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ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी (Jyeshth Maas Ki Shukla Paksh Ki Nirjala Ekaadashi)

एक समय महर्षि वेद व्यास जी महाराज युधिष्ठिर के यहाँ संयोग से पहुँच गये। महाराजा युधिष्ठिर  ने उनका समुचित आदर किया, अर्घ्य और पाद्य  देकर सुन्दर आसन पर बिठाया, षोडशोपचार पूर्वक उनकी पूजा की। जब महर्षि हर प्रकार से निश्चिन्त होकर बैठ गये तब भीमसेन ने हाथ जोड़कर उनसे कहा-भगवन् ! मैं बड़ी आपत्ति में पड़ा हुआ हूँ। दयाकर आप मुझको इस आपत्ति से बचाइये। भीमसेन के ऐसे वचन सुन महर्षि व्यास ने हँसते हुये पूछा-क्या बात है भीम? निःसंकोच हो कहो। भीमसेन ने कहा- प्रभो ! महाराज युधिष्ठिर, धनुषधारी अर्जुन, विचारवान सहदेव और बहादुर नकुल एवं सौभाग्यवती महारानी द्रौपदी इत्यादि सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं और मुझे भी विवश करते हैं तुम भी एकादशी का व्रत करो। महाराज आप तो जानते ही हैं कि भीमसेन का जीवन अन्न के ही ऊपर आश्रित है। एक दिन भोजन न करने की बात तो अत्यन्त ही दुष्कर है एक क्षण भी मैं बिना खाये नहीं रह सकता। तब आप ही बताइये कि किस प्रकार यह मेरा धर्म-संकट दूर हो। भीमसेन के ऐसे वचन सुन व्यासजी ने कहा।

मानव धर्म की सम्पूर्ण कथा मैं तुमको सुना चुका हूँ। साथ ही साथ वैदिक धर्म की कथा तुम्हें समुचित रूप से सुनाई है और यह भी बतलाया और समझाया है कि कलि-काल में वह समस्त धर्म-कार्य करना असम्भव नहीं तो कठिन और दुष्कर तो जरूर है। अस्तु मानव जीवन के कल्याण के निमित्त एवं अन्तकाल में विष्णु लोक पाने के निमित्त मास-मास की कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की एकादशियों का व्रत अवश्य ही करना चाहिये। बिना इन व्रतों को धारण किये प्राणी मात्र का कल्याण नहीं है। महर्षि व्यास के ऐसे वचन सुन भीमसेन अपनी धर्म भीरुता के कारण बेंत के समान काँपने लगे और अत्यन्त ही भयभीत होकर बोले-प्रभो ! यह तो ठीक है परन्तु व्रत का रखना और भूखा रहना तो मुझे मृत्यु से भी बढ़कर है सो भी हर महीने में दो बार वासुदेव ! वासुदेव ! हो भगवन्! अब आप कोई ऐसा व्रत बतलाइये कि जिसमें ज्यों-त्यों का एक दिन भूखा रह कर ही मैं पापों से मुक्त हो जाऊँ।

भीमसेन के ऐसे वचन सुन महर्षि वेद व्यास ने कहा-अच्छी बात है मैं तुम्हें बताता हूँ उस व्रत को करो। इस एक ही व्रत का पुण्य फल मास-मास की समस्त एकादशियों से बढ़कर होगा। महर्षि के ऐसे वचन सुन भीमसेन प्रसन्न हो गये और हाथ जोड़ कर कहा-प्रभो! कहिये और शीघ्र कहिये कि वह कौन सा व्रत है? महर्षि ने कहा- वह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का है। तुम श्रद्धाभक्ति समेत दशमी को सोते समय भगवान् को प्रणाम कर उनकी मानसिक पूजा करो और हाथ जोड़कर अपने मन में इस प्रकार संकल्प करो कि प्रभो! कल मैं ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करूँगा। मुझे शक्ति दो कि मैं अपने व्रत को पूर्ण कर सकूँ। इस प्रकार प्रार्थना कर सो रहो। दूसरे दिन निर्जला एकादशी का दिन होगा, बिना खाये पिये निराहार और निर्जल रहो यहाँ तक कि आचमन इत्यादि में भी जल न ग्रहण करो।

इस व्रत के प्रभाव से स्त्री हो अथवा पुरुष सभी के मन्दराचल के समान भीषण और महान् पाप भी अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत में गोदान का बड़ा महत्त्व है अर्थात् गोदान अवश्य करना चाहिये। अगर कोई गोदान देने की सामर्थ्य न रखता हो तो उसे पानी का भरा हुआ घड़ा ताँबा पीतल किम्बा मिट्टी का उसमें थोड़ा सोना छोड़ नवीन वस्त्र में लपेट ब्राह्मण को श्रद्धा और भक्ति पूर्वक दान करना चाहिये। इस प्रकार जलदान देने एवं स्वयं व्रत समाप्ति तक जल न ग्रहण करने वाले प्राणियों को एक-एक क्षण में कोटि-कोरि गोदान देने का फल प्राप्त होता है।

उस दिन यह कार्य अर्थात् यज्ञ दान एवं जपादि कार्य करने वाले को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस प्रकार श्री कृष्णचन्द्र जी ने स्वयं कहा है। अस्तु फिर दूसरा पुण्य कार्य करने की आवश्यकता क्या है? विष्णु लोक की प्राप्ति इसी निर्जला व्रत के ही द्वारा हो सकती है। इस दिन फलाहार करना चाहिये। अन्न खाने वाले की अनेकों प्रकार की दुर्दशा होती है और वे चाण्डाल स्वरूप समझे जाते हैं इस व्रत के प्रभाव से चोर, गुरुद्वेषी एवं हर प्रकार के पापियों का उद्धार हो जाता है। श्रद्धालु स्त्री एवं पुरुषों के विशेष कर्तव्य ये हैं। शेष शैय्या पर स्थित श्री विष्णु भगवान् की भक्ति पूर्वक पूजा एवं धेनु दान तथा ब्राह्मणों को मिष्ठान्न का भोजन करा दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करना चाहिये। निर्जला व्रत रखने वालों को गौ, वस्त्र, छत्र, शय्या, कमण्डलु इत्यादि वस्तुओं का प्रेमपूर्वक भक्ति सहित दान करना चाहिये। उपानह दान करने से स्वर्ग गमन के हेतु सुवर्ण भूषित रथ प्राप्त होता है और जो इसको भक्तिपूर्वक श्रवण करके कीर्तन इत्यादि करके रात्रि जागरण करते हैं वे मनुष्य बिना विघ्न के स्वर्ग को प्राप्त होते हैं।

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मां अम्बे गौरी जी की आरती ( Maa Ambe Gauri Ji Ki Aarti)

जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत,हरि ब्रह्मा शिवरी॥

बिल्वाष्टकम् (Bilvashtakam)

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं, त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥1॥

श्रीकृष्ण लीला: जब बाल कान्हा ने फल वाली अम्मा की झोली हीरे-मोती से भर दी

भगवान अपने भक्तों को कब, कहा, क्या और कितना दे दें यह कोई नहीं जानता। लेकिन भगवान को अपने सभी भक्तों का सदैव ध्यान रहता है। वे कभी भी उन्हें नहीं भूलते। भगवान उनके भले के लिए और कल्याण के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

श्री शाकम्भरी चालीसा (Shri Shakambhari Chalisa)

बन्दउ माँ शाकम्भरी, चरणगुरू का धरकर ध्यान ।
शाकम्भरी माँ चालीसा का, करे प्रख्यान ॥

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