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शिव महिमा एवं स्तुति

शिव महिमा एवं स्तुति

शिव महिमा एवं स्तुति हिंदी अर्थ सहित

एको हि रुद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्य 
इमाँल्लोकानीशत ईशनीभिः ।
प्रत्यङ् जनांस्तिष्ठति संचुकोचान्तकाले
संसृज्य विश्वा भुवनानि गोपाः ॥
यो देवानां प्रभवश्चोद्भवश्च
विश्वाधिपो रुद्रो महर्षिः ।
हिरण्यगर्भ जनयामास पूर्व
स नो बुद्ध्या शुभया संयुनक्तु ॥
या ते रूद्र शिवा तनूरघोरापापकाशिनी ।
तया नस्तनुवा शन्तमया गिरिशन्ताभिचाकशीहि ॥
ततः परं ब्रह्मपरं बृहन्तं
यथानिकायं सर्वभूतेषु गूढम् ।
विश्वस्यैकं परिवेष्टितारमीशं तं ज्ञात्वामृता भवन्ति ॥
सर्वाननशिरोग्रीवः सर्वभूतगुहाशयः ।
सर्वव्यापी स भगवांस्तस्मात् सर्वगतः शिवः ॥
महान प्रभुर्वै पुरुषः सत्त्वस्यैष प्रवर्तकः ।
सुनिर्मलामिमां प्राप्तिमीशानो ज्योतिरव्ययः ॥
पुरुष एवेद्ँ सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥
सर्वतः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम् ।
सर्वस्य प्रभुमीशानं सर्वस्य शरणं बृहत् ॥
अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स श‍ृणोत्यकर्णः ।
स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्रयं पुरुषं महान्तम् ॥
अणोरणीयान् महतो महीया-
नात्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः ।
तमक्रतुं पश्यति वीतशोको
धातुः प्रसादान्महिमानमीशम् ॥
मायां तु प्रकृतिं विद्यान्मायिनं तु महेश्वरम् ।
तस्यावयवभूतैस्तु व्याप्तं सर्वमिदं जगत् ॥
यो योनिं योनिमधितिष्ठत्येको
यस्मिन्निदं सं च वि चैति सर्वम् ।
तमीशानं वरदं देवमीड्यं
निचाय्येमां शान्तिमत्यन्तमेति ॥
यो देवानां प्रभवश्चोद्भवश्च विश्वाधिपो रुद्रो महर्षिः । 
हिरण्यगर्भ पश्यत जायमानं स नो बुद्ध्या शुभया संयुनक्तु ॥ 
सूक्ष्मातिसूक्ष्मं कलिलस्य मध्ये विश्वस्य स्रष्टारमनेकरूपम् । 
विश्वस्यैकं परिवेष्टितारं ज्ञात्वा शिवं शान्तिमत्यन्तमेति ॥ 
घृतात् परं मण्डमिवातिसूक्ष्मं ज्ञात्वा शिवं सर्वभूतेषु गूढम्। 
विश्वस्यैकं परिवेष्टितारं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः ॥
यदातमस्तन्न दिवा न रात्रि- 
र्न सन्न चासञ्छिव एव केवलः । 
तदक्षरं तत्सवितुर्वरेण्यं प्रज्ञा च तस्मात् प्रसृता पुराणी ॥ 
भावग्राह्यमनीडाख्यं भावाभावकरं शिवम् ।
कलासर्गकरं देवं ये विदुस्ते जहुस्तनुम् ॥

भावार्थ -

जो अपनी स्वरूपभूत विविध शासन-शक्तियों द्वारा इन सब लोकों पर शासन करता है, वह रुद्र एक ही है, (इसीलिए विद्वान पुरुषों ने जगत के कारण का निश्चय करते समय दूसरे का आश्रय नहीं लिया)।

वह परमात्मा समस्त जीवों के भीतर स्थित हो रहा है। सम्पूर्ण लोकों की रचना करके उनको रक्षा करने वाला परमेश्वर, प्रलयकाल में इन सबको समेट लेता है।

जो रुद्र इन्द्रादि देवताओं की उत्पत्ति का हेतु और वृद्धि का हेतु है तथा (जो) सबका अधिपति (और) महान ज्ञानी (सर्वज्ञ) है,

