छठ पूजा उत्तर भारत का वह अनूठा लोकपर्व है जिसमें भगवान सूर्य और छठी मैया की आराधना की जाती है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आरंभ हुआ यह पर्व आज पूरे देश में आस्था का महोत्सव बन चुका है। छठ में व्रति बिना नमक का शाकाहारी भोजन, कठोर नियम और 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। मान्यता है कि छठी मैया संतानों की रक्षक देवी हैं और भगवान सूर्य जीवन, ऊर्जा और आरोग्य के दाता। 2026 में छठ का पावन पर्व तेरह नवम्बर शुक्रवार से आरंभ होकर सोलह नवम्बर सोमवार को उषा अर्घ्य के साथ पूर्ण होगा। आइए जानते हैं छठ पूजा 2026 की तिथियां, सूर्योदय सूर्योस्त, पूजा विधि और पौराणिक मान्यताएं।
चार दिवसीय छठ पर्व का आरंभ 13 नवम्बर 2026 को नहाय खाय से होगा। इस दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी रहेगी और सूर्योदय 06 बजकर 42 मिनट पर तथा सूर्योस्त 05 बजकर 28 मिनट पर होगा। दूसरा दिन 14 नवम्बर शनिवार को पञ्चमी तिथि पर खरना का व्रत रखा जाएगा। सूर्योदय 06 बजकर 43 मिनट और सूर्योस्त 05 बजकर 28 मिनट पर होगा। तीसरा दिन 15 नवम्बर रविवार को कार्तिक शुक्ल षष्ठी रहेगी और इसी दिन सन्ध्या अर्घ्य दिया जाएगा। चौथा दिन 16 नवम्बर सोमवार को सप्तमी तिथि पर उगते सूर्य को उषा अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण किया जाएगा। प्रत्येक दिन के सूर्योदय और सूर्योस्त के समय पूजा विधि में विशेष महत्व रखते हैं।
छठ पूजा को सूर्य षष्ठी भी कहा गया है क्योंकि इस दिन भगवान सूर्य का विशेष पूजन होता है। सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं और मनुष्य तथा प्रकृति के समस्त जीवन का आधार हैं। छठी मैया या षष्ठी देवी को संतान की रक्षक माना गया है। बिहार और झारखंड की परंपरा में छठी मैया को परिवार की समृद्धि और बच्चों के दीर्घायु जीवन की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। छठ व्रत में कठोर नियम इस परम्परा की पवित्रता को दर्शाते हैं। माना जाता है कि जो व्रति पूरी श्रद्धा से छठ मैया की साधना करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परिवार में सुख शांति बनी रहती है। छठ का चार दिवसीय क्रम शुद्धता, तपस्या और आत्मानुशासन का प्रतीक है।
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय कहलाता है। इस दिन व्रति पवित्र नदी में स्नान कर घर लौटते हैं और संपूर्ण घर की शुद्धि की जाती है। किचन में मीठे और सात्त्विक व्यंजन बनते हैं। व्रति इस दिन केवल एक बार बिना प्याज लहसुन का शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं जिसे आमतौर पर लौकी और चावल या कद्दू भात कहा जाता है। भोजन में शुद्धता का अत्यंत ध्यान रखा जाता है। नहाय खाय आत्मशुद्धि और व्रत की शुरुआत का संकेत है। लोकमान्यता के अनुसार नहाय खाय के बाद व्रति का मन और शरीर पूरी तरह पवित्र हो जाता है और वह आगामी कठिन व्रत के लिए तैयार होता है। यह दिन छठ पर्व का आधार माना गया है।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रति सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला रहता है। शाम को स्वच्छ वातावरण में लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर, रोटी और केला का भोग बनाया जाता है। सूर्यास्त के बाद व्रति सूर्य देव को यह प्रसाद अर्पित करते हैं और प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करते हैं। खरना का यह प्रसाद पूरी तरह शुद्ध और सात्त्विक होता है और पूरे घर में बांटा जाता है। लोककथाओं के अनुसार खरना की संध्या को बनाई गई गुड़ की खीर छठ मैया के लिए विशेष प्रिय मानी जाती है। खरना के बाद अगले तीस घंटे का कठिन व्रत आरंभ होता है जिसमें जल का त्याग किया जाता है।
छठ पूजा का तीसरा दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी होता है और इसी दिन सन्ध्या अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रति पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और सायंकाल घाटों पर पहुंच कर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। बाँस की टोकरी और सूप में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू, नारियल तथा गन्ना जैसी सामग्रियां सजाई जाती हैं। जल और दूध से सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है जबकि छठी मैया की पूजा विशेष रूप से की जाती है। सन्ध्या अर्घ्य का दृश्य भक्तिभाव और रंग भरता है जिसमें व्रति अपने परिवार के साथ गीत गाती हैं और भगवान सूर्य से आरोग्य तथा समृद्धि की कामना करती हैं।
छठ का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन उषा अर्घ्य होता है। व्रति सुबह सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचते हैं और उगते सूर्य को कच्चे दूध, जल और प्रसाद के साथ अर्घ्य अर्पित करते हैं। लोकमान्यता है कि उषा काल सूर्य देव की कृपा प्राप्त करने का सबसे पवित्र समय है। अर्घ्य के बाद व्रति कच्चा दूध या गुड़ मिला जल ग्रहण कर व्रत का पारण करते हैं। यह पारण लगभग 36 घंटे के कठोर उपवास के बाद होता है। इस दिन परिवार और समाज एक साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। छठी मैया से संतान की रक्षा, घर की सुख शांति और मनोकामना पूर्ति का आशीष मांगा जाता है।
छठ पूजा में बाँस की तीन टोकरी, तीन सूप, दीपक, नारियल, गन्ना, केला, सुथनी, चावल, हल्दी, सिंदूर, दूध, घी, कपूर, सुपारी, मिठाई और विभिन्न फल अनिवार्य माने जाते हैं। अर्घ्य देते समय सूप में प्रसाद सजाकर दीपक जलाया जाता है। नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य देव को दूध और जल से अर्घ्य अर्पित किया जाता है। पूजा में ठेकुआ, मालपुआ, खीर पुड़ी और सूजी का हलवा विशेष प्रसाद के रूप में बनाया जाता है। यह संपूर्ण सामग्री शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है जो छठ पर्व की आत्मा मानी जाती है।
छठ पर्व का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। कथा के अनुसार राजा प्रियव्रत संतानहीन होने के कारण दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप द्वारा यज्ञ कराए जाने पर उनकी रानी ने पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह मृत था। तभी आकाश से माता षष्ठी प्रकट हुईं और स्वयं को ब्रह्मा की मानस पुत्री बताया। उन्होंने शिशु को स्पर्श किया और वह जीवित हो उठा। राजा ने प्रसन्न होकर षष्ठी देवी की पूजा आरंभ की। यही देवी छठी मैया कहलाती हैं और संतान रक्षा की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। इसी कथा से छठ पूजा की परंपरा स्थापित हुई और यह पर्व आज लोक आस्था का महान उत्सव बन गया है।