दीपावली से एक दिन पूर्व आने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, काली चौदस और रूप चौदस नामों से भी जाना जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण और देवी काली की उस दिव्य विजय का प्रतीक है जब उन्होंने नरकासुर नामक अत्याचारी दैत्य का अंत कर हजारों स्त्रियों को मुक्त कराया था। परम्परा है कि इस दिन सूर्योदय से पहले तिल के तेल से अभ्यंग स्नान किया जाए, क्योंकि नरकासुर वध के पश्चात स्वयं श्री कृष्ण ने ब्रह्म मुहूर्त में तेल स्नान कर शरीर पर लगे रक्त के कणों को शुद्ध किया था। 2026 में नरक चतुर्दशी शनिवार को पड़ेगी और रात 11:57 से 12:48 तक यम दीपक का उत्तम मुहूर्त रहेगा। आइए इस पर्व की कथा, पूजा विधि और महत्व विस्तार से जानते हैं।
साल 2026 में नरक चतुर्दशी शनिवार 7 नवम्बर को मनाई जाएगी। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आता है, जो दिवाली से ठीक एक दिन पूर्व पड़ती है। इस दिन अभ्यंग स्नान सूर्योदय से पहले किया जाना अत्यंत मंगलकारी माना गया है। 2026 में यम दीपक का काल 7 नवम्बर की रात्रि 11:57 बजे से लेकर 8 नवम्बर की रात्रि 12:48 बजे तक रहेगा। मान्यता है कि इस समय दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और यमराज प्रसन्न होकर आयु और स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। संध्या के समय घर में दीपक जलाना और मुख्य द्वार पर प्रकाश सजाना छोटी दिवाली का अनिवार्य अंग माना गया है।
प्रचलित कथा के अनुसार नरकासुर ने देवताओं और साधु-संतों को अत्यंत कष्ट दिया और सोलह हजार स्त्रियों को बंधक बना लिया। देवताओं के निवेदन पर भगवान श्री कृष्ण ने पत्नी सत्यभामा की सहायता से चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध किया और उन स्त्रियों को मुक्त कराया। दूसरी कथा दैत्यराज बलि से जुड़ी है, जिन्होंने वामन अवतार के समय अपना संपूर्ण राज्य दान कर दिया था। भगवान वामन ने उन्हें वरदान दिया कि त्रयोदशी से अमावस्या तक का काल उनका राज्य माना जाएगा और चतुर्दशी के दिन दीपदान करने वाले मनुष्यों को न तो नरक का भय होगा और न ही यमराज की यातना प्राप्त होगी। इन दोनों घटनाओं के कारण यह पर्व बुराई पर विजय और प्रकाश के स्वागत का प्रतीक माना जाता है।
नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व है। तिल के तेल से मालिश कर अपामार्ग की टहनी से स्नान करने की परम्परा कई क्षेत्रों में आज भी जीवित है। उत्तर भारत में इसे छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है जबकि दक्षिण भारत में यह तमिल दीपावली का प्रमुख दिन है। महाराष्ट्र में अभ्यंग स्नान कर नए वस्त्र धारण किये जाते हैं। दिन भर घर की सजावट, स्वादिष्ट व्यंजन और सामूहिक आनंद का वातावरण रहता है। शाम होते ही घर के बाहर और आंगन में दीपक जलाए जाते हैं, जिनसे माना जाता है कि नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सौभाग्य घर में प्रवेश करता है। अनेक घरों में इस दिन रूप सौंदर्य के लिए उबटन भी लगाया जाता है।
पूजा स्थल पर लकड़ी की चैक्की पर लाल कपड़ा बिछाकर गणेश और लक्ष्मी का चित्र स्थापित किया जाता है। एक थाली में लाल कपड़ा रखकर चांदी के सिक्के चढ़ाए जाते हैं। एक बड़ी थाली में स्वस्तिक बनाकर चारों ओर 11 दीपक तथा बीच में 4 मुख वाला दीप रखा जाता है। पहले इन चार दीपों को जलाने का विधान है, उसके बाद अन्य दीपक प्रज्वलित किये जाते हैं। रोली और चावल से सभी देवताओं का तिलक कर पंचोपचार पूजा की जाती है। अगरबत्ती, धूप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित कर 7 दीप तथा मुख्य दीप देवी लक्ष्मी के सामने रखे जाते हैं। शेष दीप घर के मुख्य द्वार पर रखे जाते हैं। अंत में श्रीं स्वाहा मंत्र का कम से कम 108 बार जप कर धन, आरोग्य और आयु की कामना की जाती है।