हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं और अविवाहित कन्याओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे महिलाएं निर्जला उपवास के रूप में करती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से करती हैं।
यह व्रत खासतौर पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इसी व्रत के प्रभाव से माता पार्वती ने कठोर तप कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इस कारण से यह व्रत दांपत्य जीवन के सुख और पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ाने वाला माना जाता है। वहीं, अविवाहित कन्याएं इच्छित वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया। उन्होंने निर्जला व्रत रखकर जंगल में तपस्या की और मिट्टी, रेत व पत्तों की शैया पर विश्राम किया। उनकी इस अनन्य भक्ति और तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसी घटना की स्मृति में यह व्रत रखा जाता है, जिसे हरतालिका तीज व्रत कहा जाता है।
हरतालिका तीज व्रत न केवल वैवाहिक जीवन की मंगलकामना के लिए है, बल्कि यह तप, संयम और श्रद्धा का प्रतीक भी है। यह व्रत महिलाओं को मानसिक दृढ़ता और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। व्रत के दौरान महिलाएं कठोर नियमों का पालन करती हैं, जिससे आत्मअनुशासन और भक्ति की भावना प्रबल होती है।