(जिसने) पहले हिरण्यगर्भ को उत्पन्न किया था, वह परमदेव परमेश्वर हम लोगों को शुभ बुद्धि से संयुक्त करे।

हे रुद्रदेव! तेरी जो भयानकता से शून्य (सौम्य), पुण्य से प्रकाशित होने वाली (तथा) कल्याणमयी मूर्ति है, हे पर्वत पर रहकर सुख का विस्तार करने वाले शिव! उस परम शान्त मूर्ति से (तू कृपा करके) हम लोगों को देख।

पूर्वोक्त जीव-समुदाय रूप जगत के परे (और) हिरण्यगर्भ रूप ब्रह्मा से भी श्रेष्ठ, समस्त प्राणियों में उनके शरीरों के अनुरूप होकर छिपे हुए (और) सम्पूर्ण विश्व को सब ओर से घेरे हुए उस महान सर्वत्र व्यापक एकमात्र देव परमेश्वर को जानकर (ज्ञानीजन) अमर हो जाते हैं।

वह भगवान सब ओर मुख, सिर और ग्रीवा वाला है। समस्त प्राणियों के हृदय रूप गुफा में निवास करता है (और) सर्वव्यापी है, इसीलिए वह कल्याण स्वरूप परमेश्वर सब जगह पहुँचा हुआ है।

निश्चित ही यह महान समर्थ, सब पर शासन करने वाला, अविनाशी (एवं) प्रकाश स्वरूप परम पुरुष पुरुषोत्तम अपनी प्राप्ति रूप इस अत्यंत निर्मल लाभ को और अन्तःकरण को प्रेरित करने वाला है।

जो अब से पहले हो चुका है, जो भविष्य में होने वाला है और जो खाद्य पदार्थ से इस समय बढ़ रहा है — यह समस्त जगत परम पुरुष परमात्मा ही है और (वही) अमृत स्वरूप मोक्ष का स्वामी है।

वह परम पुरुष परमात्मा सब जगह हाथ-पैर वाला, सब जगह आँख, सिर और मुख वाला (तथा) सब जगह कानों वाला है, (वही) ब्रह्माण्ड में सबको सब ओर से घेर कर स्थित है।

(जो परम पुरुष परमात्मा) समस्त इन्द्रियों से रहित होने पर भी समस्त इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला है (तथा) सबका स्वामी, सबका शासक (और) सबसे बड़ा आश्रय है।

वह परमात्मा हाथ-पैरों से रहित होकर भी समस्त वस्तुओं को ग्रहण करने वाला (तथा) वेगपूर्वक सर्वत्र गमन करने वाला है, आँखों के बिना ही वह सब कुछ देखता है (और) कानों के बिना ही सब कुछ सुनता है। वह जो कुछ भी जानने में आने वाली वस्तुएँ हैं, उन सबको जानता है परंतु उसको जानने वाला (कोई) नहीं है, (ज्ञानी पुरुष) उसे महान आदि पुरुष कहते हैं।

(वह) सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म (तथा) बड़े से भी बहुत बड़ा परमात्मा इस जीव की हृदय रूप गुफा में छिपा हुआ है। सबकी रचना करने वाले परमेश्वर को कृपा से (जो मनुष्य) उस संकल्प रहित परमेश्वर को (और) उसकी महिमा को देख लेता है — (वह) सब प्रकार के दुःखों से रहित हो जाता है।

माया तो प्रकृति को समझना चाहिए और मायापति महेश्वर को समझना चाहिए। उसी के अंगभूत कारण-कार्य-समुदाय से यह सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो रहा है।

जो अकेला ही प्रत्येक योनि का अधिष्ठाता हो रहा है, जिसमें यह समस्त जगत प्रलयकाल में विलीन हो जाता है और सृष्टिकाल में विविध रूपों में प्रकट भी हो जाता है — उस सर्वनियन्ता, वरदायक, स्तुति करने योग्य परमदेव परमेश्वर को तत्त्व से जानकर (मनुष्य) निरंतर बनी रहने वाली इस (मुक्ति रूप) परम शांति को प्राप्त हो जाता है।

जो रुद्र इन्द्रादि देवताओं को उत्पन्न करने वाला और बढ़ाने वाला है तथा (जो) सबका अधिपति (और) महान ज्ञानी (सर्वज्ञ) है, (जिसने सबसे पहले) उत्पन्न हुए हिरण्यगर्भ को देखा था — वह परमदेव परमेश्वर हम लोगों को शुभ बुद्धि से संयुक्त करे।

