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बाल्यावस्था में मृत्यु होने पर भी आवश्यक है श्राद्ध कर्म

बाल्यावस्था में मृत्यु होने पर भी आवश्यक है श्राद्ध कर्म

पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है, वह विशेष समय होता है जब हम अपने पूर्वजों और पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यह पंद्रह दिनों की अवधि होती है, जिसमें श्राद्ध कर्म किए जाते हैं और इसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं। इस वर्ष भी पितृपक्ष कुछ ही दिनों में शुरू होने वाला है, और गया जैसे धार्मिक स्थलों पर पिंडदान का महत्व और भी बढ़ जाता है। 


बाल्यावस्था में मृत्यु पर श्राद्ध क्यों है आवश्यक?


गया मंत्रालय वैदिक पाठशाला के पुरोहित राजा आचार्य बताते हैं कि श्राद्ध केवल उन पूर्वजों के लिए नहीं होता, जिन्होंने वयस्क अवस्था में मृत्यु प्राप्त की हो। बल्कि, बाल्यावस्था में या कुंवारे अवस्था में मृत्यु होने पर भी श्राद्ध कर्म करना अत्यंत आवश्यक होता है। पंडित राजा आचार्य के अनुसार, जिन बच्चों की मृत्यु नवजात अवस्था में हो जाती है, या जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ होता, उनके लिए अग्नि संस्कार की बजाय उन्हें मिट्टी में दफनाया जाता है। लेकिन जब हम अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं, तो हमें इन बच्चों का भी पिंडदान अवश्य करना चाहिए ताकि उनकी आत्मा को भी मोक्ष की प्राप्ति हो सके।


बाल्यावस्था और किशोरावस्था में मृत्यु के लिए श्राद्ध की विधि


बाल्यावस्था में जिन शिशुओं की मृत्यु हो जाती है, उनके लिए श्राद्ध करने का विशेष विधान है। पुरोहित राजा आचार्य बताते हैं कि जिन बच्चों की मृत्यु कुंवारे अवस्था में, दांत नहीं निकलने से पहले, या गर्भ में हो जाती है, उनका महालय श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है। गया में श्राद्ध करने वाले तीर्थयात्री या घर पर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति अपने पितरों का पिंडदान करते समय एक पिंड उन बच्चों के नाम से भी अवश्य रखें। कुछ जगहों पर ऐसे बच्चों के लिए तीन दिवसीय श्राद्ध का प्रावधान होता है। इसमें जौ के आटे का पिंड बनाकर विष्णुपद मंदिर या किसी अन्य देवालय में रखा जाता है, और उनके मोक्ष के लिए ध्यान किया जाता है। 


किशोरावस्था में मृत्यु होने पर श्राद्ध का महत्व


पुरोहित राजा आचार्य के अनुसार, जब किसी की मृत्यु किशोरावस्था (12 वर्ष या उससे अधिक उम्र) में होती है, तो उसका श्राद्ध करने के लिए विशेष विधान होता है। 10 दिन का सूतक पाठ किया जाता है और पिंडदान कर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। खासकर, कृतिका नक्षत्र में ऐसे पितरों के लिए पिंडदान का विशेष महत्व होता है, ताकि उनकी आत्मा को शांति प्राप्त हो सके। पुरोहित बताते हैं कि अगर किसी की मृत्यु अकाल अवस्था में होती है, विशेषकर छोटे बच्चों या कुंवारे अवस्था में तो कृतिका नक्षत्र में श्राद्ध करने से यह माना जाता है कि उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वे दोबारा अपने घर में जन्म लेते हैं। 


श्राद्ध की प्रक्रिया और विधि


श्राद्ध करने के लिए पहले सुबह स्नान कर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। पितरों के लिए भोग तैयार करें, जिसमें विशेषकर खीर का भोग अर्पित किया जाता है। फिर कुंवारे ब्राह्मण को बुलवाकर पितरों का तर्पण करवाएं। पहले गाय, कौवा, कुत्ता, चींटी और पीपल देव को भोजन अर्पित करें, उसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन के बाद ब्राह्मण को क्षमतानुसार दान-दक्षिणा दें।


पिंडदान से मिलने वाले लाभ


विधिवत रूप से पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। खासकर गया जैसे धार्मिक स्थल पर पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति का विशेष महत्व होता है। गया के पौराणिक महत्व के अनुसार, यहां श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है और परिवार को पितरों का आशीर्वाद मिलता है। इस प्रकार, बाल्यावस्था में मृत्यु प्राप्त बच्चों का भी पिंडदान करना आवश्यक होता है, ताकि उनकी आत्मा को भी शांति और मोक्ष मिल सके।

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