अहोई व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे हिंदू धर्म में बहुत शुभ माना गया है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की भलाई और लंबी आयु के लिए किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अहोई माता की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन में शांति तथा परिवार में समृद्धि आती है। इस दिन माता अहोई की आराधना, संध्या पूजा, कथा श्रवण और चंद्र दर्शन का विशेष महत्व रहता है।
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर, सोमवार को दोपहर 12:24 बजे से शुरू होगी और 14 अक्टूबर, मंगलवार को सुबह 11:10 बजे समाप्त होगी। सूर्योदय तिथि के अनुसार, यह 13 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। साथ ही, पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6:17 बजे से शुरू होकर 7:31 बजे तक रहेगा, यानी इसकी अवधि 1 घंटा 14 मिनट रहेगी।
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें।
संकल्प में कहें 'मैं मां अहोई का व्रत, संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए रखूंगी’। फिर पूजा स्थल को साफ करें और यदि संभव हो तो देवी अहोई का चित्र रखें या दीवार पर आठ कोष्ठक बनाकर स्थापित करें। इसके बाद घी का दीया जलाएं और उन्हें पुष्प, कुमकुम तथा अक्षत अर्पित करें। फिर कथा पाठ पढ़ें, आरती करें और बाद में अपने बच्चों को प्रसाद वितरित करें।
अहोई अष्टमी व्रत का पारण, चाँद या तारों को देखने के बाद किया जाता है। उस समय भक्त देवी अहोई को अर्घ्य देते हैं और फिर पारण करते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि अहोई अष्टमी व्रत करने से बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और विशेष रूप से यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी व्रत एक महिला द्वारा शुरू किया गया था जिसने अनजाने में संतान को नुकसान पहुंचाया था, फिर उसने संतान को पुनः पाने के लिए अहोई अष्टमी का व्रत किया। तभी से इस त्यौहार को संतान सुख और परिवार कल्याण का माध्यम माना जाता है।