नवीनतम लेख
हमारा देश धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का देश है। हमारी उत्सवप्रियता और उत्सव धर्मिता के सबसे श्रेष्ठतम उदाहरणों में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का अपना महत्व है। इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है और इस दिन व्रत करने का विधान है। यह दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन लक्ष्मी नारायण भगवान की पूजा अर्चना कर उनकी प्रिय वस्तुओं का भोग लगाया जाता है और उपवास के साथ संकीर्तन कर भगवान को प्रसन्न करने का प्रयत्न किया जाता है।
वैसे तो हिंदू धर्म में साल में 24 एकादशी तिथि आती हैं लेकिन देवउठनी एकादशी इनमें सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है और इसे बड़ी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से उपासना करने से साधक को विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
तो भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताते हैं कि आखिर देव उठनी एकादशी क्यों मनाते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जाग कर संसार के संचालन के कार्य में लग जाते हैं। भगवान के जागने की इस तिथि को देवउठनी एकादशी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से पिछले चार महिनों ( चातुर्मास ) से बंद पड़े शुभ और मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस शुभ तिथि पर व्रत करते हुए विधिपूर्वक भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
साल 2024 में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर को संध्याकाल 06 बजकर 46 मिनट पर होगी जो 12 नवंबर को संध्याकाल 04 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाईं जाएगी। इसके अगले दिन तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाएगा।
देवउठनी एकादशी व्रत का पारण 12 नवंबर को सुबह 06 बजकर 42 मिनट से लेकर 08 बजकर 51 मिनट तक कर सकते हैं।
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।
ॐ अं वासुदेवाय नम:।।
ॐ आं संकर्षणाय नम:।।
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:।।
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:।।
ॐ नारायणाय नम:।।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
आषाढ़ में विष्णु शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और तभी से व्रतबंध संस्कार, कर्णछेदन संस्कार, विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार इत्यादि समस्त मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं जो चार माह तक बंद रहते हैं। चातुर्मास के बाद भगवान विष्णु देव उठनी एकादशी पर योगनिद्रा से उठते हैं और इसी दिन से सभी तरह के मंगलिक कार्य फिर से प्रारंभ हो जातें हैं।
देवउठनी एकादशी से संबंधित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु जी की असमय नींद की वजह से माता लक्ष्मी विश्राम नहीं कर पाती थीं। इसलिए मां लक्ष्मी ने एक बार विष्णु जी से अनुरोध किया कि संसार के संचालन में व्यस्त रहते हुए आप नींद नहीं लेते हैं और दिन-रात जागते हैं और सोते भी हैं तो उसका कोई नियत समय नहीं हैं। ऐसे में यदि आप नियम से निद्रा लें तो मुझे भी विश्राम करने मिलेगा। माता लक्ष्मी की इस बात का मान रखकर भगवान विष्णु ने प्रतिवर्ष नियम से चार माह की निद्रा लेने का नियम बनाया। तब से विष्णु शयनी एकादशी को भगवान सोते हैं और 4 माह बाद कार्तिक की एकादशी को देव उठनी एकादशी पर जागते हैं।
इसके अलावा देवउठनी एकादशी पर राजा बलि से जुड़ी कथा भी प्रचलित है जो आपको भक्त वत्सल की वेबसाइट पर ही मिल जाएगी।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।