हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया की तिथि को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इस दिन किए गए सभी पुण्य कार्यों, जैसे दान, पूजा और शुभ आरंभ का फल ‘अक्षय’ यानी कि कभी न समाप्त होने वाला होता है। यही कारण है कि इस दिन नए कार्यों, निवेश, विवाह, गृह प्रवेश और विशेष रूप से सोने की खरीदारी के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया का दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान परशुराम को धर्म, शौर्य और न्याय का प्रतीक माना जाता है, जिन्होंने अधर्मियों का नाश कर धर्म की स्थापना की।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन ही त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इसी कारण यह तिथि सृष्टि के प्रारंभिक युग से जुड़ी हुई मानी जाती है और इसे ब्रह्मांड के संतुलन का प्रतीक भी माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान गणेश के साथ मिलकर महाभारत की रचना शुरू की थी। यह महाकाव्य भारत के सांस्कृतिक इतिहास का अद्वितीय हिस्सा है।
भोले भाले डमरू वाले,
नंदी के असवार,
बिगड़ी किस्मत को बनाना,
शिव भोले का काम है,
शिव है दयालु, शिव है दाता
शिव पालक है इस श्रिष्टि के
बिगड़ी मेरी बना जा,
ओ शेरोवाली माँ,