चैत्र नवरात्रि के समय वातावरण में नई ऊर्जा और भक्ति का संचार होता है। मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के साथ श्रद्धालु कई पारंपरिक रीति-रिवाज भी करते हैं। इनमें से कुछ बहुत महत्वपूर्ण हैं, जैसे तुलसी का पौधा लगाना, कलश स्थापित करना और शंख को घर के मंदिर में स्थान देना। इनके सिर्फ धार्मिक मान्यताएं नहीं हैं बल्कि, इन रिवाजों के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण भी हैं।
मां तुलसी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और उन्हें देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जहां तुलसी का पौधा होता है, वहां मां लक्ष्मी निवास करती हैं। इसलिए चैत्र नवरात्रि के दौरान तुलसी का पौधा घर लाकर उसकी विधिवत रूप से पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है, और शाम के समय घी का दीपक जलाने से परिवार में सुख और शांति बनी रहती है, साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होता है।
शंख को पवित्रता और विजय का प्रतीक माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, शंख बजाने से घर में सकारात्मकता आती है और नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं। नवरात्रि के अवसर पर शंख का उपयोग करके मां दुर्गा की आरती करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। इसकी ध्वनि से मानसिक तनाव दूर होता है और वातावरण शुद्ध हो जाता है।
चैत्र नवरात्रि के दौरान कलश-स्थापना करना अत्यंत शुभ होता है। कलश को ब्रह्माण्ड के रचयिता का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कलश के मुंह में भगवान विष्णु, गले में भगवान शिव और मूल भाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं, और कलश में आम के पत्ते और नारियल स्थापित करना देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का संकेत होता है। चैत्र नवरात्रि के व्रत में कलश स्थापना करने से सभी देवी-देवताओं का आगमन होता है, इससे घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है।
मैं कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो,
मैं राधा वल्लभ की, राधा वल्लभ मेरे
मैं राधा वल्लभ की, राधा वल्लभ मेरे
मैं सहारे तेरे,
श्याम प्यारे मेरे,
मैं शिव का हूँ शिव मेरे है,
मैं और क्या मांगू शंकर से,