हिंदू धर्म में कालाष्टमी तिथि को भगवान शिव के रौद्र और रक्षक रूप काल भैरव की उपासना का विशेष दिन माना जाता है। हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाने वाली यह मासिक कालाष्टमी तिथि भक्तों के लिए भय, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति पाने का एक शुभ अवसर होती है। विशेष मान्यता है कि काल भैरव की पूजा में यदि आरती का शामिल न हो, तो पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए भगवान को प्रसन्न करने और पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए कालाष्टमी के दिन उनकी आरती और काल भैरव अष्टक का पाठ अत्यंत आवश्यक होता है।
काल भैरव अष्टक, जो आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित स्तुति है, भगवान भैरव की महिमा को प्रकट करता है। इस अष्टक का पाठ करने से साधक को शत्रु भय से मुक्ति, रोग नाश और मन की शुद्धि मिलती है।
आरती के बिना भगवान भैरव की पूजा अधूरी मानी जाती है। कालाष्टमी की रात में की गई आरती भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का माध्यम बनती है। ‘जय काल भैरव स्वामी…’ जैसी पारंपरिक आरतियां भक्तों को खुशी प्रदान करती हैं।
कालाष्टमी के दिन ‘काले कुत्ते को रोटी या दूध खिलाना’ अत्यंत शुभ माना गया है क्योंकि काला कुत्ता भगवान भैरव का वाहन माना जाता है। साथ ही, उड़द दाल से बनी चीजें जैसे वड़ा या दाल का हलवा चढ़ाना भी शुभ फलदायी होता है। इस दिन जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न या धन का दान करें, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
सखी री बांके बिहारी से
हमारी लड़ गयी अंखियाँ ।
सखी री दो कुंवर सुंदर,
मनोहर आज आये है,
सालासर धाम निराला,
की बोलो जय बालाजी,
सालासर वाले तुम्हें,
आज हम मनाएंगे,