छठ पूजा सूर्य उपासना और आत्मसंयम का सबसे पवित्र पर्व माना जाता है। यह पर्व चार दिनों तक अत्यंत अनुशासन, पवित्रता और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक चलने वाले इस पर्व में भक्त सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना करते हैं। छठ का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है उषा अर्घ्य। जब श्रद्धालु उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने चार दिवसीय व्रत का समापन करते हैं। यह दिन आस्था, शुद्धता और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
इस बार छठ पूजा 25 अक्टूबर (शनिवार) से शुरू होकर 28 अक्टूबर (मंगलवार) तक चलेगी।
साल 2025 में उषा अर्घ्य का पर्व 28 अक्टूबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्रद्धालु सुबह लगभग 6:30 बजे उगते सूर्य को जल अर्पित करेंगे। इसके साथ ही छठ व्रत का पारण (समापन) किया जाएगा। यह क्षण न केवल पूजा का अंत होता है, बल्कि सूर्यदेव के प्रति आभार व्यक्त करने और नई शुरुआत का प्रतीक भी होता है।
जल स्रोत के पास पहुंचे: व्रती सूर्योदय से पहले नदी, तालाब या जलाशय के किनारे पहुंचते हैं। इस समय वातावरण अत्यंत शांत, निर्मल और पवित्र होता है।
पूजा की सामग्री तैयार करें: बांस की टोकरी या सूप को सुंदरता से सजाएं। उसमें ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, केला, नारियल, हल्दी की गांठ, फूल और दीपक रखें।
सूर्योदय की प्रतीक्षा करें: जल में खड़े होकर उगते हुए सूर्य की दिशा में मुंह रखें। जैसे ही पहली किरण दिखाई दे, सूर्यदेव को दूध और जल से अर्घ्य अर्पित करें।
मंत्र और भजन गाएं: सूर्यदेव और छठी मैया की स्तुति में ‘ॐ सूर्याय नमः’ मंत्र का उच्चारण करें। भक्त सामूहिक रूप से छठ के पारंपरिक गीत गाते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
व्रत का समापन (पारण): पूजा पूर्ण होने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत तोड़ते हैं। यह चरण संयम, तप और भक्ति का प्रतीक होता है।
प्रसाद वितरण करें: प्रसाद को परिवार और आसपास के लोगों में बांटा जाता है। यह साझा भक्ति, प्रेम और एकता का संदेश देता है।