आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। यह दिन भक्तों के लिए आत्मनियंत्रण, वैराग्य और तपस्या की ऊर्जा को आत्मसात करने का अवसर होता है। मां ब्रह्मचारिणी का नाम ही उनके तपस्विनी स्वरूप को दर्शाता है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तप या ज्ञान और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। अर्थात, वे जो ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, माता सती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की थी। उन्होंने सहस्त्रों वर्षों तक केवल फल-फूल खाकर और बाद में निर्जल रहकर तप किया। उनकी यह कठिन तपस्या ब्रह्मचारिणी रूप में प्रसिद्ध हुई। अंततः भगवान शंकर ने उनकी भक्ति और तप से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। यह कथा दर्शाती है कि दृढ़ संकल्प, तप और सच्ची भक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
शारदीय नवरात्र के बाद 10वें दिन दशहरे का त्योहार देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।
हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयदशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाता है जो कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है।
जब बरसों के इंतजार के बाद श्रीराम शबरी की कुटिया में पहुंचे, तो उनके बीच एक अनोखा संवाद हुआ।
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है, जो भगवान राम और उनकी भक्त शबरी के बीच के पवित्र बंधन का प्रतीक है।