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शारदीय नवरात्रि 2025 तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा की पूजा विधि-मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि 2025 तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा की पूजा विधि-मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि 2025 तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा की पूजा विधि-मुहूर्त

Shardiya Navratri 2025 Day 3: शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। देवी पुराण में वर्णित है कि मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत करुणामयी और सौम्य है। वे अपने भक्तों को साहस, शांति और सम्पन्नता प्रदान करती हैं। इस दिन की पूजा से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता है और समाज में मान-सम्मान भी मिलता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से जीवन में समृद्धि और सकारात्मकता बढ़ती है। ऐसे में आइए जानते हैं नवरात्रि के तीसरे दिन कैसे करें मां चंद्रघंटा की पूजा, क्या रहेगा पूजा का शुभ मुहूर्त? साथ ही, जानिए भोग, मंत्र, आरती और कथा के बारे में....

पूजा का शुभ मुहूर्त

  • आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि प्रारंभ - 24 सितंबर 2025 को 04:51 ए एम
  • आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि समाप्त - 25 सितंबर 2025 को 07:06 ए एम

मां चंद्रघंटा की पूजा विधि

  • नवरात्रि के तीसरे दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • मां चंद्रघंटा की पूजा में लाल व पीले रंग के कपड़े अर्पित करें।
  • इसके बाद मां को अक्षत और कुमकुम अर्पित करें।
  • चूंकि मां चंद्रघंटा को पीला रंग अत्यंत प्रिय है, इसलिए पूजा में पीले फूल और पीले वस्त्रों का प्रयोग करें।
  • मां को दूध से बनी खीर और पीली मिठाई का भोग लगाएं।
  • पूजन के दौरान मां के मंत्रों का जाप करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
  • अंत में मां की आरती करें। ऐसा करने से मां चंद्रघंटा प्रसन्न होकर भक्तों पर अपनी विशेष कृपा बरसाती हैं।

मां चंद्रघंटा का प्रिय भोग

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की आराधना के समय खीर का भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। विशेषकर केसर वाली खीर मां को प्रिय है। इसके अलावा दूध से बनी मिठाइयां, जैसे लौंग-इलायची वाली खीर, पंचमेवा और पेड़े भी मां को अर्पित किए जा सकते हैं। भोग में मिसरी अवश्य शामिल करें।

मां चंद्रघंटा का मंत्र

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
रंग, गदा, त्रिशूल,चापचर,पदम् कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

व्रत कथा

मां चंद्रघंटा की कथा के अनुसार, जब महिषासुर नामक असुर ने त्रिलोक में आतंक मचाना शुरू किया तो देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तेज से एक दिव्य देवी को प्रकट किया। इस देवी को सभी देवताओं ने अपने-अपने दिव्य शस्त्र प्रदान किए। इंद्र ने उन्हें अपना घंटा भेंट किया। देवी ने जब इस घंटे की गूंज से महिषासुर का विनाश किया तो देवताओं को संकट से मुक्ति मिली। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र के साथ घंटा प्रतीक स्वरूप प्रकट हुआ, जिससे वे चंद्रघंटा कहलाईं।

मां चंद्रघंटा की आरती

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।
चंद्र समान तुम शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती।
क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।
सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।
कांची पुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।

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