदा

ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का बहुत महत्व है, और ग्रहों की स्थिति हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। गुरु, जिसे बृहस्पति भी कहा जाता है, को देवताओं का गुरु माना जाता है और इसका कुंडली में विशेष महत्व होता है।

बसंत पंचमी पर 144 वर्ष बाद बन रहा है विशेष योग

बसंत पंचमी का दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है और विधि-विधान से माता सरस्वती की पूजा की जाती है।

फरवरी के पहले सप्ताह के व्रत-त्योहार

फरवरी का महीना धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस महीने में फाल्गुन माह की शुरुआत होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फरवरी 2025 में कई प्रमुख व्रत और त्योहार मनाए जाएंगे।

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