हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है। जब अमावस्या सोमवती यानी सोमवार को आती है, या फिर आषाढ़ जैसे पवित्र महीनों में होती है, तब इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान, स्नान और दान जैसे कर्म किए जाते हैं। वहीं, चंद्रदेव की शांति और मानसिक संतुलन के लिए भी यह दिन अत्यंत शुभ होता है।
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 24 जून 2025 को शाम 7 बजकर 2 मिनट पर होगी और इसका समापन 25 जून को शाम 4 बजकर 4 मिनट पर होगा।
उदयातिथि की मान्यता के अनुसार, अमावस्या तिथि 25 जून 2025 को मानी जाएगी।
आषाढ़ अमावस्या को ‘दर्श अमावस्या’ भी कहा जाता है क्योंकि यह दिन चंद्र दर्शन के अभाव से जुड़ा होता है। इस दिन विशेष रूप से पितरों की आत्मा की शांति, चंद्रदोष निवारण, और जीवन में मानसिक संतुलन के लिए पूजा-पाठ अति महत्वपूर्ण माना जाता है। यह अमावस्या वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है, जो नव ऊर्जा, भूमि शुद्धि और आत्मशुद्धि का संकेत देती है।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। दरअसल, यह व्रत देवाधिदेव महादेव शिव को ही समर्पित है। प्रदोष व्रत हर माह में दो बार, शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।
गुरु प्रदोष व्रत को भगवान शिव की पूजा और विशेष रूप से बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
विवाह एक पवित्र और 16 महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक है, जो दो आत्माओं को जोड़ता है। लेकिन कई बार वैवाहिक जीवन में समस्याएं और बाधाएं आ जाती हैं, जो जीवन को कठिन बना देती हैं। ऐसे में प्रदोष व्रत एक शक्तिशाली तरीका है, जो विवाह की बाधाओं को दूर करने में मदद कर सकता है।
प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के लिए किया जाता है। यह व्रत प्रत्येक महीने में दो बार, त्रयोदशी तिथि को (स्नान, दिन और रात के समय के अनुसार) किया जाता है, एक बार शुक्ल पक्ष में और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में।