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संतान प्राप्ति के लिए करें परशुराम द्वादशी व्रत

संतान प्राप्ति के लिए करें परशुराम द्वादशी व्रत

Parshuram Dwadashi Vrat: संतान प्राप्ति के लिए करें भगवान परशुराम की पूजा, परशुराम द्वादशी तिथि का है विशेष महत्व 


परशुराम द्वादशी का पर्व भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी को समर्पित है, जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह व्रत विशेष रूप से संतान के प्राप्ति की कामना रखने वाले लोगों के लिए फलदायी होता हैं। इस साल परशुराम द्वादशी का पर्व 8 मई को गुरुवार के दिन मनाया जाएगा, जो इसे और भी शुभ बनाता है क्योंकि गुरुवार भगवान विष्णु को समर्पित दिन होता है।


परशुराम द्वादशी के व्रत से वीरसेन को हुई थी पुत्र की प्राप्ति 

परशुराम द्वादशी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि तप, धर्म और शक्ति के प्रतीक भगवान परशुराम के जीवन और अवतार का स्मरण है। जब पृथ्वी पर अधर्म और अन्याय बढ़ गया था, तब भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की थी। परशुराम द्वादशी की व्रत कथा में राजा वीरसेन का उल्लेख मिलता है, उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत किया था और उन्हें एक वीर, तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई थी। 


भगवान परशुराम को अर्पित करें 21 पीले फूल 

  • सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
  • शुद्ध वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
  • घर के मंदिर में चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं।
  • भगवान परशुराम या भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • गंगाजल या शुद्ध जल से मूर्ति या चित्र को पवित्र करें।
  • भगवान परशुराम को 21 पीले फूल, पीले वस्त्र, मिठाई, तुलसी पत्र आदि अर्पित करें।
  • ‘ॐ परशुरामाय नमः’ मंत्र का जाप करें और भगवान परशुराम की कथा सुनें या पढ़ें।
  • फिर भगवान की आरती करें और सभी को प्रसाद वितरित करें।
  • अगले दिन सुबह पूजा के बाद व्रत का पारण करें।


परशुराम द्वादशी पर संतान प्राप्ति के लिए करें ये उपाय 

संतान सुख की प्राप्ति के लिए विशेष उपायों में पीले वस्त्र पहनना, पीले फूलों से पूजन करना और तुलसी पत्र अर्पित करना शामिल है। साथ ही, भगवान परशुराम की कथा का श्रवण करना तथा गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र व दक्षिणा का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन नमक का सेवन नहीं करना चाहिए और केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। इस साल यह पर्व गुरुवार को पड़ रहा है, तो विष्णु जी की पूजा और गुरुवार का व्रत एक साथ करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी।


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कांची देवगर्भा कंकाली ताला मंदिर, बीरभूम, पश्चिम बंगाल (Kanchi Devgarbha Kankali Tala Temple, Birbhum, West Bengal)

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में शांति निकेतन के पास बोलपुर में कोपई नदी के किनारे माता का कांची देवगर्भा कंकाली ताला मंदिर स्थित है।

किरीटेश्वरी मंदिर, मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल (Kiriteshwari Temple, Murshidabad, West Bengal)

किरीटेश्वरी शक्तिपीठ मुर्शिदाबाद जिले के लालबाग के पास किरीट कोना गांव में स्थित है।

कुमारी/रत्नावली शक्तिपीठ, हुगली, पश्चिम बंगाल (Kumari/Ratnavali Shaktipeeth, Hooghly, West Bengal)

कुमारी या रत्नावली शक्तिपीठ, माना जाता है यहां माता सती का दाहिना कंधा गिरा जिसके चलते इस स्थान पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ।

भ्रामरी देवी/ त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल (Bhramari Devi / Tristrota Shaktipeeth, Jalpaiguri, West Bengal)

माता सती का बायां पैर त्रिस्त्रोता नाम की जगह पर गिरा। यह जगह पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम में स्थित है।

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