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10 महाविद्याओं की 10 दिशाओं की कहानी

10 महाविद्याओं की 10 दिशाओं की कहानी

Ashadha Gupt Navratri 2025: कैसे हुई 10 महाविद्याओं की उत्पत्ति, भगवान शिव और माता सती से जुड़ी है कहानी

गुप्त नवरात्रि हिंदू धर्म की सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली साधनाओं में से एक मानी जाती है। यह पर्व वर्ष में माघ और आषाढ़ मास में मनाया जाता है। इसमें देवी दुर्गा के दस महाविद्याओं के रूपों की पूजा की जाती है, जो तांत्रिक साधना की दृष्टि से अत्यंत फलदायी मानी जाती हैं। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2025 में 26 जून से 4 जुलाई तक मनाई जाएगी।

दस महाविद्याओं की उत्पत्ति कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष ने यज्ञ में अपनी पुत्री सती और भगवान शिव का अपमान किया, तो सती ने स्वयं को यज्ञ में आहुति दे दी। यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और शव को लेकर विक्षिप्त अवस्था में दिशाओं में घूमने लगे। उस समय सती ने दस रूपों को धारण कर शिव को रोका, जिससे वे दस दिशाओं में प्रकट हुईं।

इस घटना से दस महाविद्याओं की उत्पत्ति मानी जाती है और प्रत्येक देवी का एक विशिष्ट दिशा से संबंध स्थापित होता है।

दस महाविद्याओं की दस दिशाएं 

  • उत्तर दिशा: काली और तारा देवी दोनों को विनाश और ज्ञान की शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
  • ईशान दिशा (उत्तर-पूर्व): षोडशी (त्रिपुर सुंदरी) सुंदरता, सौम्यता और ब्रह्म ज्ञान की देवी हैं।
  • पश्चिम दिशा: भुवनेश्वरी ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी, जो संपूर्ण सृष्टि पर शासन करती हैं।
  • दक्षिण दिशा: त्रिपुर भैरवी और बगलामुखी शक्ति और शत्रु नाश की देवी के रूप में पूजी जाती है।
  • पूर्व दिशा: छिन्नमस्ता और धूमावती बलिदान और वैराग्य की प्रतीक है।
  • वायव्य दिशा (उत्तर-पश्चिम): मातंगी संगीत, विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री।
  • नैऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम): कमला देवी धन और वैभव की देवी, लक्ष्मी का तांत्रिक रूप हैं।

गुप्त नवरात्रि में इन दिशाओं की पूजा का महत्व

गुप्त नवरात्रि में जब साधक इन दिशाओं के अनुरूप महाविद्याओं की पूजा करता है, तो उसे विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। यह साधना न केवल आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है, बल्कि सांसारिक समस्याओं, बाधाओं और दुर्भाग्य से भी मुक्ति दिलाती है।

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