हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को ब्रह्मांड का पालनहार माना जाता है, जो त्रिदेवों में से एक हैं और धर्म की स्थापना तथा सृष्टि की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। उनके कई नामों में से एक है ‘पद्मनाभ’। यह नाम उनकी दिव्य लीला और ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। धर्मशास्त्र के अनुसार, भगवान विष्णु की नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ, जिससे ब्रह्मा जी का जन्म हुआ। इसलिए उन्हें पद्मनाभ के नाम से जाना जाता है।
पद्मनाभ शब्द दो भागों से बना है, पद्म और नाभि अर्थात् जिसकी नाभि में कमल हो। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर विश्राम कर रहे थे, तभी उनकी नाभि से एक कमल प्रकट हुआ।
उस कमल से भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और बाद में उन्होंने ब्रह्मांड की रचना की। इस प्रकार भगवान विष्णु का नाम ‘पद्मनाभ’ पड़ा।
भगवान विष्णु का यह स्वरूप भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पद्मनाभ नाम केवल सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह विष्णु के शांत, स्थिर और योगनिद्रा में भी सृष्टि धारण करने वाले स्वरूप को दर्शाता है।
केरल के तिरुवनंतपुरम का मंदिर इस स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर दुनिया के सबसे समृद्ध और प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति योगनिद्रा की अवस्था में विराजमान है, जिसकी नाभि से कमल निकलता हुआ दर्शाया गया है। यही कारण है कि इस मंदिर को ‘पद्मनाभस्वामी मंदिर’ कहा जाता है।
भक्तों का मानना है कि इस मूर्ति की पूजा करने से जीवन में स्थिरता और शांति आती है। यह स्वरूप सृष्टि और पालन की अनंत प्रक्रिया का प्रतीक है तथा यह संदेश देता है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड भगवान विष्णु की शक्ति से संचालित है।