आषाढ़ माह में पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि का आरंभ मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा से होता है। यह दिन साधना, आराधना और आत्मशुद्धि की शुरुआत मानी जाती है। गुप्त नवरात्रि में की जाने वाली पूजा विशेष रूप से तांत्रिक साधकों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए महत्वपूर्ण होती है। मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री कहा गया है, और यही उनका नाम ‘शैल’ (पर्वत) और ‘पुत्री’ (पुत्री) से बना है।
मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत और तेजस्वी होता है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प रहता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां शैलपुत्री का पूर्व जन्म में नाम सती था, जिन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में आत्मदाह किया था। अगले जन्म में उन्होंने शैलराज हिमालय के घर जन्म लिया और पार्वती के रूप में भगवान शिव से विवाह किया।
मां शैलपुत्री की पूजा से साधक को आत्मबल, शुद्धता, मानसिक स्थिरता और साधना में दृढ़ता प्राप्त होती है। यह दिन साधकों के लिए शुभ संकल्पों की शुरुआत का प्रतीक है।
खेले मसाने में होरी,
दिगम्बर,
खोलो समाधी भोले शंकर,
मुझे दरश दिखाओ,
खुल गया बैंक राधा,
रानी के नाम का,
खुल गये सारे ताले वाह क्या बात हो गयी,
जबसे जन्मे कन्हैया करामात हो गयी ॥