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भगवान काल भैरव की आरती पूजा

भगवान काल भैरव की आरती पूजा

Kalashtami Aarti: इन आरती के बिना अधूरी है मासिक कालाष्टमी की पूजा, जानिए पूजन विधि और महिमा

हिंदू धर्म में कालाष्टमी तिथि को भगवान शिव के रौद्र और रक्षक रूप काल भैरव की उपासना का विशेष दिन माना जाता है। हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाने वाली यह मासिक कालाष्टमी तिथि भक्तों के लिए भय, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति पाने का एक शुभ अवसर होती है। विशेष मान्यता है कि काल भैरव की पूजा में यदि आरती का शामिल न हो, तो पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए भगवान को प्रसन्न करने और पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए कालाष्टमी के दिन उनकी आरती और काल भैरव अष्टक का पाठ अत्यंत आवश्यक होता है।

काल भैरव अष्टक और आरती का महत्व 

काल भैरव अष्टक, जो आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित स्तुति है, भगवान भैरव की महिमा को प्रकट करता है। इस अष्टक का पाठ करने से साधक को शत्रु भय से मुक्ति, रोग नाश और मन की शुद्धि मिलती है।

आरती के बिना भगवान भैरव की पूजा अधूरी मानी जाती है। कालाष्टमी की रात में की गई आरती भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का माध्यम बनती है। ‘जय काल भैरव स्वामी…’ जैसी पारंपरिक आरतियां भक्तों को खुशी प्रदान करती हैं।

भगवान काल भैरव को अर्पित करें हलवा और खीर

  • प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान पर वेदी स्थापित करें और उस पर काल भैरव जी की मूर्ति या चित्र रखें।
  • सरसों के तेल का दीपक जलाकर भगवान के सामने रखें।
  • नीले फूल, जो भगवान भैरव को प्रिय हैं, अर्पित करें।
  • हलवा, खीर, गुलगुले या जलेबी जैसे मीठे भोग चढ़ाएं।
  • ‘ॐ कालभैरवाय नमः’ या अन्य वैदिक भैरव मंत्रों का जाप करें।
  • कालाष्टमी की व्रत कथा सुनें या स्वयं पढ़ें।
  • पूजा के अंत में भगवान काल भैरव की आरती गाएं, और अंत में गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।
  • पूजा के बाद भोग को प्रसाद स्वरूप सभी को बांटें।

कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव को अर्पित करें उड़द दाल का वड़ा

कालाष्टमी के दिन ‘काले कुत्ते को रोटी या दूध खिलाना’ अत्यंत शुभ माना गया है क्योंकि काला कुत्ता भगवान भैरव का वाहन माना जाता है। साथ ही, उड़द दाल से बनी चीजें जैसे वड़ा या दाल का हलवा चढ़ाना भी शुभ फलदायी होता है। इस दिन जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न या धन का दान करें, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

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महाकुंभ का दूसरा शाही स्नान

महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से प्रयागराज में होने वाली है। अब जब भी कुंभ की बात हो, और शाही स्नान की बात न हो, ऐसा हो नहीं सकता। कुंभ और शाही स्नान एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।

महाकुंभ का तीसरा शाही स्नान

शाही स्नान कुंभ मेले का प्रमुख आकर्षण है। इसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु और साधु संत महाकुंभ वाली जगह इकट्ठे होते हैं। इस दौरान सबसे पहले अखाड़ों के साधु-संत, विशेष रूप से नागा साधु, पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।

पूजा में क्यों करते हैं अक्षत का प्रयोग

अक्षत यानी कि पीले चावल। हिंदू धर्म में अक्षत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इसे पूजा-पाठ में मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। बिना खंडित हुए चावल को अक्षत कहते हैं। यह पूजा में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पवित्रता, समृद्धि और अखंडता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ अक्षत के बिना अधूरा माना जाता है। यह पूजा का विशेष सामग्री है।

शनिवार को तेल दान क्यों किया जाता है?

हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है और उनकी कृपा पाने के लिए भक्त विभिन्न प्रकार के उपाय करते हैं। इनमें से एक प्रमुख उपाय है शनिवार के दिन शनिदेव को तेल चढ़ाना है।

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