Pithori Amavasya Puja Vidhi: पिठोरी अमावस्या की पूजा विधि, जानें संपूर्ण विधि, सामग्री लिस्ट और मुहूर्त
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है। इसे कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर कुशा एकत्रित करने की परंपरा है। इसी कुशा का उपयोग आने वाले दिनों में और विशेषकर पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध व तर्पण में किया जाता है। इस दिन स्नान, दान और तर्पण के साथ देवी पूजा का विशेष महत्व है।
पिठोरी अमावस्या 2025 का मुहूर्त
पंचांग के अनुसार इस वर्ष पिठोरी अमावस्या 22 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। तिथि का आरंभ 22 अगस्त को सुबह 11 बजकर 57 मिनट से होगा और समापन 23 अगस्त को सुबह 11 बजकर 37 मिनट पर होगा। चूंकि अमावस्या का मध्यकाल 22 अगस्त को पड़ रहा है, इसलिए पूजा-पाठ और व्रत इसी दिन करना श्रेष्ठ रहेगा।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
- गंगाजल या पवित्र जल
- कुशा
- आटा (64 मातृकाओं की प्रतिमा बनाने के लिए)
- लाल रंग के फूल (विशेष रूप से गुड़हल)
- सिंदूर, चुनरी, बिंदी और चूड़ियां
- दीपक और घी/तेल
- अगरबत्ती और धूप
- फल, मिठाई और नैवेद्य
- पितरों के लिए तर्पण सामग्री और जल से भरा लोटा
पूजा विधि
- स्नान और संकल्प – प्रात:काल पवित्र नदी में स्नान करें। यदि नदी स्नान संभव न हो तो घर पर स्नान कर जल में गंगाजल मिलाएं। इसके बाद व्रत और पूजा का संकल्प लें।
- कुशा एकत्रित करना – इस दिन कुशा एकत्रित करने का विशेष महत्व है। एकत्र की गई कुशा को पवित्र स्थान पर रखकर आने वाले दिनों और पितृ पक्ष में प्रयोग करें।
- मातृका पूजन – महिलाएं आटे से मां दुर्गा के 64 रूप बनाती हैं और इन्हें थाल में सजाकर पूजन करती हैं। प्रत्येक प्रतिमा को सिंदूर, चुनरी, बिंदी और चूड़ियां अर्पित की जाती हैं। लाल फूल और विशेषकर गुड़हल माता को अर्पित करना शुभ माना जाता है।
- पितरों का तर्पण – स्नान और पूजन के बाद पितरों के लिए तर्पण करें। जल में तिल और कुशा डालकर उनका स्मरण करें और श्राद्ध करें। ब्राह्मण को भोजन कराना और दान देना इस दिन विशेष फलदायी होता है।
- भगवान शिव और श्रीकृष्ण की पूजा – इस दिन शिव और कृष्ण दोनों की पूजा का भी विधान है। दीपक जलाकर ओम नम: शिवाय का जाप करें और कृष्ण नाम का स्मरण करें।
महत्व
पिठोरी अमावस्या की पूजा से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। माना जाता है कि इस दिन संतान सुख, परिवार की समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत करती हैं।