आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। यह दिन भक्तों के लिए आत्मनियंत्रण, वैराग्य और तपस्या की ऊर्जा को आत्मसात करने का अवसर होता है। मां ब्रह्मचारिणी का नाम ही उनके तपस्विनी स्वरूप को दर्शाता है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तप या ज्ञान और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। अर्थात, वे जो ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, माता सती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की थी। उन्होंने सहस्त्रों वर्षों तक केवल फल-फूल खाकर और बाद में निर्जल रहकर तप किया। उनकी यह कठिन तपस्या ब्रह्मचारिणी रूप में प्रसिद्ध हुई। अंततः भगवान शंकर ने उनकी भक्ति और तप से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। यह कथा दर्शाती है कि दृढ़ संकल्प, तप और सच्ची भक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
हिंदू धर्म में प्रकृति को विशेष महत्व दिया जाता है। इसमें, वृक्षों से लेकर पशु-पक्षियों तक को पूजनीय माना जाता है। नदियां को भारतीय संस्कृति में पवित्र और पूजनीय माना गया है।
हिंदू धर्म में, सूर्यदेव का विशेष स्थान है। वे नवग्रहों में प्रमुख माने जाते हैं। साथ ही स्वास्थ्य, ऊर्जा और सकारात्मकता के प्रतीक हैं।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। कहा जाता है कि इसी दिन बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग किए थे। इसलिए सनातन धर्म में यह तिथि अत्यंत शुभ मानी गई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने इच्छामृत्यु के वरदान के कारण तत्काल देह त्याग नहीं किया।