पुनपुन में अंतरराष्ट्रीय श्राद्ध मेला

पुनपुन में आज से भव्य अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेला शुरू हो गया है। अद्भुत ग्रह-नक्षत्रों के संयोग के साथ पितृ पक्ष का प्रारंभ के साथ ही इस बार ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के कारण छह विशेष पर्व संयोग भी बन रहे हैं। इस दिन अनंत चतुर्दशी और पूर्णिमा का भी श्राद्ध संपन्न होगा, जिससे श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व हो गया है। इस समय हमारे पितृ देवताओं का हमारे घरों में वास होता है, और उनके तर्पण-अर्पण का क्रम 2 अक्टूबर को पितृ विसर्जन अमावस्या तक चलेगा। 


पितृ पक्ष का महत्व और तर्पण 


प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं. राजनाथ झा और के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान वंशज अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करते हैं, जिससे उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। यह समय विशेष रूप से उन पूर्वजों को याद करने का होता है जिन्होंने इस दुनिया से विदा ली है। 


विशेष पर्व और संयोग 


इस बार अनंत चतुर्दशी के दिन ही पूर्णिमा का श्राद्ध होने का अद्भुत संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, अनंत चतुर्दशी के अगले दिन से श्राद्ध प्रारंभ होते हैं, लेकिन इस बार पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर को दोपहर 11:09 बजे से शुरू होकर 18 सितंबर की सुबह 8:03 बजे तक रहेगी। इस कारण पूर्णिमा का श्राद्ध भी मंगलवार, 17 सितंबर को ही किया जाएगा। भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी इसी बीच संपन्न होगी। 


तर्पण में जल और तिल का महत्व 


पितृ पक्ष के दौरान तर्पण में जल और तिल (देवान्न) का विशेष महत्व होता है। इनका प्रयोग पितरों को समर्पित करने के लिए किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार, जल और तिल के माध्यम से ही पितरों तक हमारी श्रद्धा और भक्ति पहुंचती है। जल जीवन का प्रतीक है और तिल को देवान्न माना जाता है, जो आत्मा की तृप्ति का साधन है। इस समय तर्पण करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।


पितृ पक्ष की तिथियां और श्राद्ध विधि 


पितृ पक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस अवधि में जिनकी मृत्यु का वर्ष पूरा हो चुका हो या जिनकी मृत्यु ज्ञात-अज्ञात रूप से हुई हो, उनके लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। 18 सितंबर को पूर्णिमा और प्रतिपदा का तर्पण होगा। 

श्राद्ध करने की प्रक्रिया में सबसे पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय के लिए भोजन का अंश निकाला जाता है। इसके बाद जल, तिल और कुश के साथ तर्पण किया जाता है। तर्पण करते समय 'पितृ देवताभ्यो नमः' मंत्र का उच्चारण किया जाता है। तर्पण के बाद दान करने का भी विशेष महत्व होता है, जो पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करता है।


तीन पीढ़ियों तक का श्राद्ध 


श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही किया जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने के समय पितृ परलोक से धरती पर आते हैं। तीन पीढ़ी के पूर्वजों को कक्षा के समान, पिता को रुद्र के समान और पितामह को आदित्य के समान माना गया है। यह व्यवस्था इसलिए है क्योंकि मानव की स्मरण शक्ति तीन पीढ़ियों तक ही सीमित होती है।


अकाल मृत्यु और विशेष श्राद्ध तिथियां 


विशेष श्राद्ध तिथियों के अनुसार, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनके लिए चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध किया जाता है। इसी प्रकार, नवमी तिथि का श्राद्ध उन लोगों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था में हुई हो। श्राद्ध का उद्देश्य पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त कराना है। 


पितृ शांति के लिए उपाय


पितृ शांति के लिए पूरे पितृ पक्ष के दौरान प्रतिदिन पूजा, तर्पण और दान करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति और समृद्धि आती है। यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है, जिसे सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं। इस बार के पितृ पक्ष में कई अद्भुत संयोग बन रहे हैं, जिससे यह समय और भी महत्वपूर्ण हो गया है। पितृ पक्ष न केवल हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए है, बल्कि यह हमारी आस्थाओं और संस्कारों का प्रतीक भी है।


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