शारदीय नवरात्रि का पर्व साल 2025 में 22 सितंबर से 01 अक्टूबर तक मनाया जाएगा, जिसमें आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ शक्ति रूपों की पूजा की जाएगी। इस दौरान साधक कठिन पूजा, भक्ति और साधना कर मां को प्रसन्न करते है। साथ ही मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। यदि आप भी मनचाहा वर पाना चाहते हैं या अपनी मनोकामना पूरी करना चाहते हैं, तो शारदीय नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करें और पूजा के समय विशेष मंत्रों का जप करें। ऐसे में आइये जानते हैं कि शारदीय नवरात्र पर मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किन मंत्रों का जाप करना चाहिए और जाप की विधि क्या है।
शारदीय नवरात्रि में मां की पूजा के बाद मंत्र जाप करें। इसके लिए सबसे पहले सुबह स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें। इसके बाद पूजा स्थल पर कलश और मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीपक और अगरबत्ती जलाकर माता का आवाहन करें और कम से कम 108 बार मंत्र जाप करें। अंत में मां से सुख-समृद्धि और परिवार की रक्षा का आशीर्वाद मांगें।
शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के मंत्र जाप करने से जीवन की सभी अड़चनें दूर होती हैं। साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे धन-धान्य और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसके अलावा मानसिक शांति का अनुभव होता है, जिससे जीवन सुखद और समृद्ध बन जाता है।
1.
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥
2.
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
3.
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
4.
हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥
5.
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तुते ॥
6.
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥
7.
दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ॥
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गानिहन्त्री दुर्गमापहा।
दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला॥
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरुपिणी।
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता॥
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी।
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थंस्वरुपिणी॥
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी।
दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्र्वरी॥
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी।
नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः॥
पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ॥
8.
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः।
सवर्स्धः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।।
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
9.
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।
10.
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
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