(जो) सूक्ष्म से भी अत्यंत सूक्ष्म, हृदयगुहा रूप गुह्य स्थान के भीतर स्थित, अखिल विश्व को रचना करने वाला, अनेक रूप धारण करने वाला (तथा) समस्त जगत को सब ओर से घेर रखने वाला है — (उस) एक (अद्वितीय) कल्याण स्वरूप महेश्वर को जानकर (मनुष्य) सदा रहने वाली शांति को प्राप्त होता है।

कल्याण स्वरूप एक (अद्वितीय) परमदेव को मक्खन के ऊपर रहने वाले सार भाग की भाँति अत्यंत सूक्ष्म (और) समस्त प्राणियों में छिपा हुआ जानकर (तथा) समस्त जगत को सब ओर से घेर कर स्थित हुआ जानकर (मनुष्य) समस्त बंधनों से छूट जाता है।

जब अज्ञानमय अन्धकार का सर्वथा अभाव हो जाता है, उस समय (अनुभव में आने वाला तत्त्व) न दिन है, न रात है, न सत् है और न असत् है — एकमात्र विशुद्ध कल्याणमय शिव ही है। वह सर्वथा अविनाशी है, वह सूर्याभिमानी देवता का भी उपास्य है तथा उसी से (यह) पुराना ज्ञान फैला है।

श्रद्धा और भक्ति के भाव से प्राप्त होने योग्य, आश्रय रहित कहे जाने वाले (तथा) जगत की उत्पत्ति और संहार करने वाले, कल्याण स्वरूप (तथा) सोलह कलाओं की रचना करने वाले परमदेव परमेश्वर को जो साधक जान लेते हैं, वे शरीर को (सदा के लिए) त्याग देते हैं — जन्म-मृत्यु के चक्कर से छूट जाते हैं।

जो रुद्र इन्द्रादि देवताओंको उत्पन्न करनेवाला और बढ़ानेवाला है तथा (जो) सबका अधिपति (और) महान् ज्ञानी (सर्वज्ञ) है (जिसने सबसे पहले) उत्पन्न हुए हिरण्यगर्भको देखा था, वह परमदेव परमेश्वर हमलोगोंको शुभ बुद्धिसे संयुक्त करे । (जो) सूक्ष्मसे भी अत्यन्त सूक्ष्म हृदयगुहारूप गुह्यस्थानके भीतर स्थित, अखिल विश्वकी रचना करनेवाला, अनेक रूप धारण करनेवाला (तथा) समस्त जगत्‌को सब ओरसे घेर रखनेवाला है (उस) एक (अद्वितीय) कल्याणस्वरूप महेश्वरको जानकर (मनुष्य) सदा रहनेवाली शान्तिको प्राप्त होता है। कल्याणस्वरूप एक (अद्वितीय) परमदेवको मक्खनके ऊपर रहनेवाले सारभागकी भाँति अत्यन्त सूक्ष्म (और) समस्त प्राणियोंमें छिपा हुआ जानकर (तथा) समस्त जगत्‌को सब ओरसे घेरकर स्थित हुआ जानकर (मनुष्य) समस्त बन्धनोंसे छूट जाता है

जब अज्ञानमय अन्धकारका सर्वथा अभाव हो जाता है, उस समय (अनुभवमें आनेवाला तत्त्व) न दिन है न रात है, न सत् है और न असत् है, एकमात्र विशुद्ध कल्याणमय शिव ही है वह सर्वथा अविनाशी है, वह सूर्याभिमानी देवताका भी उपास्य है तथा उसीसे (यह) पुराना ज्ञान फैला है। श्रद्धा और भक्तिके भावसे प्राप्त होनेयोग्य, आश्रयरहित कहे जानेवाले (तथा) जगत्‌की उत्पत्ति और संहार करनेवाले, कल्याणस्वरूप (तथा) सोलह कलाओंकी रचना करनेवाले परमदेव परमेश्वरको जो साधक जान लेते हैं, वे शरीरको (सदाके लिये) त्याग देते हैं - जन्म-मृत्युके चक्करसे छूट जाते हैं।

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