Logo

पिठोरी अमावस्या की कथा

पिठोरी अमावस्या की कथा

Pithori Amavasya Vrat Katha: कैसे हुई पिठोरी अमावस्या मनाने की शुरूआत, जानिए क्या है इस त्योहार से जुड़ी कथा 

भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है। इसे कुशोत्पाटनी और कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कुशा एकत्रित करने, पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण और पिंडदान करने तथा भगवान शिव और देवी दुर्गा की पूजा करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस व्रत से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और संतान की दीर्घायु होती है।

व्रत का महत्व

पिठोरी अमावस्या का व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाएं करती हैं। वे इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता दुर्गा की पूजा करती हैं और अपने बच्चों की लंबी उम्र तथा परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं। शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने और पितरों का स्मरण करने से जीवन में सभी तरह के दोषों का निवारण होता है। साथ ही शिवजी और शनिदेव की पूजा का भी इस दिन विशेष महत्व माना गया है।

पौराणिक कथा

पिठोरी अमावस्या की व्रत कथा बेहद प्रेरणादायक है। प्राचीन समय में एक गांव में सात भाई रहते थे। उनका विवाह हो चुका था और सभी के छोटे-छोटे बच्चे थे। परिवार की सलामती और संतान की रक्षा के लिए सातों भाइयों की पत्नियां पिठोरी अमावस्या का व्रत रखना चाहती थीं।

पहले साल बड़े भाई की पत्नी ने व्रत रखा, लेकिन संयोगवश उनके पुत्र की मृत्यु हो गई। अगले साल दूसरे भाई की पत्नी ने व्रत रखा और फिर उसके बेटे की भी मृत्यु हो गई। ऐसा क्रम सातवें साल तक चलता रहा। अंत में जब बड़े भाई की पत्नी ने व्रत रखा तो उसने अपने मृत पुत्र के शव को छिपा दिया ताकि लोग उसे देख न सकें।

उसी समय गांव की कुल देवी मां पोलेरम्मा, जो मां दुर्गा का ही एक स्वरूप मानी जाती हैं, गांव की रक्षा के लिए पहरा दे रही थीं। उन्होंने उस महिला को देखा और कारण पूछा। दुखी मां ने सारा किस्सा देवी को सुनाया। यह सुनकर देवी पोलेरम्मा को दया आ गई। उन्होंने महिला से कहा कि वह उन सभी स्थानों पर हल्दी छिड़क दे जहां-जहां उसके बेटों का अंतिम संस्कार हुआ था। महिला ने वैसा ही किया और जब वह घर लौटी तो देखा कि उसके सातों पुत्र जीवित हो गए हैं।

परंपरा की शुरुआत

उस घटना के बाद से गांव की सभी माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और कुशलता के लिए पिठोरी अमावस्या का व्रत रखने लगीं। आज भी इस व्रत की कथा सुनने और पढ़ने की परंपरा है।

उत्तर और दक्षिण भारत में मान्यता

उत्तर भारत में पिठोरी अमावस्या के दिन माता दुर्गा की पूजा कर व्रत रखा जाता है। वहीं दक्षिण भारत में इसे पोलाला अमावस्या कहा जाता है और इस दिन मां पोलेरम्मा की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत से संतानों की आयु बढ़ती है, परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

........................................................................................................

संबंधित लेख

HomeBook PoojaBook PoojaTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang